मां-बहन-बेटी और बीवी को बुर्का पहनाने से पूरा नहीं होता पर्दे का फर्ज़, मर्दों को भी है सख्त हिदायत
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मां-बहन-बेटी और बीवी को बुर्का पहनाने से पूरा नहीं होता पर्दे का फर्ज़, मर्दों को भी है सख्त हिदायत

Parda in Islam: इस्लाम औरतों को पर्दे का हुक्म देता है. इसके साथ ही वह मर्दों को भी हुक्म देता है. इस्लाम में पर्दे का हुक्म मआशरे से बुराई हटाने और समाज को बेहतर बनाने के लिए दिया है.

मां-बहन-बेटी और बीवी को बुर्का पहनाने से पूरा नहीं होता पर्दे का फर्ज़, मर्दों को भी है सख्त हिदायत

Parda in Islam: इस्लाम हर दौर में बुराई बुराई और बेशर्मी को खत्म करने के लिए आया है. पैगंबर मोहम्मद की पैदाईश से पहले जब इंसानियत दम तोड़ रही थी. अश्लीलता, अनैतिकता और यौन अराजकता अपने चरम पर थी. उस वक्त पर्दे का माहौल पूरी तरह से गायब था. अरब के कुछ कुलीन परिवारों को छोड़कर तकरीबन सभी लोग अश्लीलता और बेहयाई की इस बाढ़ में बह रहे थे. अरब में बेहयाई इस हद तक बढ़ती जा रही थी कि औरतें बेशर्मी से बाज़ारों और गलियों में अजनबी मर्दों के सामने नंगी घूमती थीं. उन्हें कोई नहीं रोकता था. इसके बाद पैगंबर मोहम्मद स0 की पैदाइश हुई. उन्होंने औरतों और मर्दों की बेशर्मी को रोकने की कोशिश की. औरतों को हिदायत दी गई कि कोशिश करें घर पर रहें. जब जरूरत हो तो बाहर निकलें. जब भी बाहर निकलें बुर्का या जिस्म पर चादर ढक लें. उन्होंने पर्दा नहीं करने वालों को कड़ी सजा सुनाई. ताकि समाज में बेशर्मी और बेहयाई पर रोक लगे. 

कुरान में जिक्र है कि "हे पैगंबर (स0)! अपनी बीवियों और मुसलमानों की औरतों से कह दो कि वे अपनी चादरों को अपने ऊपर थोड़ा लटका लें, मुम्किन है कि वह पहचानी जाएं ताकि उन्हें कोई न सताए, और अल्लाह बड़ा बखशने वाला है रहम करने वाला है.(अल-अहज़ाब : 59)"

पर्दा सबसे पहले पैगंबर मोहम्मद के घर से शुरु हुआ. आम लोगों को आदेश दिया गया था कि वे पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के घरों में बिना इजाजत के प्रवेश न करें और अगर वे मोमिनों की माओं से कोई सामान लेना चाहते हैं, तो वे उन्हें घूंघट के पीछे से लें. 

इसके बारे में कुरान में आया है कि "और जब तुम उनसे कुछ मांगो तो परदे के पीछे से मांगो, यह तुम्हारे दिल और उनके दिलों के लिए ज्यादा पाक है. (अल-अहज़ाब: 53)"

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परदे का एहतमाम गैर मर्द औरतों के बीच दिल की पाकीज़गी को हासिल करने के लिए है. जब दिल पाक होंगे तो समाज में अश्लीलता और बेशर्मी नहीं पनपेंगी. पर्दे का हुक्म मर्दों और औरतों दोनों को इसलिए दिया गया है कि ताकि दोनों नफसानी ख्वाहिश से पाक रहें. जब लोगों के नफ्स पाक रहेगें तो मआशला भी महफूज रहेगा. 

इस्लाम ने दुनिया से बेहयाई और आवारगी खत्म करने के लिए हिजाब का हुक्म दिया है. हिजाब का मतलब यह नहीं है कि इस्लाम ने औरतों को घर के अंदर कैद कर दिया है. बल्कि इल्लाम ने औरतों को जरूरत के वक्त पर्दे के साथ घर से बाहर निकलने की इजाजत दी है. 

कुरान में अल्लाह फरमाता है कि “मुसलमान औरतों से कहो कि अपनी निगाहें नीची रखें और अपनी अस्मत में फर्क न आने दें और अपनी जीनत को जाहिर न करें सिवाय उसके जो जाहिर है और अपनी गिरेबानों पर अपनी औढ़नी डालें और अपनी. आराइश को किसी के सामने जाहिर न करें, सिवाय अपने शौहर के. (सुरह अलनूर:3)

मर्दों को भी पर्दा करने का हुक्म दिया गया है. ऐसा इसलिए क्योंकि उनके अंदर भी जिस्मानी ख्वाहिशात होती हैं. अल्लाह ताला कुरान में इरशाद फरमाता है कि "ऐ नबी स0 कह दो मोमिन मर्दों से कि अपनी नजरें नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाजत करें, ये उनके लिए बेहतर है. (कुरान 24:30)

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