पैसों की वजह से हुई बेइज्जती, सुसाइड तक का आया ख्याल...IIT के पूर्व छात्र की कहानी झकझोर देगी
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पैसों की वजह से हुई बेइज्जती, सुसाइड तक का आया ख्याल...IIT के पूर्व छात्र की कहानी झकझोर देगी

आईआईटी बॉम्बे के पूर्व छात्र दीपक बघेल ने आर्थिक समस्याओं के कारण अपने होस्टल के कमरे को बंद करने के दुखद अनुभव को याद किया, जिसमें उन्होंने बताया कि एक ऐसी स्थिति भी आई थी, जिसके कारण उन्हें अपने साथियों के बीच बहुत अपमानित होना पड़ा था.

पैसों की वजह से हुई बेइज्जती, सुसाइड तक का आया ख्याल...IIT के पूर्व छात्र की कहानी झकझोर देगी

नई दिल्ली: आईआईटी बॉम्बे के पूर्व छात्र से मोटिवेशनल स्पीकर बने दीपक बघेल ने हाल ही में अपनी पर्सनल जर्नी को साझा करने के लिए लिंक्डइन का सहारा लिया. अपने पोस्ट में, दीपक ने अपने जीवन में चुनौतीपूर्ण समय के दौरान आत्मघाती विचारों के साथ अपनी लड़ाई को याद किया और साझा किया कि किस चीज ने उन्हें इससे उबरने में मदद की. उन्होंने अपने कॉलेज के दिनों के दौरान सामना की गई तीन प्रमुख समस्याओं के बारे में भी विस्तार से बताया. दीपक ने लिखा, "एक IITian के रूप में, आज मैं एक सफल ऑन्त्रेप्रेन्योर और मोटिवेशनल स्पीकर हूं, लेकिन पास्ट में मैं मैंटर हैल्थ जैसी चुनौतियों से जूझ चुका हूं. यहां तक कि एक बार मैं आत्महत्या के बारे में भी सोच चुका हूं. आत्मघाती विचार और मानसिक स्वास्थ्य संघर्ष विभिन्न रूप लेते हैं."

दोस्तों के सामने होना पड़ा अपमानित
अपने पोस्ट में, दीपक ने आर्थिक समस्याओं के कारण अपने होस्टल के कमरे को बंद करने के दुखद अनुभव को याद किया, जिसमें उन्होंने बताया कि एक ऐसी स्थिति भी आई थी, जिसके कारण उन्हें अपने साथियों के बीच बहुत अपमानित होना पड़ा था. उन्होंने याद करते हुए कहा, "2015-16 में फाइनेंशियल ईयर के समापन के कारण मेरे अकाउंट में बिल्कुल पैसे नहीं थे और मेरी मां की सैलरी में भी देरी हुई थी, मुझे अपनी बहन की मेडिकल कॉलेज की फीस के लिए भी पैसों की व्यवस्था करनी थी."

इंग्लिश के प्रश्नों को समझने में लगा एक साल
मोटिवेशनल स्पीकर ने फर्स्ट ईयर के कोर्स में असफल होने और पांचवें वर्ष में इसे दोहराने से अपने आत्मविश्वास को हुए आघात को भी साझा किया. उन्होंने लिखा "आईआईटी बॉम्बे के एक प्रोफेसर ने सार्वजनिक रूप से मेरी आलोचना की और सवाल उठाया कि जब मैं मध्य प्रदेश के एक सरकारी हिंदी माध्यम स्कूल से आया था, तो मैं इतने बेसिक कोर्स में कैसे फेस हो सकता हूं. मुझे आईआईटी बॉम्बे में एक साल तक इंग्लिश के प्रश्नों को समझने के लिए संघर्ष करना पड़ा. प्रोफेसर के शब्दों ने मुझे 200 से अधिक फर्स्ट ईयर के छात्रों के सामने शर्मिंदा कर दिया. मैं उस समय बड़ी मुश्किल से अपने आंसू रोक पा रहा था.

कॉलेज के हर प्रोफेसल ने पूछा एक ही सवाल, जिससे झेलनी पड़ी शर्मिंदगी
दीपक बघेल ने संस्थागत कठोरता के कारण आने वाली बाधाओं के बारे में भी बात की. एक उदाहरण का हवाला देते हुए जहां एक प्रोफेसर ने कड़े शैक्षणिक सुदृढीकरण कार्यक्रम नियम के कारण उन्हें फेल कर दिया था. उन्होंने कहा, "मेरा मूडल अकाउंट छह महीने के लिए डिसेबल कर दिया गया था, जिससे मुझे कोर्स रजिस्ट्रेशन सहित सभी कार्यों को ऑफलाइन संभालने के लिए मजबूर होना पड़ा. कोर्स में इनरोलमेंट के लिए फिजिकल सिग्नेचर के लिए मैंने जिस भी प्रोफेसर से संपर्क किया, उसने सवाल किया कि मैं पहले फेल क्यों हुआ था. इस लगातार शर्मिंदगी ने मेरे संघर्षों को और बढ़ा दिया."

आत्महत्या करने तक की आई नौबत
अपने पोस्ट में, दीपक ने अपनी आत्महत्या करने की कोशिश को याद किया. उन्होंने कहा कि मैंने आत्महत्या करने की कोशिश की, लेकिन बाद में मुझे अपने पिता के निरंतर संघर्ष और अंततः दुखद निधन की याद आई. उन्होंने लिखा, "फिर, 2-5 सेकंड के क्षण में, सभी समस्याएं गायब हो गईं, जैसे ही मैंने 5वीं मंजिल से कूदने के बारे में सोचा. लेकिन फिर, मैंने अपने पिता की तस्वीर देखी और 2004 में समाज द्वारा उनकी बेरहमी से हत्या किए जाने तक के उनके संघर्ष को याद किया."

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