AMU: अन्य समुदायों को भी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में बराबरी का अधिकार है. यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने दिया है. वहीं, अब रेगुलर बेंच को यह जांच करनी है कि क्या एएमयू की स्थापना अल्पसंख्यकों ने की थी? पढ़िए यूनिवर्सिटी का इतिहास...
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Aligarh Muslim University History: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी करीब 150 साल पुराने इतिहास को समेटे हैं. वहीं, सवाल यह है कि क्या ये यूनिवर्सिटी अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं?, जिसे लेकर कई तरह के सवाल उठाए गए और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक होने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को फैसला सुनाया. अदालत ने संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जे की हकदार माना है और इस विवाद में अपना ही 1967 का फैसला बदल दिया है, जिसमें कहा गया था कि AMU अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का दर्जे का दावा नहीं कर सकती है. संविधान पीठ ने 4:3 के बहुमत से 1967 के फैसले को पलट दिया. इस बेंच में 7 जज शामिल थे, जिसमें से 4 ने पक्ष में और 3 ने विपक्ष में फैसला सुनाया. बहुमत वाले फैसले को मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने लिखा, जिसमें कहा गया कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के मुद्दे पर एक रेगुलर बेंच फैसला करेगी.
यूनिवर्सिटी तराशती है युवाओं को
इस संस्थान से निकलकर कई बड़ी हस्तियों ने दुनिया में नाम कमाया है. इसके अलावा भी एएमयू से कई बड़ी उपलब्धियां जुड़ी हैं. इस संस्थान में हर साल कितने ही सपने लेकर युवा पढ़ाने आते हैं. यह यूनिवर्सिटी अपनी बेहतर एजुकेशन के जरिए उनकी प्रतिभा को ऐसे निखारकर उन्हें ऐसे तराशती है कि वो दुनियाभर में भारत का नाम रोशन कर सकें. फिलहाल तो बात करेंगे यूनिवर्सिटी के इतिहास के बारे में....
विश्वविद्यालय का इतिहास
ब्रिटिश राज में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की तर्ज पर AMU भारत का पहला उच्च शिक्षण संस्थान था. AMU का इतिहास 1875 से शुरू होता है, जब सर सैयद अहमद खान ने मदरसा-ए-तुलुम की शक्ल में इस विश्वविद्यालय की नींव रखी, उस समय निजी विश्वविद्यालयों की अनुमति नहीं थी, इसलिए इसे स्कूल के रूप में शुरू किया गया. आजाद भारत में इसकी बुलंदी में पर लग गए.
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इसकी नींव रखने के पीछे ये था उद्देश्य
महान समाज सुधारक की मंशा थी कि मुस्लिम समुदाय को सामाजिक और राजनीतिक अस्तित्व बनाए रखने के लिए अंग्रेजी और आधुनिक भाषाओं में निपुण होना होगा. इसके लिए उन्होंने 1863 में गाजीपुर और 1858 में मुरादाबाद में स्कूलों की स्थापना कर यूनिवर्सिटी निर्माण की आधारशिला रखी गई. 1864 में अलीगढ़ में साइंटिफिक सोसाइटी की स्थापना की गई. इसके बाद 1869-70 तक सैयद अहमद खान ने अपनी इंग्लैंड यात्रा के दौरान ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी का दौरा किया, जिसके बाद उन्होंने मुसलमानों के लिए आधुनिक शिक्षा की जरूरत को समझते हुए अलीगढ़ में मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना की. साल 1877 में यह संस्थान एएमयू कॉलेज की शक्ल में आया.
इस तरह देखते ही देखते कॉलेज बना यूनिवर्सिटी
इसके बाद उनके बेटे सैयद महमूद ने मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज फंड समिति के सामने एक स्वतंत्र यूनिवर्सिटी की स्थापना का प्रस्ताव रखा. मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज पूरी तरह से पहले आवासीय शैक्षिक संस्थानों में से एक था, जहां रहकर स्टूडेंट्स तालीम हासिल कर सकते थे. पहले संस्थान कलकत्ता विश्वविद्यालय से सम्बद्ध था. साल 1885 में इसे इलाहाबाद विश्वविद्यालय से मान्यता मिली. इसके बाद कॉलेज की "द अलीगेरीयन" नामक पत्रिका निकलने लगी और यहां एक अलग विधि विद्यालय की स्थापना भी हो गई.
बढ़ती ही गई अहमियत
इसी बीच इस कॉलेज को यूनिवर्सिटी का दर्जा देने के लिए आंदोलन होने लगे. 1907 में लड़कियों के लिए एक अलग स्कूल भी स्थापित हुआ. 1920 में यह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बना. साल 1921 में भारतीय संसद के एक अधिनियम के जरिए इसे सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा मिला. एएमयू अधिनियम में 1981 के संशोधन के जरिए इसे प्रभावी रूप से अल्पसंख्यक दर्जा दिया था. आज इस कैंपस में 300 से ज्यादा कोर्स पढ़ाए जाते हैं और हर जाति और धर्म के बच्चों के लिए दरवाजे खुले हैं.
AMU में पढ़ रहे 30 हजार से ज्यादा बच्चे
यहां अफ्रीका, पश्चिम और दक्षिण एशिया से भी स्टूडेंट्स शिक्षा हासिल करने के आते हैं. कुछ कोर्सेस में सार्क और राष्ट्रमंडल देशों के छात्रों के लिए सीटें भी रजर्व हैं. यूनिवर्सिटी का कैंपस 467.6 हेक्टेयर में फैला हुआ है. यहां 37,327 से ज्यादा स्टूडेंट्स पढ़ रहे हैं. यूनिवर्सिटी में 1,686 शिक्षक और करीब 5610 नॉन-टीचिंग स्टाफ भी हैं. यूनिवर्सिटी में अब 117 अध्ययन विभाग है, जिसमें 13 संकाय, 3 अकादमी, 21 केंद्र और संस्थान और 350 से ज्यादा डिग्री-सर्टिफिकेट कोर्स चल रहे हैं. कैंपस में 80 हॉस्टल और 19 हॉल हैं. यहां कि मौलाना आजाद लाइब्रेरी में लगभग 13 लाख किताबें और दुर्लभ पांडुलिपियां हैं. अकबर के दरबारी फैजी द्वारा फारसी में अनुवादित गीता भी है और 400 साल पहले फारसी में अनुवादित महाभारत की पांडुलिपि भी यहां मिलेगी.
कई दिग्गज हस्तियों ने की यहां से पढ़ाई
एओमयू से पढ़ने वाले लोग आज दुनिया में डंका बजा रहे हैं. कई बड़े नेता, उर्दू लेखक और विद्वानों ने यहां से शिक्षा हासिल की. देश के तीसरे राष्ट्रपति डॉ जाकिर हुसैन और उप राष्ट्रपति रहे हामिद अंसारी, पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान भी इसी यूनिवर्सिटी से पढ़े हैं. यहां से 19 राज्यपाल, 17 मुख्यमंत्री और 12 देशों के राष्ट्राध्यक्ष निकल चुके हैं. हाल ही में इस कैंपस से निकली सबा हैदर ने अमेरिका में चुनाव जीता और अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश में भारत का परचम लहराया. यहां से निकले कितने ही स्टूडेंट्स देश-दुनिया में अपनी महक बिखेर रहे हैं, उनके नामों की फेहरिस्त बहुत लंबी हैं.