Urdu Poetry in Hindi: अपनों से जंग है तो भले हार जाऊँ मैं, लेकिन मैं...
Siraj Mahi
Jan 18, 2025
अभी तहज़ीब का नौहा न लिखना, अभी कुछ लोग उर्दू बोलते हैं
लोग ये सोच के ही परेशान हैं, मैं ज़मीं था तो क्यूँ आसमाँ हो गया
लाज रखनी पड़ गई है दोस्तों की, हम भरी महफ़िल में झूटे हो गए हैं
वो जुगनू हो सितारा हो कि आँसू, अँधेरे में सभी महताब से हैं
अपनों से जंग है तो भले हार जाऊँ मैं, लेकिन मैं अपने साथ सिपाही न लाऊँगा
मैं झूट को सच्चाई के पैकर में सजाता, क्या कीजिए मुझ को ये हुनर ही नहीं आया
पुराने वक़्तों के कुछ लोग अब भी कहते हैं, बड़ा वही है जो दुश्मन को भी मुआ'फ़ करे
कोई मंज़र नहीं बरसात के मौसम में भी, उस की ज़ुल्फ़ों से फिसलती हुई धूपों जैसा
तुम्हारे ख़त कभी पढ़ना कभी तरतीब से रखना, अजब मशग़ूलियत रहती है बेकारी के मौसम में
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