Pak Army Chief: क्या चल रहा है विवाद, कैसे होती है नियुक्ति और कौन हैं मजबूत दावेदार
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Pak Army Chief: क्या चल रहा है विवाद, कैसे होती है नियुक्ति और कौन हैं मजबूत दावेदार

Pakistan Army Chief: पाकिस्तान को इसी महीने नया आर्मी चीफ मिलने वाला है. क्योंकि 29 नवंबर के बाद जनरल कमर जावेद बाजवा रिटायर हो रहे हैं. हालांकि इमरान खान चाहते हैं कि अगले चुनाव तक बाजवा इस पद पर बने रहें लेकिन ना तो सरकार ये चाहती है और ना खुद बाजवा. ऐसे में हम आपको पाकिस्तान आर्मी चीफ की रेप में आगे चल रहे नाम और उनकी पूरी डिटेल बताने जा रहे हैं साथ ही यह भी बताएंगे कि किस तरह पाकिस्तान आर्मी चीफ का चुनाव होता है.

Pak Army Chief: क्या चल रहा है विवाद, कैसे होती है नियुक्ति और कौन हैं मजबूत दावेदार

Pakistan Army Chief: पाकिस्तान की नई नवेली सरकार के सामने एक बेहद मुश्किल फैसला करने का वक्त आ गया है. वो है देश आर्मी चीफ की नियुक्ति. क्योंकि जनरल कमर जावेद बाजवा ने भी 29 नवंबर के बाद इस पद बने रहने की बात से इनकार कर दिया है. इसके अलावा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और उनके साथियों ने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और राष्ट्रपति आरिफ अल्वी की उस मांग को खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने बाजवा को पद पर बनाए रखने की बात कही थी. ऐसे में कम तजुर्बे वाली शाहबाज शरीफ सरकार के सामने यह बड़ा चैलेंज होगा कि वो किसको यह बड़ी जिम्मेदारी सौंपते हैं. 

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हालांकि इस बारे में पाकिस्तान के मौजूदा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का बड़ा बयान सामने आया है. उन्होंने एक न्यूज चैनल से बात करते हुए कहा है कि फौज में आला पदों पर अफसरों की नियुक्ति के मामले में कोई जल्दबाजी नहीं है. ये फैसला मुनासिब वक्त पर लिया जाएगा. इसके अलावा आपको यह भी बता दें कि आम तौर पर प्रधानमंत्री को इस बारे में डिटेल्स भेजने का अमल नवंबर के मध्य में शुरू होता है. जियो न्यूज ने पाकिस्तान मुस्लिम लीग के जराए के हवाले से बताया कि शहबाज शरीफ इस बार सीनियरटी को तवज्जो दे सकते हैं. इसके अलावा वो रिटायर होने वाले आर्मी चीफ से भी मशविरा कर सकते हैं. हालांकि यह लाजमी नहीं है.

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बाजवा का कार्यकाल बढ़ाना चाहते हैं इमरान
पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की बात करें तो वो जनरल बाजवा का कार्यकाल बढ़ाना चाहते हैं. उनका कहना था कि आने वाले चुनावों तक जनरल कमर जावेद बाजवा के कार्यकाल को बढ़ा दिया जाए. खान की दलील थी कि चुनाव बाद चुने जाने वाले प्रधानमंत्री को इसका फैसला करना चाहिए. मौजूद प्रधानमंत्री (शहबाज शरीफ) के पास इसका हक नहीं है कि वो किसको इस ओहदे पर बिठाएं. इतना ही नहीं पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने भी इस मामले में मामले में मशवरा देने की बात की थी. 

