Urdu Poetry in Hindi: उस के वारिस नज़र नहीं आए, शायद उस लाश के...

Siraj Mahi
Jan 19, 2025

उस के वारिस नज़र नहीं आए, शायद उस लाश के पते हैं बहुत

नए चराग़ जला याद के ख़राबे में, वतन में रात सही रौशनी मनाया कर

मैं तो ख़ुदा के साथ वफ़ादार भी रहा, ये ज़ात का तिलिस्म मगर टूटता नहीं

मिट जाएगा सेहर तुम्हारी आँखों का, अपने पास बुला लेगी दुनिया इक दिन

तेरे चेहरे पे उजाले की सख़ावत ऐसी, और मिरी रूह में नादार अंधेरा ऐसा

डूब जाने का सलीक़ा नहीं आया वर्ना, दिल में गिर्दाब थे लहरों की नज़र में हम थे

ये कैसी बात हुई है कि देख कर ख़ुश है, वो आँसुओं के समुंदर के दरमियान मुझे

मेरी आँखों में अनोखे जुर्म की तज्वीज़ थी, सिर्फ़ देखा था उसे उस का बदन मैला हुआ

मेरी अय्यार निगाहों से वफ़ा माँगता है, वो भी मोहताज मिला वो भी सवाली निकला

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