Labour Party politician campaigning for Indian languages in British Schools: पिछले कुछ सालों में ब्रिटेन में भारतीय भाषाओं को पढ़ने वाले छात्रों की कामी कमी हो गई है. इस वजह से वहां के विपक्षी लेबर पार्टी के एक सांसद भारतीय भाषाओं के लिए मुहिम चला रहे हैं.
Trending Photos
Indian languages in British Schools: अपनी मातृभाषा की तरक्की और विस्तार के लिए काम करना एक बेहद आम बात हो सकती है, लेकिन अगर कोई नेता दूसरे देश और दूसरी भाषा की तरक्की के लिए मुहिम चलाए तो उसे आप क्या कहेंगे ? भारत जैसे देश में जहां भाषाओं के नाम पर तलवारें खिंच जाती हैं और लोग जान लेने और देने पर उतारू हो जाते हैं, वहीं ब्रिटेन में विपक्षी लेबर पार्टी के एक सांसद वहां के स्कूलों में भारतीय भाषाओं में पढ़ाई को बढ़ावा देने के लिए सरकारी मदद के लिए मुहिम चला रहा है.
गुजराती, बांग्ला और पंजाबी पढ़ने वालों की तादाद में गिरावट
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, यहां पिछले कुछ सालों में गुजराती, बांग्ला और पंजाबी की पढ़ाई करने वाले लोगों की तादाद में तेजी से गिरावट दर्ज की गई है. उत्तरी लंदन के हैरो वेस्ट से संसद सदस्य गेरेथ थॉमस सालों से इस मुद्दे पर मुहिम चला रहे हैं, और हाल में उन्होंने हाउस ऑफ कॉमन्स के नेता पेनी मोरडॉंट के साथ संसद में इस मुद्दे को उठाया था. थॉमस का मानना है कि भारतीय भाषाएं सीखने वालों की तादाद में कमी पर ध्यान देने के लिए स्पेशल फंड, शिक्षकों को खास ट्रेनिंग और एक फ्लैगशिप स्कूल प्रोग्राम वगैरह की जरूरत है. उन्होंने कहा, ‘‘मंत्रियों के इन भाषाओं पर ध्यान नहीं दे पाने से इनकी परीक्षाएं देने वाले छात्रों की तादाद लगातार कम होती जा रही है’’
फारसी और उर्दू भाषा पढ़ने वाले भी हुए कम
थॉमस का कहना है, ‘‘मेरी सरकार से अपील है कि स्थानीय समुदायों और स्कूलों की मदद के लिए माकूल मदद की जरूरत को पहचाना जाए ताकि इन भाषाओं को सीखने में छात्रों की मदद की जा सके.’’ भारत में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षक बोर्ड की तरह ब्रिटेन में जनरल सर्टिफिकेट ऑफ सेकंड्री एजुकेशन (जीसीएसई) के लिए बांग्ला, गुजराती, पंजाबी, फारसी और उर्दू भाषा में पढ़ाई करने वालों की संख्या 2015 से 2021 के बीच काफी कम हुई है. सबसे ज्यादा गिरावट गुजराती की पढ़ाई करने वालों की तादाद में आई है जो 77 फीसदी तक है. थॉमस ब्रिटेन में भाषाओं के शिक्षण- प्रशिक्षण में सुधार पर ध्यान देने की वकालत कर रहे हैं. उनका मानना है कि मंडारिन और लैटिन भाषाओं को नए प्रशिक्षण में निवेश के लिए स्पेशल फंड मिलने की तर्ज पर ध्यान देने की जरूरत है.
Zee Salaam