लखनऊ: अज़ादारी का मरकज़ कहे जाने वाले अदब के शहर लखनऊ में हुसैनबाद ट्रस्ट की जानिब से अपने रिवायती अंदाज़ में सात मोहर्रम के मौक़े पर शाही मेहंदी का जुलुस बड़े इमामबाड़े से छोटे इमामबाड़े तक अक़ीदतो अहतराम के साथ निकाला गया.
यह ऐतिहासिक जुलूस इमाम हसन के बेटे हज़रत क़ासिम की याद में निकाला गया जिसमे बड़ी तादाद में अक़ीदतमंदो ने शिरकत करके अकिदतो का नज़राना पेश किया.
शाही अंदाज में निकला मेहंदी का जुलूस लखनऊ में हुसैनबाद ट्रस्ट की जानिब से आज भी मोहर्रम के कई जुलूस पुराने रस्मो रिवाज और शाही ठाट बाट के साथ नवाबी अंदाज़ में निकाले जाते हैं जिसमे यह शाही मेहंदी का जुलुस भी शामिल है.
सन 1839 में मोहम्मद अली शाह बहादुर जो अवध के तीसरे बादशाह थे उन्होंने हुसैनाबाद ट्रस्ट कायम किया था इसी के तहत आज तक लखनऊ में इमाम हुसैन की याद में इन शाही जुलूसो का एहतिमाम बडे पैमाने पर होता आ रहा है.
पहली मोहर्रम से लेकर आठ रबी उल अव्वल तक इन जुलूसों और मजलिस मातम का सिलसिला जारी रहता है जिसमे हर मज़हबो मिल्लत के लोग खुलूस और मोहब्बत के साथ इमाम हुसैन को अपनी अकिदतो का नज़राना पेश करते हैं, बिना किसी बंदिश के कोरोना के बाद निकल रहे हैं.
जुलूस दो साल तक लगातार कोरोना महामारी की वजह से किसी भी भीड़भाड़ वाले कार्यक्रमों पर सरकार की ओर से रोक लगाई गई थी, जिसके तहत मोहर्रम के जुलूस भी नहीं निकल पा रहे थे.
इमाम हुसैन का ग़म मनाने वाले अज़ादार मोहर्रम में अपने घरों में अज़ादारी कर रहे थे, लेकिन इस साल करोना महामारी कम होने की वजह से लोग खुलकर इमाम हुसैन का गम मना पा रहे हैं और मोहर्रम के सभी पारंपारिक जुलूस अपने रिवायती अंदाज में निकाले जा रहे हैं.
जुलूस में एटीएस का रहा पहरा ड्रोन से हुई निगरानी सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर बड़े इमामबाड़े से छोटे इमामबाड़े की तरफ जाने वाले तमाम रास्तों को डायवर्ट किया गया था.
जुलूस में ज्वाइंट कमिश्नर पियूष मोडिया समेत तमाम पुलिस के आला अधिकारी मौजूद रहे, यहां तक की जुलूस में एटीएस का भी सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर पहरा बना रहा जुलूस के चप्पे-चप्पे पर पुलिस के जवान तैनात थे और आसमान से ड्रोन के जरिए से निगरानी की जा रही थी.
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