दूसरों को खुद पर दें तरजीह, इस्लाम देता है जरूरतमंदों का ख्याल रखने की हिदायत
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दूसरों को खुद पर दें तरजीह, इस्लाम देता है जरूरतमंदों का ख्याल रखने की हिदायत

Islamic Knowledge: इस्लाम में कहा गया है कि अपने से ज्यादा जरूरतमंद लोगों का ख्याल रखो. अपने करीबियों की तोहफे से खाने से कर्ज के जरिए मदद करो.

दूसरों को खुद पर दें तरजीह, इस्लाम देता है जरूरतमंदों का ख्याल रखने की हिदायत

Islamic Knowledge: इस्लाम तक्वा और परहेजगारी में यकीन रखता है. इस्लाम का मानना है कि अपने पास जरूरत का सामान रखो. जरूरत से ज्यादा सामान अपने करीबियों को दे दिया करो. इसीलिए इस्लाम में जकात को फर्ज किया है, ताकि जरूरतमंद इंसान को जरूरत का सामान मिल जाए. इस्लाम में अपने पड़ोसियों का इसी तरह ख्याल रखने की बात कही गई है. इस्लाम कहता है कि अपने पड़ोसियों को तोहफे दिया करो. इस्लाम कहता है कि जो अपने लिए पसंद करो वही अपने भाई यानी अपने करीबियों के लिए पसंद करो. प्रोफेट मोहम्मद स0 के जमाने में कई सहाबा ऐसे थे, अपने दस्तरख्वान पर अपने साथियों और करीबियों को बुला लिया करते थे. इस तरह से जरूरतमंदों की जरूरत पूरी होती थी और आपसी ताल्लुकात भी बेहतर होते थे.

कर्ज से करें मदद
इस्लाम कहता है कि मुसलमान दूसरों की मदद करता है. इस्लाम में कहा गया है कि अगर आपके साथी को पैसों की जरूरत है तो आप उसे कर्ज दें. क्योंकि इस्लाम में कर्ज देना सदका देने से ज्यादा अफजल है. इसकी वजह यह है कि कोई शख्स भीख तब मांगता है जब उसके पास कुछ होता है, लेकिन कर्ज वह शख्स मांगता है जब उसके पास कुछ नहीं होता. इसलिए लोगों की जरूरत को समझते हुए लोगों को कर्ज दिया करो.

खाना खिला कर करें मदद
इस्लाम में एक जगह इरशाद है कि एक शख्स प्रोफेट मोहम्मद स0. के पास आया. उस शख्स ने आप स0 से कहा कि वह बहुत भूखा है. इस पर प्रोफेट मोहम्मद स0. ने अपने साथियों से पूछा कि कौन इस मेहमान को खाना खिलाएगा. इस पर एक सहाबी ने कहा कि वह मेहमान को खाना खिलाएंगे. सहाबी मेहमान को घर लेकर गए. उन्होंने अपनी बीवी से पूछा कि क्या घर में कुछ खाने को है? जवाब मिला कि बच्चों के लिए खाना है, लेकिन उन्होंने अभी नहीं खाया है. इस पर सहाबी ने कहा कि बच्चो को कुछ देकर बहला दो और खाना मेहमान को खिला दो. अगली बार जब वो सहाबी प्रोफेट मोहम्मद स0 से मिले, तो उन्होंने कहा कि अल्लाह को आपकी मेहमान नवाजी पसंद आई. कहने का मतलब यह है कि सहाबी ने मेहमान के लिए अपना दिल बड़ा किया. उन्होंने अपने ऊपर मेहमान को तरजीह दी. (व्याख्या- बच्चों को बहला देने वाली बात से मुराद ये है कि बच्चों को थोड़ा सा कुछ खिला कर सुला दिया गया. बच्चे इस हालत में नहीं थे कि भूख से उनकी मौत हो जाए.)

तोहफे से मदद
अपने ऊपर किसी दूसरे शख्स को तरजीह देने के बारे में एक हदीस भी है. "हजरत अब्दुल्लाह इब्ने उमर (रज0) कहते हैं कि नबी स0 के साथियों में से एक साहब को बकरी की सिरी तोहफे में भेजी गई. उन्होंने कहा: मेरा फलां साथी मुझसे ज्यादा जरूरतमंद है, अत: उन्होंने उनके पास भेज दी. उन साहब ने एक दूसरे साहब के बारे में बताया कि यह तोहफा उन्हें दे आओ; वे ज्यादा जरूरतमंद हैं. इस तरह बकरी की वह सिरी सात आदमियों तक पहुंचने के बाद आखिरकार पहले आदमी के पास लौटकर आ गई." (हदीस: सहीफतुल-हक)

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