Puma Vs Adidas: दो भाई, जिनकी दुश्मनी ने खड़े कर दिए दो बाहुबली ब्रैंड; कहानी प्यूमा और एडिडास की
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Puma Vs Adidas: दो भाई, जिनकी दुश्मनी ने खड़े कर दिए दो बाहुबली ब्रैंड; कहानी प्यूमा और एडिडास की

The Dassler Brothers Fued: प्यूमा और एडिडास. स्पोर्ट्स एक्सेसरीज की दुनिया के महारथी. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन दो कंपनियों के मालिक सगे भाई थे. 30 साल तक दोनों ने एक कंपनी चलाई. लेकिन बाद में दुश्मनी इतनी ज्यादा बढ़ गई कि दोनों अलग हो गए और इसी दुश्मनी से जन्म हुआ, इन दो बाहुबली कंपनियों का.

Puma Vs Adidas: दो भाई, जिनकी दुश्मनी ने खड़े कर दिए दो बाहुबली ब्रैंड; कहानी प्यूमा और एडिडास की

Adolf Dassler Vs Rudolf Dassler: जर्मनी. पश्चिमी यूरोप का देश. नॉर्थ में बाल्टिक और उत्तरी सागर और दक्षिण में आल्प्स के बीच बसा हुआ है. 19वीं सदी जर्मनी के लिए वो दौर साबित हुआ, जिसने इतिहास का नक्शा बदल दिया. साल 1900 तक जर्मनी यूरोप की सबसे बड़ी इकोनॉमी बन चुका था और दुनिया में अमेरिका और ब्रिटिश हुकूमत के बाद तीसरे पायदान पर था. जर्मनी में बड़े-बड़े उद्योगों का बोलबाला था. लेकिन इसी देश में ऐसे दो भाई जन्मे, जिन्होंने साथ-साथ एक कंपनी शुरू की, लेकिन बाद में जाकर उनके रिश्ते में इतनी कड़वाहट आ गई कि एक ही कब्रिस्तान के दो छोरों पर उनको दफनाया गया.

हो गई पिक्चर शुरू

भाइयों और बहनों, जरा कुर्सी की पेटी बांध लीजिए क्योंकि हम जा रहे हैं हर्ज़ोगेनौराच. जर्मन साम्राज्य का एक शहर. जर्मनी के बवेरिया राज्य में औराच नदी के तट पर बसा हुआ है. आज से करीब 126 साल पहले जूते की कंपनी में काम करते थे क्रिस्टोफ़ डास्लर. उनकी पत्नी का नाम था पॉलिना डास्लर. 1898 में उनके घर एक लड़के का जन्म हुआ. नाम रखा गया रूडॉल्फ (रूडी). रूडॉल्फ के तीन छोटे भाई बहन थे फ्रिट्ज, एडॉल्फ (आदी) और एक बहन मैरी.

भाई-बहनों का बचपन बाकी बच्चों की तरह बीतने लगा. क्रिस्टोफ चाहते थे कि रूडॉल्फ पुलिस में जाए और एडॉल्फ बेकरी का काम करें. लेकिन शायद तकदीर को कुछ और ही मंजूर था. 

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चुन लिया जूते बनाने का काम

1913 में रूडी एक बेकर की दुकान में काम करने लगा और रोजी-रोटी कमाने के लिए उसने अपने पंजे पैने करने की कोशिश की. लेकिन जल्द ही उसे समझ आ गया कि वह इस काम के लिए नहीं बना है. उसने वहां से अप्रेंटिसशिप खत्म की और अपने पिता के जूते बनाने के हुनर को अपनाने का सोचा.

जबकि एडॉल्फ का सपना एथलीट बनने का था. उसने कई गेम्स में हिस्सा भी लिया था. अपने अनुभव से उसने जाना कि किसी भी खेल में खिलाड़ियों के पास अच्छे जूते नहीं हैं. उसका मानना था कि अगर खास तरह के जूते हों तो खिलाड़ियों की परफॉर्मेंस और भी बेहतर हो जाएगी. 

दुनिया में छिड़ा पहला वर्ल्ड वॉर

इससे पहले कि दोनों भाई अपने सपने पूरे कर पाते, साल 1914 में पहला विश्व युद्ध छिड़ गया. दुनिया मरने-मारने को तैयार हो गई. बम और गोलियों की गूंज हर ओर सुनाई देने लगी. फिजाओं में बारूद भर गया था. तभी रूडी को सेना में भर्ती करने के बाद जंग के मैदान में भेज दिया गया. 

