Vat Savitri Vrat 2023: वट सावित्री व्रत में क्यों करते हैं बरगद पेड़ की पूजा? जानें इस दिन चने खाने का महत्व
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Vat Savitri Vrat 2023: वट सावित्री व्रत में क्यों करते हैं बरगद पेड़ की पूजा? जानें इस दिन चने खाने का महत्व

Vat Savitri Vrat Katha: ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भी वट सावित्री व्रत रखने की परंपरा है जो अलग-अलग मतों से प्रचलित है. लेकिन इस व्रत में सबसे ज्यादा महत्व 2 चीजों को माना गया है. एक तो वट का वृक्ष जिसकी इस व्रत में पूजा और परिक्रमा की जाती है और दूसरा काला चना जिसे प्रसाद रूप में रखा जाता है.

वट सावित्री व्रत में क्यों है बरगद और काले चने का महत्व

Mythology Story Of Vat Savitri Vrat : हिंदू धर्म में व्रत-त्योहार का विशेष महत्व है. ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को वट सावित्री का व्रत सुहागिन महिलाएं रखती हैं. देश के कुछ भागों में ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भी वट सावित्री व्रत रखने की परंपरा है जो अलग-अलग मतों से प्रचलित है. लेकिन इस व्रत में सबसे ज्यादा महत्व 2 चीजों को माना गया है. एक तो वट का वृक्ष जिसकी इस व्रत में पूजा और परिक्रमा की जाती है और दूसरा काला चना जिसे प्रसाद रूप में रखा जाता है. ऐसा क्यों है और इसके पीछे का क्या रहस्य है.

चने का महत्व 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब सत्यवान के प्राण लेकर यमराज यमलोक जा रहे थे तब अपने सत्यवान की पत्नी सावित्री भी यमराज का पीछा कर रही थी. यमराज ने सावित्री से पीछा छुड़ाने के लिए पति को जीवित कराने के अलावा कराने के कोई भी वरदान मांगने को कहा.सावित्री ने अपनी चतुराई से एक ही वरदान में लपेटकर 3 वरदान मांग लिए. सावित्री ने यह वरदान मांगा कि उनके सास ससुर अपनी गोद में बैठाकर अपने सौ पोतों को चांदी के चम्मच से भोजन कराएं. यमराज ने भी सावित्री से पीछ छुड़ाने के लिए तथास्तु कह दिया, लेकिन फिर भी सावित्री लौटकर जाने के बजाय पीछे चलती रही. 

यमराज ने कुछ दूर आगे जाने के बाद पीछे देखा तो सावित्री उनके पीछे-पीछे आती दिखीं.यमराज ने फिर सावित्री से कहा कि वरदान तो दे दिया है अब क्यों पीछे आ रही हो. तब सावित्री ने कहा कि आपने जो वरदान दिया है वह बिना पति के पूरा कैसे हो सकता है. मैं पतिव्रता पत्नी हूं जब पति ही नहीं होंगे तो सौ पुत्र कहां से होंगे. यमराज को तब अहसास हुआ कि वह गलती कर बैठे हैं. अपने वरदान को सत्य करने के लिए उन्हें सत्यवान की आत्मा को मुक्त करना पड़ा. ऐसी कथा है और मान्यता है कि यमराज ने तब काले चने के रूप में सावित्री को सत्यवान की आत्मा को लौटा दिया और कहा कि इसे अपने मुंह से सत्यवान के मुंह में फूंक देना. इससे सत्यवान जीवित हो जाएगा. इस समय से ही वट सावित्री पूजा में काले चने का प्रयोग किया जाने लगा. 

क्यों करते हैं बरगद पेड़ की पूजा

धार्मिक मान्यता के अनुसार बरगद वृक्ष में त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश का वास होता है. ऐसे में इस पेड़ की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है. क्योंकि बरगद के पेड़ की आयु बहुत लंबी होती है इसलिए इसे अक्षय वृक्ष भी कहा जाता है. ऐसे में विवाहित महिलाएं द्वारा इस वृक्ष की पूजा करने से उनके पति की आयु लंबी होती है. इसके अलावा दांपत्य जीवन में चल रही परेशानियां भी दूर हो जाती हैं.  

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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