मिर्जा गालिब ने इसलिए खुद को बताया था आधा मुसलमान, जवाब सुनकर हैरान हुए लोग
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मिर्जा गालिब ने इसलिए खुद को बताया था आधा मुसलमान, जवाब सुनकर हैरान हुए लोग

Mirza Ghalib: उर्दू शायरी का सबसे बड़ा नाम कहे जाने वाले मिर्ज़ा ग़ालिब की आज डेथ एनिवर्सरी है. इस मौके पर हम आपको उनसे जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से बता रहे हैं.

मिर्जा गालिब ने इसलिए खुद को बताया था आधा मुसलमान, जवाब सुनकर हैरान हुए लोग

Mirza Ghalib: शायरी का सबसे बड़ा नाम कहे जाने वाले मिर्जी ग़ालिब की आज पुण्यतिथि (Death anniversary) है. ग़ालिब और शायरी के रिश्ते की बात करें तो ये बहुत गहरा है. इतना गहरा कि आज के दौर में लोग कुछ भी बोलकर आखिर में 'ग़ालिब' लफ्ज़ जोड़ देते हैं. इससे उन्हें लगता है कि उनका शेर 'मज़बूत' हो गया. आज गालिब की पुण्यतिथि (Death anniversary) के मौके पर हम आपको उनका बहुत मशहूर किस्से सुनाने जा रहे हैं.

क्या आप मुसलमान हैं?

एक जानकारी के मुताबिक ये किस्सा ग़दर के दिनों का है. उस वक्त जब दिल्ली से मुसलमान बाहर की तरफ जा रहे थे, लेकिन मिर्ज़ा ग़ालिब वहीं रहे थे. इन्हीं दिनों उनका सामना एक अंग्रेज कर्नल से हो गया. अंग्रेज कर्नल ने मिर्ज़ा ग़ालिब के कपड़े देखकर उनसे सवाल किया,"क्या आप मुसलमान हैं?" ये सवाल सुनकर मिर्ज़ा ग़ालिब ने ऐसा जवाब दिया कि अंग्रेज कर्नल हैरान और हक्का बक्का रह गया.

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आधे मुसलमान मिर्ज़ा ग़ालिब

दरअसल मिर्ज़ा ग़ालिब अपनी हाजिर जवाबी के लिए तो मशहूर थे ही. इस दौरान भी उन्होंने अंग्रेज कर्नल को तुरंत जवाब देते हुए कहा कि मैं आधा मुसलमान हूं. ये जवाब सुनकर अंग्रेज कर्नल ने अगला सवाल दागा और पूछा कि ऐसा कैसे कि आप आधे मुसलमान हैं? इसके जवाब में मिर्ज़ा ग़ालिब ने कहा,"हां, क्योंकि मैं शराब तो पीता हूं लेकिन सुअर नहीं खाता." मिर्ज़ा ग़ालिब का यह जवाब सुनकर अंग्रेज कर्नल अपनी हंसी नहीं रोक पाया.

"गधे आम नहीं खाते"

मिर्ज़ा ग़ालिब और आम (Mango) का भी बहुत गहरा रिश्ता है. ग़ालिब को आम बहुत ज्यादा पसंद थे. यही वजह है उनकी जिंदगी में कई दिलचस्प घटनाएं आम से जुड़ी हुई भी हैं. एक बार की बात है कि मिर्ज़ा ग़ालिब अपने कुछ दोस्तों के साथ खा रहे थे. इसी दौरान वहां से एक गधा गुजरा. जो आम खाए बगैर निकल गया. ये देखकर उनके दोस्तों ने पूछा कि मियां आम में ऐसा क्या है इसे तो गधे भी नहीं खाते. तो मिर्ज़ा ग़ालिब ने जवाब दिया,"मियां, जो गधे हैं वो आम नहीं खाते."

'मीठे होने चाहिए, बहुत होने चाहिए'

एक बार मौलाना फ़ज़्ल-ए-हक़ और कुछ और मोहतरम अफ़राद, आम की अलग-अलग क़िस्मों के बारे में बात कर रहे थे. मिर्ज़ा ग़ालिब भी वहां मौजूद थे. जब सबने अपनी-अपनी राय दे दी, तब मौलाना फ़ज़्ल-ए-हक़, मिर्ज़ा की तरफ़ मुड़े और उनकी राय पूछी. ग़ालिब मुस्कुराए और कहा, ‘मेरे दोस्त, मेरी नज़र में, आम में महज़ दो चीज़े ज़रूरी होती हैं: वो बहुत मीठे होने चाहिए, और वो बहुत सारे होने चाहिए.

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