जब लड़ाई खत्म हुई तो वह वापस हर्ज़ोगेनौराच लौटा. साल 1924 में अपनी मां के किचन में ही एक छोटी सी जूते की फैक्टरी लगा ली. उसकी मदद की जूते बनाने में महारत रखने वाले कार्ल जेक ने. अपनी छोटी सी दुकान में ही उसने खिलाड़ियों के लिए जूते और सैंडल्स बनाने शुरू कर दिए. 

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जर्मनी की इकोनॉमी हो गई हलकान

युद्ध की मार से उस वक्त जर्मनी की अर्थव्यवस्था कराह रही थी. हालात इतने बदतर थे कि जूते बनाने के लिए जो कच्चा माल चाहिए, उसके भी लाले पड़ चुके थे. लेकिन वह हार मानने वालों में से नहीं था. आदी ने अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाए और युद्ध की मार झेलने वाले गांवों में जाना शुरू किया. वहां उसने सेना के बेकार पड़े सामान जैसे हेलमेट, पानी के थैलियों की खाल और पैराशूट के कपड़े इकट्ठा किए और इन्हीं चीजों से जूते बनाए. 

इतना ही नहीं. दिक्कत सिर्फ कच्चे माल की ही नहीं थी. बिजली की कम सप्लाई ने भी दिमाग की बत्ती गुल कर रखी थीं. इस वजह से बहुत कम समय तक ही मशीनें चल पाती थीं. लेकिन इस समस्या का निपटारा भी उसने जुगाड़ से कर दिया.

आदी ने चमड़े की मिलिंग मशीन को साइकिल से जोड़ा और उसमें डायनमो लगा दिया. इसी जुगाड़ से उसने कई साल तक काम चलाया.  

रूडी ने मिलाया आदी से हाथ

दो साल बाद रूडी ने भी आदी का शू बिजनेस जॉइन कर लिया और उन्होंने मिलकर एक कंपनी बनाई, जिसका नाम था गेब्रुडर डास्लर शूफैब्रिक. इसका शॉर्ट फॉर्म था Geda. आदी इस कंपनी में इनोवेटर था, जो जूते बनाने की तकनीकी बारीकियों को देखता था. जबकि रूडी ने सेल्स, मार्केटिंग और प्रमोशन का जिम्मा संभाला.

दोनों भाई 1925 में चमड़े से फुटबॉल शूज बनाने लगे. इन जूतों के निचले हिस्से में स्पाइक्स लगे हुए थे, जो उस दौर में अनोखा इनोवेशन था. उस वक्त आदी-रूडी के साथ दर्जनभर लोग काम करते थे और वे एक दिन में 50 जूते बनाते थे.

फिर आया साल 1928, जब बहुत कुछ शुरू हुआ और बदला. एम्स्टर्डम में ओलंपिक खेलों का आयोजन किया गया. पूरी दुनिया का मीडिया और लोग वहां पहुंचे हुए थे. 800 मीटर की दौड़ में डास्लर कंपनी के बनाए हुए जूते पहनकर लीना रैडके ने गोल्ड मेडल जीता और दोनों भाइयों की बल्ले-बल्ले हो गई. उनकी वो थ्योरी भी सच हो गई कि आप तेज दौड़ सकते हैं, शानदार परफॉर्म कर सकते हैं लेकिन हमारे बनाए हुए जूतों से.

फिर क्या था रूडी और आदी की चांदी होने लगी. शोहरत धीरे-धीरे बढ़ने लगी और नोट बरसने लगे. उस वक्त जर्मनी में हिटलर की नाजी पार्टी का सत्ता में उदय हो रहा था. जब नाजी पार्टी बन रही थी, तो डास्लर ब्रदर्स ने इसमें मौका देखा. आदी ने हिटलर यूथ क्लब तक पहुंचने के लिए सारे हथकंडे अपनाए और 1930 के मध्य तक डास्लर ब्रदर्स जर्मनी के घरों में जाना-पहचाना नाम बन चुके थे.

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ओलंपिक में डास्लर ब्रदर्स का कमाल

उनकी कंपनी 1932 लॉस एंजिलिस और 1936 के बर्लिन ओलंपिक में खिलाड़ियों की फेवरेट बन गई और इसमें एक कमाल भी हो गया. अमेरिकी एथलीट जैसे ओवेन्स ने डास्लर ब्रदर्स के बनाए हुए जूते पहनकर चार गोल्ड मेडल अपने नाम किए और कंपनी के नाम के चर्चे हर जगह होने लगे. सेल्स रॉकेट हो गई और ना सिर्फ स्पोर्ट्स बल्कि इंटरनेशनल लेवल पर कंपनी का नाम सुनाई देने लगा. 

