सरकार से नाराज रहने वाले असम के मुसलमान CM विश्वा के इस फैसले से हैं बेहद खुश
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सरकार से नाराज रहने वाले असम के मुसलमान CM विश्वा के इस फैसले से हैं बेहद खुश

असम की सरकार ने एक दिन पहले राज्य में 18 से कम उम्र की लड़की से शादी करने और कराने वालों को पोक्सो एक्ट के तहत गिरफ्तार कर उनपर मुकदमा चलाने का फैसला किया है, जिसका वहां के मुस्लिम समुदाय के लोग भी समर्थन कर रहे हैं और सभी ने इस फैसले को लेकर मुख्यमंत्री के कदम का स्वागत किया है. 

अलामती तस्वीर

गुवाहाटी / शरीफ उद्दीन अहमद: असम में मदरसों का सर्वे, गौहत्या विरोधी कानून, एंटी- अतिक्रमण मुहिम और एनआरसी जैसे मुदों पर आमतौर पर सरकार से नाराज रहने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग हेमंत विश्वा सरकार के एक फैसले से काफी खुश हैं. मुस्लिम समुदाय के आम लोगों से लेकर लड़कियां, महिलाएं और यहां तक कि धार्मिक नेता भी सरकार के इस फैसले का समर्थन कर रहे हैं, और इसका दिल खोलकर स्वागत भी कर रहे हैं. इस्लामी कानून के मुताबिक 14 साल की लड़की शादी के योग्य मानी जाती है, और देश का कानून मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत की गई शादियों को मान्यता भी प्रदान करता है. इसके बावजूद मुस्लिम समुदाय के लोग सरकार के इस कानून का विरोध जताने के बजाए उसका समर्थन कर रहे हैं. 

गौरतलब है कि असम कैबिनेट ने सोमवार को एक फैसला लिया है कि प्रदेश में 18 साल से कम उम्र की किसी भी लड़की की शादी नहीं होगी. अगर कोई ऐसा करता है, तो उसके खिलाफ पोक्सो कानून के तहत कार्रवाई की जाएगी और उसे आजीवन कारावास तक की सजा दी जा सकती है, जबकि 14 से 18 के बीच की लड़की से अगर कोई शादी करता है, तो उसे साधारण कारावास की सजा दी जाएगी और पहले के बाल विवाह निषेद्य कानून के तहत मुल्जिम पर मुकदमा चलाया जाएगा. इस मसमले में असम सरकार अगले पंद्रह दिनों में राज्य भर में बाल विवाह के खिलाफ व्यापक अभियान शुरू करने जा रही है. 

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सरकार ने यह बहुत अच्छा फैसला लियाः काजी फखरुद्दीन 
बाल विवाह रोकथाम के लिए कैबिनट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए असम के गुवाहाटी के सरकारी सदर काजी मौलाना फखरुद्दीन अहमद कासिमी ने कहा है, "मैं असम के मुख्य मंत्री हेमंत विश्व शर्मा के इस फैसले पर आसाम सरकार को धन्यवाद देता हूं. सरकार ने यह बहुत अच्छा फैसला लिया है. मैं इस फैसले का स्वागत करता हूं, क्योंकि कम उम्र में लड़कियों की शादी करवाना ठीक नहीं है. इससे लड़कियों की पढ़ाई प्रभावित होती है." मौलाना फखरुद्दीन ने कहा, "शरीयत के मुताबिक कम उम्र में शादी की जा सकती है, लेकिन हमें और एक बात का ध्यान रखना होगा कि जिस देश में हम रहते हैं उस देश के कानून को मानना भी हमारा कर्तव्य है. यह भी इस्लाम का आदेश है कि देश के कानून का उसके नागरिकों को पालन करना चाहिए.’’ इसीलिए हम इस फैसले का स्वागत करते हैं. 