अपनी कैबिनेट में प्रस्ताव रख चुके हैं इमरान खान
मौजूदा आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा 2016 से इस पद पर बने हुए हैं. नवंबर के आखिरी हफ्ते में रिटायर्ड हो जाएंगे. उनका कार्यकाल अगस्त में प्रधानमंत्री इमरान खान के ज़रिए बढ़ा दिया गया था. हाल ही में डीजीआईएसआई ने प्रेस कांफ्रेंस के दौरान बताया था कि इमरान खान ने मार्च में अपनी कैबिनेट के दौरान जनरल कमर जावेद बाजवा को अगले हुक्म तक इस पद बने रहने की पेशकश की थी, लेकिन अपोज़िशन पार्टियों की तरफ से नो कॉन्फिडेंस मोशन पेश किया गया. जिसमें इमरान खान अपनी सरकार बचाने में नाकाम रहे. इसलिए बाजवा के कार्यकाल में विस्तार नहीं हो सका. 

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तगड़े आर्मी चीफ से डरते हैं शहबाज और आसिफ
इमरान खान मौजूदा सरकार के बारे में यह भी कह चुके हैं कि आसिफ जरदारी और नवाज शरीफ नवंबर में अपना फेवरेट आर्मी चीफ लेकर आना चाहते हैं. यानी वो अपना आर्मी चीफ लेकर आना चाहते हैं, क्योंकि इन्होंने पैसे चोरी किए हैं. इमरान खान ने आगे कहा कि यह लोग डरते हैं कि यहां कोई तगड़ा आर्मी चीफ आगया तो इन लोगों से सवाल पूछेगा. इस डर की वजह से यह लोग अपना आर्मी चीफ लाना चाहते हैं. इमरान खान का कहना है कि जो मैरिट पर खरा उतरे उसको आर्मी चीफ बनाना चाहिए किसी की पसंद का नहीं होना चाहिए. 

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कैसे चुना जाता है आर्मी चीफ
पाकिस्तान में आर्मी चीफ चुने जाने की प्रक्रिया की बात करें सबसे पहले जनरल हेडक्वार्टर से कुछ सबसे सीनियर अफसरों के नाम डिफेंस मिनिस्ट्री को भेजे जाते हैं. इस फाइल में सभी अफसरों की पूरी जानकारी होता है. डिफेंस मिनिस्ट्री के बाद यह फाइल देश के प्रधानमंत्री के पास जाती है. फाइल रिसीव होने के बाद पीएम को अपनी कैबिनेट मीटिंग में उन नामों पर चर्चा होती है. इसके अलावा प्रधानमंत्री रिटायर होने वाले आर्मी चीफ से सलाह ले सकते हैं, हालांकि यह अमल लाजमी नहीं होता. 

ये अफसर हैं लिस्ट में शामिल

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लेफ्टिनेंट जनरल आसिम मुनीर
नए आर्मी चीफ की रेस में पहला नाम आसिम मुनीर का है. जब भी नामों पर चर्चा होगी तो पहला नाम लेफ्टिनेंट जनरल आसिम मुनीर का होगा. क्योंकि वो मौजूदा अफसरों में सबसे सीनियर हैं. हालांकि आसिम को लेकर कुछ तकनीकी खामियां हैं, जिसके चलते यह भी हो सकता है कि उन्हें यह बड़ी जिम्मेदारी ना मिले. आसिम मुनीर का संबंध ओटीएस के उस कोरस से है जो 75वें लॉन्ग कोरस से जूनियर है और 76वें लॉन्ग कोरस से सीनियर है. उन्हें कोर कमांडर लाहौर, मंगला, डीजीएस पीडी और आईजीटी एंड ई के साथ अक्टूबर 2018 में प्रमोट किया गया था. 