आदी और रूडी को भी शायद इतनी कामयाबी का यकीन नहीं रहा होगा. स्पाइक्स की बिक्री एक साल में दो लाख तक पहुंच गई. अब वे सिर्फ फुटबॉल ही नहीं बल्कि बास्केटबॉल, हॉकी और बेसबॉल खिलाड़ियों के लिए भी जूते बना रहे थे. 

लेकिन कहते हैं कि ना कि जब खुशी घर में जश्न मना रही होती है तो गम खिड़की से झांक रहा होता है. और हुआ भी वही.

1939 में दुनिया में दूसरा विश्व युद्ध छिड़ गया. जंग के कारण कच्चे माल की भारी कमी हो गई, खास तौर पर चमड़े की. लेकिन बावजूद कंपनी खिलाड़ियों के लिए जूते बनाती रही. जब दूसरे विश्व युद्ध के आखिरी दो साल बचे तो फैक्टरी को बंद कर उनको हथियार बनाने का फरमान सुना दिया गया.

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रूडी की चाल ने मचा दिया क्लेश

लेकिन उस वक्त रूडी के मन में लालच बढ़ गया. वह कंपनी का पूरा कंट्रोल अपने हाथ में चाहने के सपने पालने लगा. यहां तक कि उसने अपनी बहन मैरी के बेटों को भी कंपनी में नौकरी देने से इनकार कर दिया ताकि कोई और परिवार का सदस्य कंपनी का हिस्सा ना बन पाए. इसका नतीजा बहुत बुरा हुआ. मैरी के दोनों बच्चों को युद्ध के मैदान में भेज दिया गया और वे मारे गए. इसके बाद परिवार में कलह मच गई और रूडी और आदी की पत्नियों की एक दूसरे से जमकर तू-तू-मैं-मैं होने लगी.

इसके बाद 1940 में आदी को सेना में भर्ती किया गया लेकिन जल्द ही उसे छुट्टी दे दी गई क्योंकि उसकी कंपनी में ज्यादा जरूरत महसूस हुई. रूडी चूंकि पहला विश्व युद्ध लड़ चुका था इसलिए उसे 1943 में जंग में भेजा गया, जिससे वह खफा हो गया. उसे लगा कि उसे मैदान-ए-जंग में भेजे जाने के पीछे उसका भाई जिम्मेदार है और इस तरह आदी कंपनी पर पूरी तरह अपना हक जमा लेगा. साल 1943 तक गेब्रूडर डैसलर शूफब्रिक जर्मनी में इकलौती स्पोर्ट्स शूज बनाने वाली कंपनी बची थी. 

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रूडी के आए बुरे दिन

रूडी भले ही दुश्मनों से लोहा ले रहा था. लेकिन उसका ध्यान पूरा फैक्टरी पर था. उसने एक प्लान बनाया. जब वह टुस्चिन में जंग के मैदान में था तो वहां से अपनी पोस्ट से भाग निकला और किसी तरह वापस हर्ज़ोगेनौराच आ गया लेकिन उसे नाजी की सीक्रेट सर्विस पुलिस ने गिरफ्तार कर कैदखाने में डाल दिया. जब तक जंग चली वह जेल की सलाखों के पीछे गुस्से की आग में उबलता रहा. जबकि आदी बिजनेस को और ऊंचाइयों पर पहुंचाने में लगा रहा. 

जंग तो खत्म हो गई लेकिन रूडी का खराब वक्त नहीं. अमेरिकियों ने नाजी पार्टी से जुड़े लोगों को सजा देने का ऐलान कर दिया और सबसे पहले रूडी को सीक्रेट सर्विस के साथ रिश्तों पर शक को लेकर गिरफ्तार किया गया. उसने आवाज उठाने की कोशिश की. लेकिन आदी ने नाजियों के साथ उसके संबंधों की पुष्टि कर दी और रूडी का केस खारिज हो गया. उसे एक और साल कैद में रहना पड़ा और बिजनेस को पूरी तरह आदी ने टेकओवर कर लिया. इससे उसकी ताकत और भी ज्यादा बढ़ गई.

आदी के लिए बढ़ी मुश्किलें लेकिन...