18 साल के नीचे किसी लड़की की निकाह नहीं पढ़वाई 
फखरुद्दीन कासमी ने कहा कि मैंने सरकारी काजी होने के नाते आज तक 18 साल के नीचे किसी लड़की की निकाह नहीं पढ़वाई क्योंकि हमारा जो सरकारी काजी खाना है, यह संपूर्ण कानून के दायरे में आता है. कुछ तंजीम और एनजीओ के काजी हैं जो लोग कानून के दायरे में नहीं रहते हैं और कम उम्र पर शादियां करवाते हैं. मैं सरकार से अपील करता हूं के ऐसी शादियां कराने वाले एनजीओ और लोगों के खिलाफ सरकार सख्त कार्रवाई करें और एसे संगठनों पर पाबंदी लगाए. फखरुद्दीन कासमी ने राज्य के काजी और मौलवियों से अपील की है कि वह 18 से कम उम्र की लड़कियों की शादियां न कराए और ऐसा कहीं हो रहा हो, तो उनके अभिभावकों को समझाएं और उन्हें कानून की जानकारी दें. 

लड़कियों को पढ़ाई-लिखाई करने का मौका मिलेगा 
इस मसले पर एक अन्य मौलाना जजरूल इस्लाम कहते हैं, "सरकार का ये फैसला बिल्कुल सही है. यह कानून सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं है बल्कि प्रदेश की पूरी जनता के लिए है. इससे लड़कियों की सही उम्र में शादी होगी. उन्हें पढ़ाई-लिखाई करने का मौका मिलेगा वह पढ़-लिखकर खुद मुख्तार बनेंगी. कच्ची उम्र में शादी से उनकी सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है. सरकारी स्कूल के एक शिक्षक नियाज अहमद ने कहा, "सरकार का यह कानून सभी असम वासियों के हित में है. इससे लड़कियों को थोड़ी आजादी मिलेगी, वह भी शादी को लेकर खुद फैसला कर पाएगी. 18 से कम की लड़की इस लायक नहीं होती कि वह अपनी शादी को लेकर कोई फैसला ले सके या इस मसले पर कुछ बोल सके. 18 के बाद शादी होगी तो इसमें लड़कियों की भी सहमति शामिल होगी. 18 से कम की शादी में अभिभावक लड़कियों से उनकी मर्जी भी नहीं पूछ पाते हैं और न ही लड़की कुछ बोल पाती है.’’   

लड़कियां पढ़-लिखकर जिंदगी में कुछ बन पाएगी
इस मामले में हाई स्कूल में पढ़ने वाली लड़की जोहरा शरीफ कहती हैं, ’’कम उम्र में लड़कियों की शादी होने से वह अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाती हैं. शादी की वजह से बीच में ही उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ती है. फिर शादी के बाद वह अपनी मर्जी की जिंदगी भी कभी जी नहीं पाती हैं. कम उम्र में ही लड़कियों को अपने पति और ससुराल वालों के हिसाब से चलना पड़ता है. सही उम्र में लड़कियों की शादी होगी तो वह भी अपने सपानों को पूरा कर पाएगी. पढ़-लिखकर जिंदगी में कुछ बन पाएगी.’’ एक अन्य महिला आसमा प्रवीन ने कहा, "सरकार का फैसला बहुत अच्छा है. कम उम्र की शादी में लड़कियों पर समय से पहले ही जिम्मेदारियों का बोझ लाद दिया जाता है. वह खुलकर अपनी ही जिंदगी नहीं जी पाती है कभी.’’ 

मुस्लिम समुदाय को लगाने पड़ सकते हैं कोर्ट और थाने के चक्कर 
इस मसले पर असम के मुस्लिम संगठन खुदाई खिदमतगार के लीडर और एडवोकेट इलियास अहमद कहते हैं, "असम सरकार ने जो फैसला लिया है, यह बहुत ही अच्छा है.’’ हालांकि, इलियास अहम ने ये भी कहा है कि इस फैसले से असम में कुछ प्रॉब्लम जरूर आएगी. इस फैसले के बाद मुस्लिम समुदाय के लोग ज्यादा टारगेट बनाए जा सकते हैं, उन्हें ऐसे मामलों में जेल भेजा जा सकता है. लेकिन इस डर की वजह से लड़कियों के अधिकारों पर डाका नहीं डाला जा सकता है. कम उम्र में लड़कियों की शादी वास्तव में प्रदेश की और यहां के सभी निवासियों की एक आम समस्या है. इसपर रोक लगाया जाना चाहिए. कानून का डर और वक्त के साथ लोगों मं बेदारी आने के बाद यह अपने आप कम और खत्म हो जाएगा. 

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