Exessive Use of Social media May Leads to Depression: जर्नल ऑफ अफेक्टिव डिसॉर्डर में प्रकाशित एक रिपोर्ट्स के मुताबिक, जो लोग रोजाना 300 मिनट से ज्यादा सोशल मीडिया पर बिता रहे हैं, उनमें अवसाद जैसे रोगों के गंभीर लक्षण पैदा होने का खतरा कई गुणा ज्यादा बढ़ जाता है.
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न्यूयॉर्कः अगर आप सोशल मीडिया (Social media) पर बहुत ज्यादा वक्त बिताने के आदी हैं, तो वक्त रहते हुए संभल जाईऐ, वरना जो नुकसान होगा शायद उसकी भरपाई नहीं हो पाएगी. एक हालिया रिसर्च में दावा किया गया है कि सोशल मीडिया (Social media) का ज्यादा उपयोग करने वाले युवा और वयस्कों में छह महीने के अंदर अवसाद विकसित (developing depression) होने का खतरा पैदा हो जाता है.
उदार लोगों में कम होते हैं ऐसे खतरे
जर्नल ऑफ अफेक्टिव डिसॉर्डर रिपोर्ट्स में प्रकाशित नतीजों से पता चला है कि उच्च सहमति वाले लोगों में कम सहमति वाले लोगों की तुलना में उदास होने की संभावना 49 फीसदी कम पाई गई है. अलबामा विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर चुनहुआ काओ ने कहा, “हालांकि, साहित्य में इस तरह के अध्ययनों की कमी रही है, जिसमें इस बात पर ध्यान केंद्रित हो कि विभिन्न तरह की शख्सियत वाले लोग सोशल मीडिया के उपयोग और अवसाद के बीच सामंजस्य कैसे बिठाते हैं?’’
300 मिनट से ज्यादा इस्तेमाल में बढ़ जाता है खतरा
रिसर्च में यह भी पाया गया है कि रोजाना 300 मिनट से ज्यादा सोशल मीडिया का उपयोग करने पर उच्च विक्षिप्तता वाले लोगों में कम विक्षिप्तता वाले लोगों की तुलना में अवसाद विकसित होने की संभावना दोगुनी पाई गई है. रिर्सच टीम ने 18 से 30 साल की उम्र के 1,000 से ज्यादा अमेरिकी वयस्कों पर अध्ययन किया है. इस रिर्सच में रोगी स्वास्थ्य प्रश्नावली का उपयोग करके अवसाद को मापा गया था.
आउटडोर गतिविधियों को छोड़ देता है इंसान
प्रतिभागियों से पूछा गया था कि लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग वे रोजाना कितनी देर तक करते हैं? शोधार्थियों ने बिग फाइव इन्वेंटरी का यूज करके व्यक्तित्व को मापा था और खुलेपन, कर्तव्यनिष्ठा, अपव्यय, सहमति और विक्षिप्तता का आकलन किया था. शोधकर्तओं का सुझाव है कि सोशल मीडिया पर समस्याग्रस्त सामाजिक तुलना स्वयं और दूसरों के बारे में नकारात्मक भावनाओं को बढ़ा सकती है, जो इस बात का इशारा करती है कि सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग के साथ अवसाद का जोखिम बढ़ सकता है. मुख्य रूप से नकारात्मक सामग्री में संलग्न होना भी ऐसी भावनाओं को बढ़ा सकता है. शोधकर्ताओं ने ये भी दावा किया है कि सोशल मीडिया पर ज्यादा वक्त बिताने से इंसान बातचीत और आउटडोर गतिविधियों में शामिल नहीं हो पाता है, जो उसके व्यक्तित्व और मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य दोनों के लिए खतरनाक है.
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