साल 1946 में आदी के लिए उस वक्त मुश्किलें खड़ी हो गईं, जब एंटी नाजी पैनल ने उनको बम बनाने वाला शख्स माना और उसके जेल जाने तक की नौबत आ गई. इतना ही नहीं, उसे कंपनी के मैनेजमेंट से भी हटाए जाने की तलवार तक लटक गई थी. ये सब देखकर खून के घूंट पीकर बैठे रूडी ने दिमाग चलाना शुरू किया. उसके दिमाग में पूरा बिजनेस हथियाने का प्लान दौड़ने लगा. इसलिए अपने बयान में उसने दावा किया कि एडॉल्फ ही फैक्ट्री में हथियार बनाने का मास्टरमाइंड है और वह खुद बेगुनाह है और अगर वह जेल कैंप में नहीं होता तो उसे रोक लेता. 

लेकिन पैनल ने रूडी की एक नहीं सुनी. आदी ने पैनल के फैसले को चुनौती दी और सुनवाई में उसे निर्दोष करा दे दिया गया. इतना ही नहीं कंपनी का मैनेजमेंट दोबारा आदी के पास आ गया और रूडी को एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी.

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और फिर टूटा सब्र का बांध

जंग के बीच ही भाइयों के रिश्ते में इतनी कड़वाहट आ चुकी थी कि दोनों एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहा रहे थे. बात इस हद तक पहुंच चुकी थी कि वहां से अलग होने के अलावा कोई चारा ही नहीं बचा था. 

दोनों भाई उस वक्त तक अपनी पत्नियों और बच्चों के साथ एक ही घर में रहते थे. लेकिन दोनों भाइयों ही नहीं उनकी पत्नियों के बीच भी जमकर खटपट होती थी. 

ये किस्सा तो रह गया था...

दरअसल, जंग के दौरान कड़वाहट बढ़ाने में इस किस्से का बेहद अहम रोल था. हुआ यूं कि जब दुश्मन के जहाज ऊपर से बम गिरा रहे थे. तब रूडी और आदी ने अपने परिवारों के साथ बम शेल्टर में शरण ले ली. 

आदी जब बम शेल्टर में आया तो उसने दुश्मन के जहाजों के संदर्भ में कहा कि ये कमीने फिर वापस आ गए. लेकिन वहां मौजूद रूडी को ऐसा लगा कि आदी ने उसे और उसके परिवार के लिए ये शब्द कहे हैं. उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया.

कहते हैं जब रिश्तों में कड़वाहट आ जाए तो वे नासूर बन जाते हैं. अब तक डास्लर ब्रदर्स का खून का रिश्ता ऐसा ही हो चुका था. कभी बचपन में एक-दूसरे का साथ ना छोड़ने वाले भाई अलग हो जाने पर आमादा थे. हुआ भी वही. 30 साल एक साथ काम करने के बाद 1948 में दोनों भाइयों ने कंपनी बंद की और अलग हो गए. 

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दोनों भाई हो गए अलग और...

1948 में बड़े भाई रूडी ने रूडा नाम से कंपनी खोली. लेकिन बाद में उसे प्यूमा कर दिया. इसके अगले साल 1949 में छोटे भाई आदी ने Adidas नाम की कंपनी शुरू की. पुरानी कंपनी के सामान से लेकर वर्कर्स तक का बंटवारा किया गया. कहा जाता है कि अलग होते वक्त शायद आखिरी बार था, जब दोनों भाइयों ने आपस में बात की थी. 

हर्ज़ोगेनौराच में औराच नदी शहर के बीचोबीच बहती है. प्यूमा की फैक्टरी दक्षिण में थी. जबकि एडिडास की उत्तर में. 

बंट गए कर्मचारी और सामान

आदी की कंपनी एडिडास ने ट्रेन स्टेशन और पुरानी कंपनी के दो-तिहाई कर्मचारी रख लिए. कर्मचारी आदी के साथ इसलिए भी रहना चाहते थे क्योंकि उसका अप्रोच प्रोडक्ट डेवेलपमेंट पर था, ना की रूडी की तरह सेल्स पर. रूडी के वुर्जबर्गर स्ट्रीट पर अपनी फैक्ट्री जमाई और बाकी बची एक तिहाई वर्कफोर्स के साथ काम पर लग गया. अब शहर में दोनों भाइयों की कंपनियां चल रही थीं, जिनके बीच गला काट मुकाबला था. शहर में नौकरी देने वाली ये दो सबसे बड़ी कंपनियां थीं. 