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लेफ्टिनेंट जनरल साहिर शमशाद मिर्जा
इस रेस में दूसरे नंबर पर सिंध रेजिमेंट से संबंध रखने वाले साहिर शमशाद का नाम आता है. उन्होंने पिछले 7 वर्षों के दौरान अहम लीडरशिप ओहदों पर भी काम किया है. उनको जनरल राहेल शरीफ के आखिरी दो वर्षों में डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑप्रेशंस (DGMO) की हैसियत से पहचाना जाना लगा था. वो राहेल शरीफ की कोर कमेटी का भी हिस्सा रहे हैं. साहिर शमशाद मिर्जा इस वक्त टेन कॉर्प्स की कमान संभाल रहे हैं, जिन्हें रावलपिंडी कोर के नाम से भी जाना जाता है. इससे पहले कमर जावेद बाजवा ने भी इसी कोर की कमान संभाली थीय यह क्षेत्रफल के जरिये से सबसे बड़ा फौजी दल है जो कश्मीर और सियाचिन जैसे इलाकों की देखरेख करता है. इससे पहले, उन्होंने सेना में सबसे महत्वपूर्ण पदों में से एक यानी चीफ ऑफ जनरल स्टाफ के तौर पर भी अपनी जिम्मेदारियां अदा की हैं. वे अपने करियर में तीन बार लेफ्टिनेंट कर्नल, ब्रिगेडियर और फिर मिलिट्री ऑपरेशंस यानी एमओ डायरेक्टोरेट में मेजर जनरल के तौर पर तैनात हुए.

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लेफ्टिनेंट जनरल अज़हर अब्बास
बलूच रेजीमेंट से ताल्लुक रखने वाले अजहर अब्बास सीनियरटी में दूसरे नंबर पर हैंय वह इस वक्त फौज में सबसे अहम पदों में से एक, चीफ ऑफ जनरल स्टाफ के पद पर हैं. इससे पहले, उन्होंने कोर कमांडर के तौर में टेन कॉर्प्स की कमान संभाली थी. इन दोनों पदों की हद तक जनरल अजहर अब्बास और साहिर शमशाद मिर्जा की प्रोफाइल एक जैसी है. अजहर अब्बास मेजर जनरल कमांडेंट इन्फैंट्री स्कूल के ओहदे पर तैनात थे जबकि पूर्व सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी की तरह वह भी मुर्री के जीओसी थे. जनरल (रिटायर्ड) राहील शरीफ पीएससी यानी चीफ सेक्रेटरी भी रह चुके हैं. लेफ्टिनेंट जनरल के तौर पर वे डायरेक्टर जनरल ऑफ ज्वाइंट स्टाफ भी रहे हैं. 

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लेफ्टिनेंट जनरल नौमान महमूद
नौमान महमूद सीनियरटी में तीसरे पायदान पर हैं, उनका एक ठोस करियर है. फौज में, उन्हें खास तौर पर पाकिस्तान की पश्चिमी सरहद पर एक एक्सपर्ट माना जाता है. उनके पिता कर्नल राजा सुल्तान 1971 के जंग में शामिल थे, लेकिन वह एक मिसिंग इन एक्शन ऑफिसर रहे. उनके लापता होने की वजह से उनके जिंदा होने या होने की जानकारी नहीं. बाद में नोमान महमूद ने भी अपने पिता की यूनिट 22 बलूच की कमान संभाली. बलूच रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट जनरल नौमान महमूद इस वक्त में नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी के चीफ हैं. जबकि इससे पहले वह पेशावर के कोर कमांडर के पद पर तैनात थे. कहा जाता है कि वे आमतौर पर दफ्तर में नहीं मिलते हैं और अपना ज्यादातर वक्त फॉरवर्ड इलाकों में बिताते हैं. वह एक ब्रिगेडियर के रूप में इलेवन कोर में चीफ ऑफ स्टाफ बने रहे, एक मेजर जनरल के तौर पर उन्होंने उत्तरी वजीरिस्तान में एक डिवीजन की कमान संभाली और अफगान सरहद पर बाड़ लगाने की परियोजना का निरीक्षण किया. वह खुफिया एजेंसी आईएसआई में डायरेक्टर जनरल ऑफ दि एनालिटिकल विंग भी थे.

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