रमजान के फितरे (दान) को लेकर क्या है आदेश; गेहूं नहीं, किशमिश के लिहाज से अदा करें रकम
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रमजान के फितरे (दान) को लेकर क्या है आदेश; गेहूं नहीं, किशमिश के लिहाज से अदा करें रकम

सुख के अवसर पर समाज के गरीब लोगों को याद करना चाहिए. इसलिए ईद-उल-फितर की खुशी में गरीबों को साझा करने के लिए सदाकत-उल-फितर निर्धारित किया गया है.

अलामती तस्वीर

मजान का उपवास पूरा करने के बाद, ईद के दिन एक मुसलमान के दिल में खुशी और कृतज्ञता की भावना पैदा होता है कि वह सर्वशक्तिमान अल्लाह और उसके असंख्य उपहारों की मदद से रमजान के उपवास को पूरा करने में सक्षम हुआ.
इस दिन, विभिन्न प्रकार के मनोरंजन, खेल या अन्य गतिविधियों में संलग्न होने के बजाय, व्यक्ति को सर्वशक्तिमान अल्लाह की खुशी की और उसके आदेषें के मुताबिक गरीबों को सदाकत-उल-फितर के माध्यम से मदद करनी चाहिए. उनके दुख-दर्द को बाँटा जाना, उन्हें खुलकर खिलाना-पिलाना और उनके साथ खुशियाँ मनानी चाहिए. 

इस्लामिक न्यायविद हज़रत मौलाना खालिद सैफुल्ला रहमानी दमत बरकाथम, लिखते हैं, ’’ सुख के अवसर पर समाज के गरीब लोगों को याद करना चाहिए. इसलिए ईद-उल-फितर की खुशी में गरीबों को साझा करने के लिए सदाकत-उल-फितर निर्धारित किया गया है.

सदक़ा अल-फ़ित्र ( ईइ में दान) का प्रावधान क्यों है ?
अधिकांश न्यायविदों का कहना है कि यह एक अनिवार्य दान है और इसमें दैवीय आदेश शामिल है. इसमें कई धार्मिक और सांसारिक हित हैं. यह संभव है कि इंसान के रोजे के दौरान कुछ अनुचित कार्य हो गए हों (दारकतनी 219) (बहाकी 163).    उपवास करने वाले का उपवास के दौन जीभ से कोई अशोभनीय बात निकली हो. एक पूर्ण उपवास तभी होता है, जब उपवास करने वाले के कान, नाक, आंख, जीभ, पेट, हाथ और पैर उन सभी चीजों से परहेज करते हैं जो अल्लाह और उसके रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने जिसका आदेश दिया है.  लेकिन उपवास करने वाले व्यक्ति के लिए इन सभी निषेधों से बचना दुर्लभ है क्योंकि मनुष्य एक कमजोर प्राणी है और त्रुटि और गलती करना उसकी फितरत में षामिल है. 

रोज़े में इस संभावित चूक को देखते हुए सदाक़त अल-फ़ित्र देना अनिवार्य किया गया है ताकि रोज़ा रखने वाले को इस चूक से शुद्ध किया जा सके, उसके रोज़े की अशुद्धियाँ धुल सकें और दोष की भरपाई हो सके, क्योंकि दान और अच्छे कर्म आपके गुनाहों को धो देता है. 

फितरे का सामाजिक पहलु

दूसरा पहलू समाज से जुड़ा है. प्रेम, भलाई और कल्याण का दायारा समाज के सभी सदस्यों विशेषकर गरीबों और जरूरतमंदों तक पहुँचाया जाए, क्योंकि ईद का दिन आम खुशी और उल्लास का दिन होता है और यह खुशी मुस्लिम समुदाय के सभी सदस्यों के बीच साझा की जानी चाहिए. जाहिर है कि एक गरीब व्यक्ति ऐसी स्थिति में खुश नहीं हो सकता जहां समाज के समृद्ध लोग स्वादिष्ट भोजन करते हैं और सुख के इस साधारण दिन में भी वह एक रोटी की वंचित हो जाए. इसलिए  ईद-उल-फितर के दिन उपवास करना हराम करार दिया गया है और अल्लाह ने हर सक्षम व्यक्ति पर गरीबों को दान देना अनिवार्य कर दिया ताकि कोई भी इंसान उस दिन भूखा न रहे और ईद की खुशी में साझे तौर पर हिस्सा ले सके.  

सदक़ा अल-फ़ित्र की बाध्यता 
यह दान हर उस अमीर मुसलमान मर्द और औरत पर फर्ज है जिसका ईद के दिन तक एक सक्षम आदमी हो. सक्षम और अमीर लोग वो होते हैं जिनकी बुनियादी जरूरतें होती हैं, जैसे घर, कपड़े, घर की जरूरत का सामान, बर्तन, सवारी आदि के अलावा और उसके पास जकात का मूल्य अदा करने का धन हो. इसमें 87.5 ग्राम सोना और 52.3 तोला चांदी षामिल है या फिर दोनों वस्तुएं इससे कम मात्रा में हो लेकिन दोनों कोजोड़ने से इसका मूल्य अगर 612 ग्राम चांदी के मूल्य के बराबर हो जाता है तो उस व्यक्ति को अमीर या फितरा और जकात अदा करने के लिए सक्षम मामना जाएगा.  