शहर की फिजाओं में नफरत का जहर

आलम ये हो गया था कि हर्ज़ोगेनौराच को 'मुड़ी हुई गर्दनों' का शहर कहा जाने लगा. क्योंकि हर कोई यही देखता था कि सामने वाले शख्स ने किस कंपनी के जूते पहने हुए हैं. भाइयों की दुश्मनी का जहर इस कदर शहर की फिजाओं में घुल गया था कि उसकी इकोनॉमी और कल्चर पर इसका बेहद गंदा असर पड़ा. 

हर्ज़ोगेनौराच में रहने वाला हर शख्स या तो एडिडास में काम करता था या प्यूमा में. इन कंपनियों में काम करने वाले लोग आपस में बात तक नहीं करते थे. इतना ही नहीं, ना तो लोग दूसरी कंपनी के स्टाफ को डेट कर सकते थे ना ही शादी. एडिडास और प्यूमा के कर्मचारियों के लिए अलग बार, बेकरी और सैलून तक अलग-अलग थे. 

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लोगों ने जमकर उठाया फायदा

कई लोगों ने भाइयों की इस दुश्मनी का फायदा भी उठाया. कई बाद स्टाफ के लोग रूडी की कंपनी में जानबूझकर एडिडास के जूते पहनकर आ जाते थे. यह देखकर गुस्से से बौखलाया रूडी उनको बेसमेंट से जाकर प्यूमा के जूते पहनने को कहता था. इस तरह से लोगों को मुफ्त में नए जूते मिल जाया करते थे.

हर्ज़ोगेनौराच शहर में दो बड़े फुटबॉल क्लब थे. पहला FC हर्ज़ोगेनौराच और दूसरा ASV हर्ज़ोगेनौराच. इन दोनों को प्यूमा और एडिडास स्पॉन्सर करते थे. इसलिए न सिर्फ खिलाड़ियों बल्कि इनके फैन्स के बीच भी एक निजी दुश्मनी का बीज मन में फूट गया था. 

शह-मात का दौर

फिर आया साल 1954 का फुटबॉल वर्ल्ड कप और शुरू हो गया दोनों कंपनियों में शह और मात का खेल. वेस्ट जर्मनी इस वर्ल्ड कप में हिस्सा ले रही थी. यह पहला ऐसा वर्ल्ड कप था, जिसका सीधा प्रसारण टीवी पर होना था. एडिडास और प्यूमा दोनों ही अपनी-अपनी ब्रांडिंग और इंटरनेशनल लेवल पर छाप छोड़ने का मौका गंवाना नहीं चाहते थे. 

लेकिन वेस्ट जर्मनी की नेशनल टीम का जो मैनेजर था, उसकी रूडी से बनती नहीं थी. इसलिए उसने रूडी को वेस्ट जर्मनी टीम की स्पॉन्सरशिप हासिल नहीं होने दी. यहां बाजी हाथ लगी एडिडास के. उसने टीम के प्लेयर्स को जूते और किट सप्लाई किए. वेस्ट जर्मनी टीम ने शानदार प्रदर्शन किया और हंगरी को हराकर पहला वर्ल्ड कप खिताब जीता. 

देखते ही देखते एडिडास के भी भाव बढ़ गए. उसने जमकर इंटरनेशनल कवरेज लूटी. अब एडिडास की इंटरनेशनल शू मार्केट में धाक जमने लगी और वह प्यूमा से भी बड़ा ब्रांड बन गया. अदावत का दौर इसके बाद भी चलता रहा. फिर आया साल 1970, जहां बिजनेस बैटल में जीत मिली प्यूमा को. 

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'पेले पैक्ट' से किसका हुआ फायदा?

दरअसल उस वक्त दुनिया के सबसे मशहूर एथलीट थे ब्राजील के दिग्गज पेले. लेकिन टूर्नामेंट से पहले दोनों भाइयों ने 'पेले पैक्ट' किया था. यानी दोनों में से कोई भी कंपनी पेले को स्पॉन्सर नहीं करेगी क्योंकि नीलामी की जंग बहुत महंगी पड़ रही थी. 

