Lok Sabha Chunav: दो बार प्रधानमंत्री बनने से चूके प्रणब मुखर्जी, पर कहा था मैं हमेशा 'PM' रहूंगा
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Lok Sabha Chunav: दो बार प्रधानमंत्री बनने से चूके प्रणब मुखर्जी, पर कहा था मैं हमेशा 'PM' रहूंगा

Pranab Mukherjee Story: प्रणब मुखर्जी ने राजनीति में लंबा वक्त बिताया. उन्होंने इंदिरा से लेकर राजीव- सोनिया के समय तक कांग्रेस में काम किया. कई वरिष्ठ पदों पर रहे लेकिन पार्टी में नंबर दो होने के बाद भी कभी पीएम नहीं बन पाए. हालांकि वह दो बार दावेदार थे लेकिन चूक गए. बाद में राष्ट्रपति बने और भारत रत्न से सम्मानित भी किया गया. कहते हैं उन्हें प्रधानमंत्री न बन पाने का मलाल था पर कहा था कि मैं हमेशा 'पीएम' रहूंगा. 

Lok Sabha Chunav: दो बार प्रधानमंत्री बनने से चूके प्रणब मुखर्जी, पर कहा था मैं हमेशा 'PM' रहूंगा

Pranab Mukherjee Why Not Become PM: अक्टूबर 1984 के आखिरी हफ्ते में राजीव गांधी पश्चिम बंगाल के दौरे पर थे. प्रणब मुखर्जी भी उनके साथ थे. 31 अक्टूबर को राजीव गांधी दिन की दूसरी मीटिंग कर रहे थे तभी सुबह 9.30 बजे पुलिस वायरलेस पर मैसेज मिला- 'इंदिरा गांधी पर हमला हुआ है, फौरन दिल्ली वापस आइए'. प्रणब दा ने राजीव तक नोट पहुंचाया और स्पीच छोटी करने को कहा. फौरन कार से सभी लौटने लगे. रेडियो पर खबर पता चली कि इंदिरा को 16 गोलियां मारी गई हैं. राजीव अपने सुरक्षाकर्मी से समझना चाह रहे थे कि गोलियां कितनी घातक थीं. जवाब सुनकर वो भावुक हो गए. हेलिकॉप्टर से कोलकाता पहुंचे. वहां इंडिया एयरलाइंस का प्लेन इंतजार में था. प्लेन उड़ा तो राजीव कुछ समय तक कॉकपिट में रहे फिर बाहर आकर बताया कि इंदिरा गांधी नहीं रहीं. 

अब क्या किया जाए...

प्लेन में सभी को सदमा लग गया. कुछ देर बाद चर्चा होने लगी कि आगे क्या किया जाए? प्रणब मुखर्जी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि नेहरू के जमाने से ऐसी परिस्थिति में अंतरिम प्रधानमंत्री को शपथ दिलाए जाने की परंपरा रही है. नेहरू के निधन के बाद कैबिनेट के सबसे वरिष्ठ मंत्री गुलजारी लाल नंदा को अंतरिम प्रधानमंत्री के तौर पर चुना गया था. 

रशीद किदवई ने अपनी किताब '24 अकबर रोड' में लिखा है कि एक तर्क यह दिया जाता है कि इंदिरा गांधी की मौत से दुखी होकर प्रणब मुखर्जी विमान के टॉयलट में जाकर रोने लगे. उनकी आंखें लाल हो गईं इसलिए वह प्लेन के पिछले हिस्से में जाकर बैठ गए. हालांकि कांग्रेस में उनके विरोधियों ने इस हावभाव को राजीव गांधी के खिलाफ षड्यंत्र के सबूत के तौर पर पेश किया. 

ऐसी स्थिति में सबसे वरिष्ठ मंत्री को...

दूसरा ब्यौरा यह है कि जब राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री के देहांत के बाद होने वाली प्रक्रिया के बारे में पूछा था तो प्रणब मुखर्जी ने वरिष्ठता पर कुछ ज्यादा जोर दिया था. इसे बाद में उनकी प्रधानमंत्री बनने की इच्छा के तौर पर देखा गया. हालांकि पीसी अलेक्जेंडर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि जैसे ही राजीव गांधी को शपथ दिलाने की बात आई, प्रणब पहले व्यक्ति थे जिन्होंने जोरदार समर्थन किया. 

चुनाव जीतने के बाद जब राजीव गांधी ने अपना मंत्रिमंडल बनाया तो न तो उसमें और न कांग्रेस कार्यसमिति में प्रणब में कोई जगह मिली. नाराज होकर 1986 में प्रणब को अलग पार्टी बनानी पड़ी थी. 

दूसरी बार था मौका

अब 2004 के दौर में आते हैं. लोकसभा चुनाव हो चुके थे. सोनिया गांधी ने खुद प्रधानमंत्री का पद ठुकरा दिया. उस समय प्रणब पार्टी में नंबर 2 थे. हालांकि सोनिया ने उनकी जगह राज्यसभा में कांग्रेस के नेता मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना.

प्रणब के जूनियर थे मनमोहन 

इंदिरा गांधी के शासनकाल में आरबीआई के गवर्नर पद के लिए मनमोहन सिंह का नियुक्ति पत्र तब वित्त मंत्री के तौर पर प्रणब मुखर्जी ने ही साइन किया था. हालांकि प्रणब ने कभी उनके अंडर में काम करने वाले मनमोहन सिंह को पीएम बनाए जाने का विरोध नहीं किया. हां, यह जरूर माना गया कि सोनिया और राजीव ने उन्हें पीएम नहीं बनाया क्योंकि भरोसे में कमी थी. 

माना जाता है कि प्रणब को अपनी कुछ कमजोरियों का भी एहसास था. एक बार प्रणब ने कहा भी था कि उन्होंने ज्यादातर समय राज्यसभा में बिताया, हिंदी बोलने में उन्हें दिक्कत होती थी. अपने गृह राज्य में वह कांग्रेस को कभी जितवा नहीं पाए. बाद में प्रणब दा ने अपने करीबियों के साथ मजाक में कहा था कि प्रधानमंत्री तो आते जाते रहेंगे, लेकिन मैं हमेशा PM ही रहूंगा. पीएम का मतलब प्रणब मुखर्जी. 

प्रणब मुखर्जी साल 2012 में देश के राष्ट्रपति बने. 2019 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया. अगस्त 2020 में उनका निधन हो गया. 

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