जन्नत में दाखिल नहीं हो सकेगा लापरवाह मुसलमान; घर से लेकर समाज तक का चुकाना होता है फ़र्ज़
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जन्नत में दाखिल नहीं हो सकेगा लापरवाह मुसलमान; घर से लेकर समाज तक का चुकाना होता है फ़र्ज़

Islamic Knowledge: इस्लाम जिम्मेदारी से अपनी जिंदगी गुजारने की नसीहत देता है. इस्लाम कहता है कि अपने तमाम काम करते हुए अपनी जिंदगी ऐसे गुजारो जिससे आपको जन्नत मिले.

जन्नत में दाखिल नहीं हो सकेगा लापरवाह मुसलमान; घर से लेकर समाज तक का चुकाना होता है फ़र्ज़

Islamic Knowledge: इस्लाम धर्म जिम्मेदारी के साथ अपनी जिंदगी गुजारने की बात करता है. इस्लाम में एक शख्स पर अपनी और अपने परिवार के साथ समाज की भी जिम्मेदारियां हैं. यह सब जिम्मेदारियां निभाते हुए इंसान को ऐसे काम करने हैं, जिससे उसको जन्नत मिले. इस्लाम में कहा गया है कि अपनी जिम्मेदारियां निभाने के लिए फिक्र करो. इस्लाम में एक जगह जिक्र है कि जब मोमिन का इंतेकाल हो तो उसके माथे पर पसीना हो. इसका मतलब यह है कि वह अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के लिए फिक्रमंद हो. अगर वह अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में कोताही करता है तो उसे जन्नत नसीब नहीं होगी.

ये हैं जिम्मेदारियां
इस्लाम धर्म में बचपन से लेकर मरने तक उसकी जिम्मेदारियां बताई गई हैं. इसके बाद इस्लाम इंसान से मुतालबा करता है कि वह उसे वक्त पर निभाए. इसको ऐसे समझ सकते हैं कि जब कोई इंसान बच्चा हो तो वह अपनी पढ़ाई लिखाई के लिए जिम्मेदार हो. इसके बाद जब बच्चा बड़ा हो, तो वह हलाल रोजी के लिए फिक्रमंद हो. अपने मां-बाप की इज्जत करे. शादी के बाद अपनी बीवी की जिम्मेदारियां उठाए. इसके बाद आता है अपने बच्चों और अपने बूढ़े मां-बाप की जिम्मेदारी का मामला. इसके बाद जब इंसान थोड़ा और उम्रदराज होता है, तो उससे उम्मीद की जाती है कि वह अपने समाज को कुछ दे, जहां से उसने तालीम-तरबियत हासिल की और अपनी रोजी कमाई. इन सबके साथ एक मोमिन को अपनी आखिरत भी बनानी होती है. आखिरत का मतलब अपनी जिंदगी को इस्लाम के मुताबिक इस तरह गुजारे कि उसे मरने के बाद जन्नत नसीब हो. अगर किसी मुसलमान ने इन कामों में लापरवाही बरती तो उसे जन्नद नसीब नहीं होगी.

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जन्नत का वादा
इस्लाम में एक जगह जिक्र है कि अल्लाह ने हर इंसान को आखिरत की तैयारी के लिए दुनिया में भेजा है. इसलिए हर इंसान को चाहिए कि वह समाज में अच्छा काम करे और जन्नत में जगह पाने के लिए दुनिया ही में मेहनत करे. इस्लाम में इस बात का जिक्र है कि दुनिया में इंसान जो अच्छे काम करेगा वह उसकी दौलत है. यह दौलत आखिरत में काम आएगी. इसके बदले अल्लाह ताला उसे जन्नत देगा. अगर इंसान गफलत में पड़ जाएगा और कोताही में पड़ जाएगा तो वह आखिरत के बारे में भूल जाएगा, ऐसे में उसे जन्नत नहीं मिलेगी.

हुक्म न मानने पर सजा
इस्लाम में एक जगह इरशाद है कि अल्लाह ने जन्नत के बदले इंसान की जिंदगी को खरीद लिया है. अब इंसान कोई भी काम करेगा वह अल्लाह के मुताबिक ही करेगा. अगर इंसान अल्लाह के बताए गए रास्ते पर नहीं चलता है तो उसकी पकड़ होगी. उसे जन्नत के बजाए जहन्नम में डाला जाएगा. 

खुदा का माल जन्नत
लापरवाही पर एक हदीस में जिक्र है कि "प्रोफेट मोहम्मद स0. ने फरमाया: जिस मुसाफिर को अंदेशा होता है कि वह रास्ते ही में रह जाएगा और ठंडे समय में आराम से अपनी मंजिल पर खैरियत के साथ न पहुंच सकेगा, वह अपनी नींद कुर्बान करके रात के शुरू में ही सफर शुरू कर देता है और ठंडे समय में अपनी मंजिल पर पहुंचा जाता है. तो ऐ खुदा के माल के खरीदारो. खुदा का माल कीमती है. सुनो, खुदा के माल का नाम 'जन्नत' है." (हदीस: तिरमिजी)

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