कौन है शेख हसीना, बांग्लादेश की 'आयरन लेडी'
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कौन है शेख हसीना, बांग्लादेश की 'आयरन लेडी'

शेख हसीना, जिन्होंने 2009 से बांग्लादेश पर राजनीतिक रूप से काबू पाया है, हाल ही में हुए आम चुनाव में विपक्ष को हराकर अपनी पकड़ को मजबूत करने में सफल रही हैं. इससे वह अपनी पार्टी को लगातार चौथी बार और कुल मिलाकर पांचवीं बार जीत दिलाने में सफल रही हें . बांग्लादेश की प्रमुख राजनीतिक नेता और अवामी लीग पार्टी की प्रमुख, शेख हसीना, को उनके समर्थनकर्ताओं ने 'आयरन लेडी' कहकर सम्मानित किया है.

 

कौन है शेख हसीना, बांग्लादेश की 'आयरन लेडी'

आम चुनाव में प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग ने बड़े अंतर से चुनाव में जीत हासिल की है. शेख हसीना की पार्टी को आम चुनाव 2024 में 2 लाख 49 हजार 465 वोट मिले जबकि विपक्षी दलों को महज 469 वोट ही मिले. देश की कई मुख्य विपक्षी पार्टियों ने चुनाव का बहिष्कार कर दिया था. पश्चिम के देश पहले से कह रहे थे कि ये चुनाव हर हाल में शेख हसीना के पक्ष में जाएगा. अब जीत के बाद बांग्लादेश के लोग शेख हसीना की जम कर तारीफ कर रहे हैं. लोग उन्हें बांग्लादेश की आयरन लेडी कह कर पुकार रहें हैं. दरअसल शेख हसीना की जिंदगी काफी उतार चढ़ाव वाली रही है उसके बावजूद उन्होंने राजनीति में खुद को साबित किया है.  

कौन हैं शेख हसीना
शेख हसीना आवामी लीग की सबसे बड़ी नेता हैं. शेख हसीना 2009 से लगातार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के पद पर बनी हुई हैं. इससे पहले वह 1996 से 2001 तक प्रधानमंत्री के पद पर रह चुकी हैं. रविवार को हुए मतदान में जीत के बाद शेख हसीना पांचवी बार बांग्लादेश का राष्ट्रपति पद संभालेंगी.  शेख हसीना बांग्लादेश के राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी हैं. हालांकि शेख हसीना कहती हैं कि उन्हें कभी  राजनीति का मोह नहीं था लेकिन हालातों की वजह से उन्हें सत्ता में आना ही पड़ा.

हसीना ने जन्म से ही राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई है, और उन्होंने अपने पिता की राजनीतिक विरासत को संभालने में भी अहम भूमिका निभाई है.
उनके पिता की हत्या के बाद, हसीना ने भारत में छह साल हिंदुस्तान में बिताया, इसके बाद बांग्लादेश वापस आने के बाद उन्होंने राजनीति में सक्रिय हुई.

पिता की हत्या के बाद इंदिरा गांधी ने दी थी राजनीतिक शरण
साल 1971 में बांग्लादेश एक अलग देश बना था इससे पहले ये इलाका पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था और यहां पाकिस्तानी सरकार की ही हुकूमत चलती थी.
इस नए देश के पहले नेता शेख हसीना के पिता, शेख मुजीबुर्रहमान हुए. लेकिन मुजीब रहमान के सत्ता में आने के कुछ सालों बाद देश में अस्थिरता फैल गई.  कम्युनिस्ट आंदोलन के दौरान शेख की सरकार की सत्ता पलट दी गई. इसके बाद साल 1975 में सेना ने शेख मुजीबुर्रहमान के पूरे परिवार की हत्या कर दी थी, लेकिन शेख हसीना और उनकी बहन रेहाना उस वक्त जर्मनी में थीं जिस कारण वे बच गईं. शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद बांग्लादेश अगले 15 सालों तक सेना के कब्जे में रहा.  इसके बाद शेख हसीना ने जर्मनी में बांग्लादेश के राजदूत हुमांयु रशीद चौधरी से बात की. हुमांयु का हिंदुस्तान के राजनयिकों के बीच अच्छी पैठ थी इसलिए एक बार उन्होंने हिंदुस्तान के राजदूत वाई के पुरी से शेख हसीना और उनकी बहन को राजनीतिक शरण देने की बात कही थी. इसकी भनक तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिर गांधी को लगी और उन्होंने तुरंत शेख हसीना और उनकी बहन को एयर इंडिया के विमान से हिंदुसतान बुला लिया. इतना ही नहीं इंदिरा अलावा गांधी ने  शेख हसीना के पति डॉक्टर वाजेद को परमाणु ऊर्जा विभाग में फेलोशिप दी. हिंदुस्तान सरकार ने शेख हसीना को पंडारा रोड के पास एक फ्लैट दिया था. जहां शेख हसीना करीब छह साल तक रही थी.

छह साल बाद की थी घर वापसी
छह साल तक हिंदुस्तान में रहने के बाद शेख हसीना बांग्लादेश वापस आई  और बीटीपी की नेता खालिदा जिया के साथ राजनीति की शुरूआत की. साल 1991 में खालिदा जिया पहली महिला प्रधानमंत्री बनी. इसके पांच साल बाद ही शेख हसीना की अवामी पार्टी ने चुनाव में जीत दर्ज की. साल 1996 में शेख हसीना पहली बार प्रधानमंत्री बनी

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