10वीं के बाद छोड़ी पढ़ाई, 18 घंटे किया काम, फूलों की खेती से हर साल 70 करोड़ कमाता है यह शख्‍स
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10वीं के बाद छोड़ी पढ़ाई, 18 घंटे किया काम, फूलों की खेती से हर साल 70 करोड़ कमाता है यह शख्‍स

Floriculture: आपने ऐसे कई लोगों के बारे में सुना होगा, जिन्होंने कम पढ़े-लिखे होने के बावजूद अपनी मेहनत और लगन से खेती-बाड़ी में सफलता हासिल की. आज वे एक सफल किसान हैं और अच्छी कमाई भी कर रहे हैं. बेंगलुरु के डोड्डबल्लापुर से आने वाले श्रीकांत बोलापल्ली ऐसे ही एक किसान हैं. 

Floriculture Farming

Agriculture News: आपने ऐसे कई लोगों के बारे में सुना होगा, जिन्होंने कम पढ़े-लिखे होने के बावजूद अपनी मेहनत और लगन से खेती-बाड़ी में सफलता हासिल की. आज वे एक सफल किसान हैं और अच्छी कमाई भी कर रहे हैं. ऐसे लोग समाज के लिए उदाहरण होते हैं, जो कृषि को को इनकम का अच्छा सोर्स मानते हैं और बाधाओं के बावजूद सफलता हासिल करते हैं. बेंगलुरु के डोड्डबल्लापुर से आने वाले श्रीकांत बोलापल्ली डिटर्मिनेशन और नई चीजें सीखने की आदत का एक शानदार उदाहरण हैं. सिर्फ 10वीं तक पढ़ाई-लिखाई कर पाने और गरीबी झेलने के बावजूद उन्होंने यह साबित कर दिया है कि खेती में सफल होने के लिए पैसा या डिग्री जरूरी नहीं है.

श्रीकांत ने "ओम श्री साई फ्लॉवर" नाम का फार्म बनाया है, जहां वे फूलों की खेती करके सालाना 60-70 करोड़ रुपये तक की कमाई करते हैं. पिछले 25 सालों से वह 50 एकड़ ज़मीन पर खेती कर रहे हैं. इस जमीन में से 10 एकड़ में सिर्फ शिमला मिर्च उगाते हैं और बाकी 40 एकड़ में गुलाब और गेंदे जैसे फूल उगाते हैं. आइए अब जानते हैं इस सफल किसान की कहानी।

पारंपरिक तरीकों को छोड़कर अपनाई नई तकनीक  

कृषि जागरण की रिपोर्ट के मुताबिक श्रीकांत बताते हैं कि उन्होंने बहुत कम उम्र में ही अपने परिवार का सहारा बनने के लिए तीन साल तक पढ़ाई छोड़ दी थी. उस समय इतनी कमाई नहीं हो पाती थी कि वो अपने परिवार का लोन चुका पाते. मगर, 1995 में उनके लिए उम्मीद की किरण जगी. उनके गांव के सांसद ने उन्हें बेंगलुरु में फूलों की खेती का तरीका सीखने का मौका दिया. वहां उन्होंने आधुनिक खेती के बारे में जाना और फिर पारंपरिक तरीकों को छोड़कर नई तकनीक अपनाई. 

आधुनिक तकनीक से खेती में सफलता

आज उनके फार्म पर कई आधुनिक उपकरण मौजूद हैं. उनका कहना है कि "खेत में पॉली हाउस, ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई सिस्टम और सोलर पैनल लगाए गए हैं. इन नए तरीकों से खेती करने में कम मेहनत लगती है और ज्यादा पैदावार होती है."अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए श्रीकांत बताते हैं कि "मुझे शुरू से इन तकनीकों के बारे में नहीं पता था. यह सब तब सीखा जब मुझे बेंगलुरु के फूल फार्म में काम करने का मौका मिला. पहले तो मुझे थोड़ा डर लग रहा था." लेकिन मुश्किलें श्रीकांत का हौसला कम नहीं कर सकीं. वह दिन में 18 घंटे काम करते थे और उन्हें 1000 रुपये मिलते थे. इतनी कम कमाई में परिवार का खर्च चलाना मुश्किल था, इसलिए उन्होंने 1997 में फूलों का कारोबार शुरू करने का फैसला लिया. जिसमें उन्हें काफी फायदा हुआ और आज वह अच्छी-खासी कमाई कर रहे हैं. 

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