Paris Panini Sandwiche: टेस्टी सैंडविच के मामले में अपनी पहचान बना चुके निकोलस ग्रोसेमी ने कभी भारत में पढ़ाई करने के मकसद से कदम रखा था. लेकिन आज वह 50 करोड़ रुपये के कारोबार के मालिक हैं. आइए जानते हैं यह कैसे संभव हुआ?
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Who is Nicolas Grossemy: आप किसी देश में स्टडी करने के लिए जाए और वहां करोड़ों का बिजनेस खड़ा कर दें. यह सुनने में जितना अच्छा लगता है, उससे भी ज्यादा ऐसा करने में मजा आएगा. एक फ्रांसीसी शख्स भारत बिजनेस स्टडी करने आया था. लेकिन उसने बेंगलुरु के फूड मार्केट में सफलता की जबरदस्त कहानी लिख डाली. टेस्टी सैंडविच चेन पेरिस पनीनी (Paris Panini) के फाउंडर निकोलस ग्रोसेमी (Nicolas Grossemy) ने 50 करोड़ रुपये का कारोबारी साम्राज्य बना डाला. एक स्टूडेंट से फूड बिजनेसमैन तक उनके सफर को हाल ही में GrowthX की तरफ से एक YouTube वीडियो में दिखाया गया था.
खाने बनाने के शौक से मिली बिजनेस शुरू करने की राह
वीडियो में ग्रोसेमी ने बताया कि वह फ्रांस में एक मामूली बैकग्राउंड से आते हैं. उनके माता-पिता दोनों टीचर थे. बड़े होने के साथ-साथ निकोलस ने अपनी मां की हेल्प से रसोई में खाना बनाना सीखा. खाने बनाते-बनाते कब यह उनके शौक में बदल गया, उन्हें भी पता नहीं लगा. अपने इस शौक को उन्होंने जुनून में बदलकर फूड बिजनेस में कदम रखा और आज उनका यह कदम अलग मुकाम पर पहुंच गया है.
कैसे शुरू हुई जर्नी?
22 साल की उम्र में निकोलस मास्टर डिग्री पूरी करने के लिए भारत आए. ब्रेड और सैंडविच को पसंद करने वाले निकोलस याद करते हुए बताते हैं कि कैसे सैंडविच बचपन में उनके भोजन का अहम हिस्सा था. उनका यह जुनून टेस्टी सैंडविच बनाने पर उनके फोकस करने का बेस बन गया. उनके इस शौक ने भारत के फूड मार्केट में पेरिस पनीनी को अलग बना दिया.
पहचान बनाने के लिए प्रोडक्ट का मजबूत नाम जरूरी
निकोलस प्रोडक्ट सेंट्रिक ब्रांडिंग में विश्वास करते हैं. वह फूड बिजनेस में कदम रखने वाले युवाओं को सलाह देते हैं कि वह एक ऐसे ब्रांड का नाम चुनें जो सीधे उनके प्रोडक्ट को शो करता हो. वह कहते हैं आपका ब्रांड का नाम ऐसा हो जो लोगों को नाम लेने के साथ ही आपके प्रोडक्ट से जोड़े. वह कहते हैं मजबूत पहचान बनाने के लिए यह जरूरी है.
क्या है फूड बिजनेस की कैलकुलेशन?
ग्रोसेमी फूड बिजनेस चलाने में वैल्यूएबल इनसाइट शेयर करते हैं. वह बताते हैं कि आप जो प्रोडक्ट बेच रहे हैं आमतौर पर उसकी लागत कुल खर्च का 28 प्रतिशत होती है. इसके अलावा 10 प्रतिशत किराया, लेबर कॉस्ट 15 परसेंट और एडमिनिस्ट्रेटिव कॉस्ट करीब 10 प्रतिशत होता है. इसके अलावा मार्केटिंग कॉस्ट 5-10 प्रतिशत के बीच रहता है. निकोलस बताते हैं कि यह सब खर्च निकालने के बाद करबी 15 प्रतिशत का प्रॉफिट बचता है.