मैं बजट हूं; न मेरी किसी से दोस्ती है, न दुश्मनी, लेकिन लोग मुझे संदिग्ध निगाह से देखते हैं
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मैं बजट हूं; न मेरी किसी से दोस्ती है, न दुश्मनी, लेकिन लोग मुझे संदिग्ध निगाह से देखते हैं

मैं भी  किसी अभिमान में नहीं हूँ, सरकार आयेगी, सरकार जाएगी. पर मैं वही रहूँगा. हर साल घोषणा और कटौती करता रहूँगा. टैक्स में फेरबदल करना मेरा रूटीन जॉब है.

मैं बजट हूं; न मेरी किसी से दोस्ती है, न दुश्मनी, लेकिन लोग मुझे संदिग्ध निगाह से देखते हैं

:- डॉ. प्रवीण चन्द्र राय 

 मैं बजट हूँ. हर साल आता हूँ. कई लोगों के जीवन का बसंत हूँ. साहित्य  में बसंत एक राजा है, मौसम का राजा. मैं राजसत्ता के गलियारे से होते हुए आम आदमी की झोली में अमीरी, फकीरी के सपनों की उड़ान भरता हूँ. आज कई लोगों को रात भर नींद नहीं आयेगी और कई चैन की नींद में खर्राटे भरने वाले भी मिल जायेंगे. गरीब आदमी मुझसे ज्यादा उम्मीद रखता है. आजकल मैं मोदी की तरफ हूँ. वर्षों पहले मैं सोनिया के दरबार में हाजरी लगाने जाता था. दोनों तरफ बड़ा परिवर्तन आ गया है. पहले जो लोग मुझसे स्नेह रखते थे, आज वो विपक्षी बनकर मुझे बुरा, क्रूर, जनविरोधी कहते नहीं थकते हैं.  मुझे थोड़ा भी असहज नहीं लगता क्यूंकि सत्ता पक्ष के लोग तो दुलारते ही हैं. अब मैं कया करूँ , कैसे करूँ ? न मेरी किसी से दोस्ती है, न दुश्मनी. मैं 
समय के चक्र में बंधा हूँ.
आज मुझे सात नए नाम मिले  हैं. समावेशी विकास, अंत्योदय, उर्फ़  हरित विकास उर्फ़  युवा शक्ति  वगैरह- वगैरह. हर साल गरीब को लगता है कि मैं उसकी फटी जेब में कुछ 
डाल दूंगा. वहीं अमीर की जेब से बहुत कुछ निकाल लूंगा. लेकिन यह सब वहम है. मैं कोई सौदागर नहीं हूँ  कि कुछ दूंगा और बदले में लूंगा. ऐलान होता है,  प्रतिक्रिया आती 
है. चाय दुकान से लेकर टीवी स्टूडियो  तक सब मेरे बारे में गप्पे लड़ा रहे हैं. सोशल मीडिया  पर तो कोहराम मचा है. तू- तू , मैं -मैं से भी आगे निकल गये हैं लोग. अरे! भाई सब अपना अपना हित देखकर ही टीका टिपण्णी  कर रहे हैं. उनकी- अपनी ही विवशता
है.  नाम के अनुरूप  एक जेब से लूंगा, तभी तो दूसरी जेब में दूंगा. यही मेरा धर्म है.  मेरा नाम ही बजट है. मेरा भाई रेल बजट अब नहीं रहा, उसके हिस्से का काम भी मुझे ही करना पड़ रहा है. खैर काम तो करना है. सुखद है कि  मुझे पेश करने वाले लोग कह रहे हैं कि यह अमृतकाल का पहला बजट है. दुनिया  के आकाश पर भारत चमक रहा है. भारत दुनिया की दसवीं अर्थ व्यवस्था  के पायदान से आगे बढ़ते हुए पांचवे नंबर पर आ गया है. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि  मैं कितना महत्वपूर्ण  बजट हूँ. मेरी जिम्मेदारियां  कई गुणा बढ़ गई हैं. सोचिये कि भारत जी -20 की अध्यक्षता करने वाला बड़ा वाला मुल्क बन गया है. आम आदमी से लेकर खास आदमी तक को इस तरह की सकारात्मक उपलब्धियों के बारे में सोचने में ज्यादा वक़्त लगाना चाहिए. मैं भी  किसी अभिमान में नहीं हूँ, सरकार आयेगी, सरकार जाएगी. पर मैं वही रहूँगा. हर साल घोषणा और कटौती करता रहूँगा. टैक्स में फेरबदल करना मेरा रूटीन जॉब है.

हर साल लोग मुझे संदिग्ध निगाह से देखने लगते हैं. मैं इसी देश का बजट हूँ. देश के लिए  ही सोचता हूँ. कहने की ज़रुरत नहीं कि मैं आपका ही ख्याल रखने वाला हूँ. इस साल थोड़ी ऊूँच-नीच हो जाए तो अगले साल ठीक करने का वचन देता हूँ. 
 
:- डॉ. प्रवीण चन्द्र राय 
 लेखक पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी विचार हैं. 

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