लेकिन रूडी कहां मानने वाला था. उसने यह समझौता तोड़ दिया और डील हासिल कर ली. पेरू के खिलाफ मुकाबला होना था. पेले ने रेफरी से मैच शुरू करने में थोड़ी देर की मांग की ताकि वह अपने जूते के फीते बांध सकें. जैसे ही पेले झुके तो दुनिया भर के कैमरों की नजरें उनके प्यूमा किंग बूट्स पर चली गई. पेले का वैसे भी दुनिया में कोई सानी नहीं था. उन्होंने 1970 के वर्ल्ड में धुआंधार गोल मारे और ब्राजील को वर्ल्ड कप जितवा दिया. स्टार पावर की सुपर ब्रांडिंग का फायदा प्यूमा को मिला और लोगों की नजर में उसकी शोहरत बढ़ी और कमाई भी. पेले पैक्ट तोड़ने के कारण दोनों भाइयों की दुश्मनी और भी गहरी होती चली गई. 

दोनों कंपनियों की जमकर हुई चांदी

अगले तीन दशक में मुहम्मद अली और जो फ्रेजियर के साथ एडिडास ने डील की जबकि ब्राजील फुटबॉल टीम की डील हुई प्यूमा से. दोनों कंपनियों का कद स्पोर्ट्स एक्सेसरीज की दुनिया में बढ़ता जा रहा था. खेलों की दुनिया में ये दोनों अब ब्रांड बन चुके थे. एक तरफ एडिडास ने अलग-अलग खेलों के लिए कस्टमाइज जूते पेश किए और उसका बिजनेस तेजी से बढ़ रहा था. जबकि  रूडी अपनी परंपरागत सोच के कारण सिर्फ बिक्री पर ही ध्यान दे रहा था. वह दशकों तक सिर्फ एडिडास का पीछा ही करता रहा. 

मरने के बाद भी दूर-दूर

अगर यूं कहें कि  दोनों भाइयों के दुश्मनी के कारण 70 साल तक हर्ज़ोगेनौराच शहर बंटवारे और नफरत की आग में झुलसता रहा तो गलत नहीं होगा. साल 1974 में रूडी का निधन हो गया और कंपनी की बागडोर उसके बेटे के हाथों में आ गई. चार साल बाद यानी 1978 में आदी का चल बसा और एडिडास की कमान उसके बेटे के हिस्से आई. दोनों भाइयों की नफरत कब्रिस्तान में भी नजर आई. दोनों को एक ही श्मशान में एक-दूसरे से जितना दूर हो सका, दफनाया गया. यानी दोनों भाई ना तो जीते-जी साथ रहना चाहते थे, ना ही मरने के बाद एक-दूसरे के करीब. 

समय ने भरे घाव मगर पूरे नहीं...

यूं तो जिंदा रहते हुए दोनों भाइयों ने अलग होने के बाद कभी बात नहीं की. लेकिन वक्त ने घाव पर थोड़ा मरहम लगाने का काम जरूर किया. रूडी का पोता, जो बचपन से जवानी तक प्यूमा के जूते पहनकर बड़ा हुआ, वह एडिडास में चीफ लीगल काउंसल के तौर पर काम करता है. जब उसने यह कदम उठाने का सोचा था, तब उसके परिवारवालों ने उसे खूब रोका. इतना ही नहीं, शहर के लोगों ने भी उसे मना किया. लेकिन उसने एक नहीं सुनी. तब उसने कहा था, 'दुश्मनी काफी साल पहले थी. अब वह इतिहास बन चुकी है.'

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1987 में आदी के बेटे होर्स्ट डास्लर ने एडिडास कंपनी एक फ्रेंच बिजनेसमैन बर्नार्ड तापी को बेच दी थी. जबकि दूसरी ओर, रूडी के बेटों आर्मिन और जेरेड डास्लर ने प्यूमा के 72% शेयर स्विस कंपनी कोसा लीबरमैन को बेच दिए. स्टॉक मार्केट में लिस्ट होने के बाद कंपनियों का मालिकाना हक अब इन दो परिवारों के पास नहीं रह गया है.  

यूं खत्म हुई दुश्मनी!

अगर आप सोच रहे हैं कि दोनों भाइयों की मौत के बाद दुश्मनी खत्म हो गई थी तो ऐसा पूरी तरह नहीं हुआ. उनके दुनिया से जाने के भी शहर में कई दशकों तक अदावत का दौर चला. लेकिन अंत हर चीज का होता है. साल 2009 में एडिडास और प्यूमा ने एक दोस्ताना फुटबॉल मैच में हिस्सा लिया. इसका मकसद सिर्फ यह दिखाना था कि अब दोनों कंपनियां ही नहीं बल्कि शहर के लोगों के मन में जो दुश्मनी बसी हुई है, वह भी खत्म हो गई है.

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