Urdu Poetry in Hindi: कोई शिकवा न ग़म न कोई याद, बैठे-बैठे बस

Siraj Mahi
Jan 16, 2025

यही हालात इब्तिदा से रहे, लोग हम से ख़फ़ा ख़फ़ा से रहे

मुझे मायूस भी करती नहीं है, यही आदत तिरी अच्छी नहीं है

मैं बचपन में खिलौने तोड़ता था, मिरे अंजाम की वो इब्तिदा थी

कोई शिकवा न ग़म न कोई याद, बैठे बैठे बस आँख भर आई

ग़ैरों को कब फ़ुर्सत है दुख देने की, जब होता है कोई हमदम होता है

अगर पलक पे है मोती तो ये नहीं काफ़ी, हुनर भी चाहिए अल्फ़ाज़ में पिरोने का

उस की आँखों में भी काजल फैल रहा है, मैं भी मुड़ के जाते जाते देख रहा हूँ

इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं, होंटों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं

ये ज़िंदगी भी अजब कारोबार है कि मुझे, ख़ुशी है पाने की कोई न रंज खोने का

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