ज़कात और सदाक़त अल-फ़ित्र के बीच मुख्य अंतर
ज़कात और सदाक़त अल-फ़ित्र के बीच मुख्य अंतर यह है कि ज़कात केवल कुछ वस्तुओं, यानी सोना, चांदी के रुपये, व्यापारिक सामान, कुछ जानवरों और कृषि उपज पर अनिवार्य है, अगर किसी के पास बहुत सारी जमीन है, कई घर हैं लेकिन वह सभी बेचने के लिए नहीं है तो उन पर ज़कात वाजिब नहीं होगी लेकिन उन पर सदाकत-उल-फितर अनिवार्य होगा. अपनी ओर से और अपने नाबालिग बच्चों की ओर से सदाकत-उल-फितर देना अनिवार्य है. पति की संपत्ति मिश्रित और वयस्क लड़के हैं, जब तक वे माता-पिता की देखरेख में हैं और शिक्षा आदि में लगे हुए हैं, उनके सभी ज़िम्मेदारियाँ भी घर के मुखिया द्वारा ही निभाई जाती हैं. माता-पिता जो घर के एक आदमी द्वारा समर्थित हैं, इसलिए उन सभी की ओर से सदक़ा अल-फ़ित्र देना बेहतर है.

सदक़ा अल-फ़ित्र की मात्रा
सदक़ा अल-फ़ित्र की मात्रा गेहूँ (गेहूं) का आटा और सत्तू आधा (आधा) सा’ और खजूर किशमिश और जौ जो एक सा है’. मटर, मसूर, अरहर आदि की गणना करके सदक़ा-उल-फ़ित्र का भुगतान किया जाएगा. उन सभी में आधा सा का मूल्य एक किलो सौ तैतिस ग्राम (1.633) ग्राम और एक सा 3.266 किलो ग्राम के बराबर होता है. गेहूं, खजूर और किशमिश अपने-अपने क्षेत्र में निर्दिष्ट मात्रा का मूल्य निर्धारित कर उनके हैसियत के अनुसार फितरा की रकम दीजानी चाहिए. किशमिश को पैमाना बनाना  बेहतर होगा, क्योंकि इस मामले में बड़ी मात्रा में दान देना पड़ता है, और हदीस में, देने वाले को हमेषा लेने वाले से बेहतर बताया गया है. 

फितरे को लेकर कुछ काबिले जिक्र बातें 
इस विषय पर विस्तार से बताते हुए हज़रत मौलाना खालिद सैफुल्ला रहमानी साहिब दमत बरकत-उल-आलिया ने बताया कि पैगंबर (स.) के समय में इन सभी चीजों में गेहूं सबसे मूल्यवान वस्तु थी. गेहूं उत्पादित नहीं होता था बल्कि गेहूं सीरिया या यमन से आयात किया जाता था, और इस वजह से यह महंगा होता था. इसलिए गेहूं का अल-फितर का मानक निर्धारित किया गया था. इसलिए अन्य चीजों को एक सा की मात्रा में अनिवार्य किया गया था और गेहूं आधा सा है. तो वर्तमान में औसत ग्रेड किशमिश 200 रुपये है और औसत ग्रेड खजूर भी उसी कीमत में है. अगर इसे ठीक से निकाला जाए तो यह साढ़े तीन किलो प्रति व्यक्ति हो जाता है, लेकिन सभी लोगों को एक ही राशि का फितरा भुगतान करना पड़ता है. इसलिए जो लोग सदाकत-उल-फितर देने के लिए बाध्य हैं, जो अमीर हैं, उन्हें खजूर और किशमिश की कीमत पर सदाकत-उल-फितर देना चाहिए. इसके बजाय, सक्षम लोगों को तीन किलो गेहूं के संदर्भ में सदाकत-उल-फितर का भुगतान करना चाहिए और कमजोर लोगों को आधा किलो गेहूं, ताकि सभी हदीसों का पालन किया जा सके. यह गरीबों के लाभ के लिए है और इस तरह पैगंबर की सभी सुन्नत (शांति उस पर हो) का पालन किया जाएगा.

किसे दान देना चाहिए फितरे की रकम 
सदक़ा-ए-फ़ित्र का का नियम भी ज़कात के बराबर है. शरिया मुद्दों की जानकारी के अभाव में, कुछ लोग सदक़ा-ए-फ़ित्र को अयोग्य को देते हैं, ऐसे में सदक़ा-ए-फ़ित्र का भुगतान नहीं हो पाता है. रमज़ान या रमज़ान से पहले गरीबों और योग्य लोगों को फ़ित्र देना जायज़ है, और ईदगाह जाने से पहले इसे अदा करना मुस्तहब है. हदीस के मुताबिक, प्रत्येक व्यक्ति और हर घर का फितरा हर गाँव और मोहल्ले में एक जगह इकट्ठा किया जाना चाहिए और ग़रीबों और ज़रूरतमंदों में बाँट देना चाहिए.

डॉ. मुफ्ती मुहम्मद इरफ़ान आलम कासमी

लेखक धार्मिक मामलों के जानकार हैं, यह लेख उर्दू से अनुवाद किया गया है. 

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