SC ने कहा, "लक्ष्मण रेखा से वाकिफ हैं, लेकिन सरकार के इस फैसले की पड़ताल जरूर करेंगे"
Advertisement

SC ने कहा, "लक्ष्मण रेखा से वाकिफ हैं, लेकिन सरकार के इस फैसले की पड़ताल जरूर करेंगे"

Demonetisation Decision under Supreme court Scaning: सरकार द्वारा 2016 में लिए गए नोटबंदी के फैसले को कई लोगों ने यह कहकर चुनौती दी है कि यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों के खिलाफ था. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि न्यायालय ‘लक्ष्मण रेखा’ से वाकिफ, लेकिन नोटबंदी मामले की पड़ताल वह जरूर करेगा. 

अलामती तस्वीर

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा है कि वह सरकार के नीतिगत फैसलों की न्यायिक समीक्षा को लेकर ‘लक्ष्मण रेखा’ से वाकिफ है, लेकिन वह 2016 के नोटबंदी के फैसले की पड़ताल जरूर करेगा, ताकि इसके पीछे के कारणों का पता लगाया जा सके. संविधान पीठ ने कहा, ‘‘इस पहलू का जवाब देने के लिए कि यह कवायद अकादमिक है या नहीं या न्यायिक समीक्षा के दायरे से यह बाहर है, हमें इसकी सुनवाई करनी होगी. हमें यह तय करने के लिए वकील को सुनना होगा.
न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नज़ीर की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय बेंच ने कहा कि जब कोई मामला संविधान बेंच के सामने लाया जाता है, तो उसका जवाब देना पीठ की जिम्मेदारी बन जाती है. इसके साथ ही संविधान पीठ ने 500 और 1000 रुपये के नोट बंद करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक को विस्तृत हलफनामा दायर करने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए नौ नवम्बर, 2022 की तारीख मुकर्रर की है. 

सरकार ने कोर्ट में अपने पक्ष में दी ये दलील 
कोर्ट में सरकार की तरफ से पेश अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने कहा कि जब तक नोटबंदी से संबंधित कानून को उचित परिप्रेक्ष्य में चुनौती नहीं दी जाती, तब तक यह मुद्दा अनिवार्य रूप से अकादमिक ही रहेगा. तुषार मेहता ने कहा कि अकादमिक मुद्दों पर अदालत का वक्त ‘‘बर्बाद’’ नहीं करना चाहिए. मेहता की दलील पर ऐतराज जताते हुए याचिकाकर्ता विवेक नारायण शर्मा की तरफ से पेश अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि वह ‘‘संवैधानिक पीठ के समय की बर्बादी’’ जैसे शब्दों से हैरान हैं, क्योंकि पिछली पीठ ने कहा था कि इन मामलों को एक संविधान पीठ के समक्ष रखा जाना चाहिए. एक अन्य पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी. चिदंबरम ने कहा कि यह मुद्दा अकादमिक नहीं है, और इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट को करना है.

कानून किसी नागरिक को उसकी वैध संपत्ति से वंचित नहीं करता है  
गौरतलब है कि नोटबंदी के वक्त तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने 16 दिसंबर, 2016 को नोटबंदी के सरकार के फैसले की वैधता और अन्य मुद्दों से संबंधित प्रश्न पांच न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ को भेज दिया था. तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने तब कहा था कि यह मानते हुए कि 2016 का नोटिफिकेशन भारतीय रिजर्व बैंक कानून, 1934 के तहत वैध रूप से जारी की गई थी, लेकिन सवाल यह था कि क्या वह संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 का उल्लंघन करने वाला फैसला था ? अनुच्छेद 300(ए) कहता है कि किसी भी शख्स को कानूनी तौर उसकी वैध संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा. 

ऐसी खबरों के लिए विजिट करें zeesalaam.in 

Trending news