सलमान रुश्दी को जब छिप-छिपकर गुजारने पड़े जिंदगी के नौ साल; भारत आने पर लगी थी पाबंदी
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सलमान रुश्दी को जब छिप-छिपकर गुजारने पड़े जिंदगी के नौ साल; भारत आने पर लगी थी पाबंदी

Salman Rushdie: भारतीय मूल के अंग्रेजी भाषा के ब्रिटिश उपन्यासकार सलमान रुश्दी पर अमेरिका के न्यूयॉक शहर में हुए हमले के बाद दुनियभर के साहित्यकार, लेखक और राजनेताओं ने उनपर हुए हमले की निंदा की है. 

 

Salman Rushdie

न्यूयॉर्क दुनियाभर में मशहूर भारतीय मूल के अंग्रेजी भाषा के ब्रिटिश उपन्यासकार सलमान रुश्दी पर अमेरिका के न्यूयॉक शहर में जानलेवा हमले के बाद दुनियाभर के सहित्यकार, लेखक, पत्रकार और राजनेताओं ने रुश्दी पर हुए हमले की निंदा की है. जिसने दुनियाभर में अभव्यक्ति की आजादी की वकालत की है, वह आज खुद अपनी अभिव्यक्ति की वजह से जिंदगी की जंग लड़ रहा है. 19 जून 1947 को बॉम्बे में एक कश्मीरी मुस्लिम परिवार में जन्मे सलमान रुश्दी ने दर्जनभर से ज्यादा उपन्यास लिखे हैं और दुनिया के कई प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरुस्कार उनके नाम है. इसके बावजूद साल 1983 में आई उनके एक उपन्यास सैटनिक वर्सेस के कारण उन्हें सालों तक छिप-छिप कर जिंदगी गुजारनी पड़ी और उनका सर कलम करने पर 3 मीलियन अमेरिकी डॉलर का इनाम रख दिया गया था.  

रुश्दी ने 14 उपन्यास लिखे हैं
सलमान रुश्दी ने कुल 14 उपन्यास लिखे हैं, जो दुनिया भर के साहित्य जगत में अपनी एक अलग पहचान और मुकाम रखते हैं. ’ग्रिमस’, ’मिडनाइट्स चिल्ड्रन’, ’शेम’, ’द सैटेनिक वर्सेज’, ’हारून एंड द सी ऑफ स्टोरीज’, ’द मूर्स लास्ट सिघ’, ’द ग्राउंड बिनिथ हर फीट’, ’फ्यूरी’. ’शालीमार द क्लाउन’, ’द एनचैंट्रेस ऑफ फ्लोरेंस’, ’लुका एंड द फायर ऑफ लाइफ’, ’टू इयर्स एइट मंथ्स एंड ट्वेंटी-एट नाइट्स’, ’द गोल्डन हाउस’ और ’क्विचोटे’ आदि उनकी प्रमुख कृतियां हैं.  

'मिडनाइट्स चिल्ड्रन’ के लिए मिला था बुकर पुरस्कार 
ब्रिटिश शासन से भारत की आजादी और विभाजन तक भारत की यात्रा की पृष्ठभूमि में लिखी गई सलमान रुश्दी के उपन्यास  ’मिडनाइट्स चिल्ड्रन’ को 1981 में प्रतिष्ठित बुकर पुरस्कार मिला था, जिसके बाद सलमान रुश्दी को साहित्यिक स्टारडम और वैश्विक पहचान मिली थी.  
हालांकि,  1981 में ’मिडनाइट्स चिल्ड्रन’ के लिए मिले प्रतिष्ठित बुकर पुरस्कार के दो साल बाद ही सलमान रुश्दी अपने एक दूसरे उपन्यास के लिए दुनिया भर में कुख्यात हो गए. 1988 में प्रकाशित उनकी दूसरी कृति ’द सैटेनिक वर्सेज’ से ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी नाराज हो गए. इस किताब में ईशनिंदा वाली सामग्री होने का दावा कर रुश्दी को फांसी देने की मांग की गई. धार्मिक आदेश के बाद, रुश्दी ब्रिटिश पुलिस के संरक्षण में एक घर में रहते थ. इस तरह रुश्दी को नौ साल तक छिपने के लिए मजबूर होना पड़ा. 

रुश्दी पर रखा गया 3 मिलियन अमरीकी डॉलर का इनाम 
’द सैटेनिक वर्सेज’ पर ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी द्वारा फांसी देने का फतवा जारी करने और 3 मिलियन अमरीकी डालर का इनाम रखने के बाद के पहले ही इस किताब पर भारत सहित दुनिया के कई देशों में भारी विरोध-प्रदर्शन हो रहा था. कई देशों में इस किताब पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. पुस्तक पर प्रतिबंध लगाने वाले देशों में भारत, बांग्लादेश और श्रीलंका भी शामिल था. इस किताब के लिए लगभग एक दशक से अधिक समय तक रुश्दी के भारत प्रवेश करने पर रोक लगा दिया गया. 11 साल बाद 1999 में रुश्दी से ये प्रतिबंध हटा लिया गया था.

इतने पुरस्कारों से नवाजे जा चुके हैं रुश्दी 
सलमान रुश्दी को 2007 में साहित्य की सेवाओं के लिए नाइट की उपाधि दी गई थी, 1983 से रॉयल सोसाइटी ऑफ लिटरेचर के फेलो रहे हैं. 1999 में उन्हें फ्रांस के कमांडर डी ल ’ऑर्ड्रे डेस आर्ट्स एट डेस लेट्रेस नियुक्त किया गया था. यूरोपीय संघ के अरिस्टियन पुरस्कार, ब्रिटेन और जर्मनी में ऑथर्र ऑफ दी ईयर पुरस्कार, भारत में क्रॉसवर्ड बुक अवॉर्ड, लंदन इंटरनेशनल राइटर्स अवॉर्ड, यूनिवर्सिटी कॉलेज डबलिन के जेम्स जॉयस पुरस्कार, सेंट लुइस साहित्यिक पुरस्कार, शिकागो पब्लिक लाइब्रेरी का कार्ल सैंडबर्ग पुरस्कार और यूएस राष्ट्रीय कला पुरस्कारों से अब तक उन्हें नवाजा जा चुका है. 

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