Turkiye parliamentary elections: तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन के एक चुनावी सभा का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें दावा किया गया है कि लगभग 17 लाख समर्थक इस रैली में शामिल हुए थे. वहीं तुर्की के विपक्षी नेता इसे वहां के मीडिया और तुर्की सरकार की खरीदी हुई भीड़ बता रहे हैं.
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इस्तांबुलः इस सप्ताह के आखिर में तुर्की में राष्ट्रपति का और संसद का चुनाव होना है. राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन अपने 20 वर्षों के सत्ता को बचाने में लगे हैं. वहीं, विपक्ष उन्हें मजबूत चुनौती पेश कर रहा है. सोमवार को राष्ट्रपति रेसेप तैयप के एक चुनावी सभा का तस्वीर दुनियाभर में सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. इस तस्वीर और वीडियो में राष्ट्रपति रेसेप तैयप के समैर्थन में 17 लाख लोगों के जुटने की बात की जा रही है. वहीं देश की मुख्य विपक्षी दल ने राष्ट्रपति रेसेप तैयप और उनकी सरकार से निष्पक्षत चुनाव को लेकर संदेह जताया है.
विपक्ष लंबे समय से यह इल्जाम लगा रहा है कि देशका चुनाव निष्पक्ष नहीं है. विपक्ष के इस दावे का समर्थन अक्सर अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों द्वारा भी किया जाता रहा है. मीडिया कवरेज को लेकर विपक्ष ने कहा है कि एर्दोगन को मीडिया के चुनावी कवरेज का फायदा मिलता है. इसलिए चुनाव प्रचार के दौरान राज्य संसाधनों और चुनावी कानूनों का दुरुपयोग कर वह चुनावी कवरेज हासिल करते हैं. वहीं, सोशल मीडिया पर तुर्की की भीड़ वाली तस्वीर और वीडियो वायरल होने के बाद सोशल मीडिया यूजर राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन का तुर्की का नरेंद्र मेदी बताकर भीड़ कह रहे हैं कि जैसे मोदी भीड़ जुटाने में माहिर हैं, वैसे ही राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन भी इस कला में माहिर हैं. वहीं, कुछ यूजर तुर्की की मीडिया की भारतीय मीडिया से तुलना करते हुए उसे राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन का समर्थक बता रहे हैं.
At least 1.7 M people rush to President Erdogan’s grand Istanbul rally ahead of May 14 elections pic.twitter.com/xUbAnrzcVZ
— ANADOLU AGENCY (@anadoluagency) May 7, 2023
90 प्रतिशत मीडिया सरकार के कब्जे में
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के मुताबिक, तुर्की का लगभग 90 प्रतिशत मीडिया सरकार या उसके समर्थकों के हाथों में है, जो राष्ट्रपति के लिए चुनावी कवरेज सुनिश्चित करता है. केवल मुट्ठी भर अखबार या न्यूज पोर्टल हैं, जो विपक्ष की खबरों को स्थान देते हैं. ब्रॉडकास्टिंग वॉचडॉग के मुताबिक, अप्रैल में एर्दोगन को मुख्य सरकारी टीवी स्टेशन पर लगभग 33 घंटे का एयरटाइम मिला, जबकि उनके राष्ट्रपति पद के प्रतिद्वंद्वी केमल किलिकडारोग्लू को सिर्फ 32 मिनट का समय दिया गया.
सरकार की मुखालफत पर होती है जेल
मुख्य विपक्षी दल, रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी और सीएचपी ने अपने चुनावी अभियान के वीडियो को प्रदर्शित करने में विफल रहने के लिए सरकारी प्रसारक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की है. सीएचपी के एक सांसद टुनके ओज़कान ने कहा, "दुर्भाग्य से, तुर्की रेडियो और टेलीविजन निगम एक निष्पक्ष और उद्देश्यपूर्ण संस्था होने से दूर हो गया है, और तैयप रेडियो और टेलीविजन निगम में बदल गया है." शेष स्वतंत्र मीडिया को भी बढ़ते प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है. पिछले महीने, प्रसारण प्राधिकरण आरटीयूके ने स्वतंत्र चैनलों फॉक्स न्यूज, हल्क टीवी और टीईएलई1 पर नियमों का उल्लंघन करने वाली खबरों और कमेंट्री पर जुर्माना लगाया था. विपक्ष द्वारा नियुक्त आरटीयूके सदस्य इल्हान तस्सी ने कहा, "सभी तीन मामलों में स्टेशनों पर सत्ताधारी दल के कार्यों की आलोचना करने या उन पर सवाल उठाने का आरोप लगाया गया है."
