UPSC Success Story: आकांक्षा सिंह ने असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्य करते हुए यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के लिए रोजाना 8 घंटे का समय निकाला और लगातार तैयारी जारी रखी. चार असफल प्रयासों के बाद वह अपने पांचवे प्रयास में परीक्षा पास कर ऑल इंडिया 44वीं रैंक हासिस करने में सफल रहीं.
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Akanchha Singh UPSC Success Story: यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा का आयोजन हर साल किया जाता है. इस परीक्षा में लाखों उम्मीदवार शामिल होते हैं, लेकिन सफलता कुछ चुनिंदा उम्मीदवारों को ही मिलती है. इस परीक्षा में सफलता हासिल करने के लिए दृढ़ निश्चय और कड़ी मेहनत की आवश्यकता होती है. कई उम्मीदवार ऐसे होते हैं, जो एक से दो बार असफल होने के बार यूपीएससी से अपना मुंह मोड़ लेते हैं. जबकि कुछ उम्मीदवार ऐसे भी होते हैं, जो सफलता मिलने तक डटे रहते हैं. आज हम आपको एक ऐसी ही उम्मीदवार आकांक्षा सिंह के बारे में बताएंगे, जिन्होंने सपनों को हकीकत में बदलने की मिसाल पेश की हैं.
दरअसल, आजमगढ़ की रहने वाली आकांक्षा सिंह ने दृढ़ता और कड़ी मेहनत के दम पर यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा पास कर ऑल इंडिया 44वीं रैंक हासिल की है. यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में चार असफल प्रयासों के बाद, उन्होंने अपने पांचवें प्रयास में यह मुकाम हासिल किया है.
बिहार में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में काम करते हुए उन्होंने देश की सबसे कठिन परीक्षा के लिए समय निकाला और उसके लिए तैयारी भी की. आकांक्षा ने अपने बिजि एकेडमिक शेड्यूल से रोजाना 8 घंटे यूपीएससी की तैयारी के साथ निकाले. उन्होंने भूगोल (Geography) को अपने ऑप्शनल सब्जेक्ट के तौर पर चुना था. इसके अलावा उनके एकेडमिक बैकग्राउंड ने परीक्षा की तैयारी में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
उनकी शैक्षिक यात्रा उन्हें जमशेदपुर से, जहां उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की, ग्रेजुएशन की डिग्री के लिए दिल्ली के मिरांडा हाउस और बाद में पोस्ट ग्रेजुएशन और एमफिल की पढ़ाई के लिए जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी ले आई.
आकांक्षा प्रोडक्टिविटी बनाए रखने के लिए सेल्फ कॉन्फिडेंस, स्ट्रेटेजिक स्टडी प्लानिंग और रेगुलर ब्रेक के महत्व पर जोर देती हैं. अपने पिता, जो एक रिटायर्ड सरकारी अधिकारी है, उनसे प्रेरित होकर वह सार्वजनिक सेवा में अपना करियर बनाने के लिए प्रेरित हुईं.
आजमगढ़ में जन्मी और झारखंड और दिल्ली में शिक्षित, आकांक्षा अपनी उपलब्धियों के लिए अपनी परवरिश और शिक्षा को श्रेय देती हैं, जिससे बुधनपुर में उनके परिवार और समुदाय को गर्व होता है.
उनकी यात्रा दृढ़ता और खुद पर विश्वास की शक्ति को रेखांकित करती है, तथा दर्शाती है कि समर्पण से सबसे चुनौतीपूर्ण बाधाओं पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है.