Urdu Poetry in Hindi: उस एक चेहरे में आबाद थे कई चेहरे, उस एक शख़्स में

Siraj Mahi
Jan 16, 2025

दुख दे या रुस्वाई दे, ग़म को मिरे गहराई दे

किसी को क्या बताऊँ कौन हूँ मैं, कि अपनी दास्ताँ भूला हुआ हूँ

चली है मौज में काग़ज़ की कश्ती, उसे दरिया का अंदाज़ा नहीं है

घास में जज़्ब हुए होंगे ज़मीं के आँसू, पाँव रखता हूँ तो हल्की सी नमी लगती है

न जाने शेर में किस दर्द का हवाला था, कि जो भी लफ़्ज़ था वो दिल दुखाने वाला था

इतनी काविश भी न कर मेरी असीरी के लिए, तू कहीं मेरा गिरफ़्तार न समझा जाए

सच तो कह दूँ मगर इस दौर के इंसानों को, बात जो दिल से निकलती है बुरी लगती है

उस एक चेहरे में आबाद थे कई चेहरे, उस एक शख़्स में किस किस को देखता था मैं

मंज़िल का पता है न किसी राहगुज़र का, बस एक थकन है कि जो हासिल है सफ़र का

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