सोशल मीडिया पर भी सरकार का नियंत्रण
2018 के राष्ट्रपति और आम चुनावों के बाद यूरोप में सुरक्षा और सहयोग संगठन के पर्यवेक्षकों ने कहा था कि एर्दोगन और उनकी सत्तारूढ़ जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी ने सरकार से संबद्ध मीडिया संस्थानों द्वारा अत्यधिक कवरेज सहित “अनुचित लाभ" उठाया था. सार्वजनिक और निजी मीडिया आउटलेट और सोशल मीडिया पर भी सरकार की पहुंच बढ़ी है, जहां कई विपक्षी आवाजें अब पीछे हट गई हैं.
झूठी सूचना के बहाने पत्रकारों पर निशाना
तुर्की में अक्टूबर में पास किए गए एक कानून से देश की जनता के बीच चिंता, भय या आतंक पैदा करने की कोशिश की गई. इस कानून के तहत झूठी सूचना फैलाने वालों को तीन साल तक की जेल की सजा का प्रावधान किया गसा है. नए कानून के तहत मुकदमा चलाने वाले एकमात्र पत्रकार सिनान अयगुल को इसी साल फरवरी में 10 महीने की जेल की सजा सुनाई गई थी. वह इस मामले में अपील करते हुए फिलहाल जमानत में जेल से बाहर हैं. बिट्लिस, दक्षिण-पूर्वी तुर्किये में पत्रकार संघ के अध्यक्ष अयगुल ने कहा, "सरकार का असली मकसद समाज में सभी असंतुष्ट आवाज़ों को चुप कराना है." अयगुल ने कहा, "यह एक ऐसा कानून है जो राय व्यक्त करने वाले किसी भी शख्स को लक्षित करता है. यह न केवल व्यक्तियों को बल्कि मीडिया के अंगों को भी निशाना बनाता है."
अयगुल ने कहा, "इस कानून का इस्तेमाल चुनावों के दौरान उन समूहों को लक्षित करने के लिए किया जा सकता है, जो मतपेटी सुरक्षा की रक्षा करने की मांग कर रहे हैं जो सरकार की गलतियों को उजागर करने के लिए सोशल मीडिया का यूज करते हैं.’’ उन्होंने कहा, "अगर चुनाव में धांधली होने जा रही है तो इस कानून का इस्तेमाल कर सभी विपक्षी चैनलों को खामोश कर दिया जाएगा.’’
भूकंप से प्रभावित राज्य चुनाव के लिए नहीं थे तैयार
गौरतलब है कि फरवरी के भूकंप से प्रभावित देश के 11 प्रांतों में आपातकाल की स्थिति ने भी इस बात को लेकर चिंता जताई है कि इस क्षेत्र में चुनाव कैसे होंगे ? 11 अप्रैल को प्रकाशित संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भूकंप क्षेत्र में कम से कम 3 मिलियन लोग अपने घरों से स्थानांतरित हो गए थे. हालांकि, भूकंप क्षेत्र के सिर्फ 133,000 लोगों ने अपने गृह प्रांतों के बाहर मतदान करने के लिए पंजीकरण कराया है. सर्वोच्च चुनाव परिषद के प्रमुख अहमत येनर ने कहा है चुनाव अधिकारी अस्थाई आश्रयों में मतदान केंद्रों सहित तैयारियों की देखरेख कर रहे हैं.
2018 और 2016 के तख्तापलट की कोशिशों के बाद लगाया गया एक राष्ट्रव्यापी आपातकाल चुनाव से कुछ वक्त पहले तक लागू था, जो मीडिया, विधानसभा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करता था. विपक्ष के मुताबिक, एर्दोगन ने अपने सार्वजनिक प्रदर्शनों में टीवी चैनलों का भरपूर इस्तेमाल करते हैं और अपने प्रतिद्वंद्वियों पर हमला करने के लिए इन सोर्सेज का इस्तेमाल करते हैं.
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