नई दिल्लीः इंदौर के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में सहायक प्रोफेसर मिर्जा मोजिज़ बेग को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है. बेग कॉलेज की लाइब्रेरी में ऐसी किताब रखने और छात्रों को पढ़ाने का आरोप लगा था, जिसमें एक दक्षिणपंथी संगठन के बारे में कुछ अपमानजनक बातें लिखी थी.
Trending Photos
नई दिल्लीः इंदौर के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में सहायक प्रोफेसर मिर्जा मोजिज़ बेग को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है. बेग कॉलेज की लाइब्रेरी में ऐसी किताब रखने और छात्रों को पढ़ाने का आरोप लगा था, जिसमें एक दक्षिणपंथी संगठन के बारे में कुछ अपमानजनक बातें लिखी थी. बेग पर कथित तौर पर दुश्मनी और नफरत को बढ़ावा देने के आरोप में उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी. कहा गया था कि उनके कॉलेज की लाइब्रेरी में ’हिंदूफोबिक’ किताब मिली है.
जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने बेग को अग्रिम जमानत दी है. शीर्ष अदालत ने तीन फरवरी को बेग की याचिका पर मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी करते हुए उन्हें गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया था. कोर्ट ने कहा था कि हम आश्वस्त हैं कि याचिकाकर्ता अंतरिम सुरक्षा का हकदार है. इसलिए, याचिकाकर्ता को 3 फरवरी को अंतरिम संरक्षण प्रदान किया गया था. पीठ ने 26 अप्रैल को अपना आदेश सुनाया है. बेग की तरफ से एडवोकेट अल्जो के जोसेफ पेश हुए थे. हालांकि प्रतिवादी (राज्य सरकार) के वकील की दलील थी कि याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत देना ठीक नहीं होगा.
सहायक प्रोफेसर मिर्जा मोजिज़ बेग ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था जिसमें अग्रिम जमानत के लिए उनकी अर्जी खारिज कर दी गई थी. उन्होंने अपने खिलाफ लगाए गए सभी इल्जामों से इनकार करते हुए कहा था कि पुस्तक को 2014 में कॉलेज में खरीदा गया था. इससे पहले कि वह अनुबंध के आधार पर कॉलेज में शामिल हुए थे. किताब की खरीदारी में उनका कोई रोल नहीं था. उन्होंने अपनी दलील में कहा कि यह पुस्तक 18 से ज्यादा सालों से लॉ के मास्टर पाठ्यक्रम का हिस्सा रही है, और मध्य प्रदेश राज्य में आपराधिक कानून में विशेषज्ञता रखने वाले सभी स्नातकोत्तर छात्रों को पढ़ाया जाता रहा है. बेग ने दलील दी थी कि अकादमिक स्वतंत्रता और 2014 में किसी के द्वारा प्रकाशित एक किताब प्राथमिकी का आधार नहीं हो सकती है, जब याचिकाकर्ता का किताब से कोई संबंध नहीं है.
गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने पिछले साल दिसंबर में इसी मामले में इंदौर के राजकीय न्यू लॉ कॉलेज के प्राचार्य और प्रोफेसर इनामुर रहमान को गिरफ्तारी से संरक्षण दिया था. भवारकुआं पुलिस ने कथित आपत्तिजनक सामग्री की शिकायत के आधार पर 2 दिसंबर को रहमान, बेग, और 'सामूहिक हिंसा और आपराधिक न्याय प्रणाली’ पुस्तक की लेखक फरहत खान और किताब के प्रकाशक के खिलाफ मामला दर्ज किया था. शिकायत में कहा गया था कि फरहत खान द्वारा लिखित और अमर लॉ पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित “कलेक्टिव वायलेंस एंड क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम" नामक पुस्तक की सामग्री झूठे और निराधार तथ्यों पर आधारित है, जो राष्ट्र-विरोधी है, जिसका मकसद सार्वजनिक शांति को नुकसान पहुंचाना है. राष्ट्र की अखंडता और धार्मिक सौहार्द को बिगाड़ना है. इस मामले के सामने आने के बाद कॉलेज परिसर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के बाद रहमान, बेग और तीन अन्य लोगों को अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ा था. प्रिंसिपल रहमान को प्राचार्य पद से इस्तीफा देना पड़ा था. इससे पहले रहमान और बेग को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया था और इस विवाद में शामिल तीन अन्य फैकल्टी सदस्यों की सेवाएं भी समाप्त कर दी गईं.
इससे पहले, जब मध्य प्रदेश सरकार के वकील ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि राज्य हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देना चाहता है, तो मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने आश्चर्य व्यक्त किया था. सीजेआई ने तब राज्य के वकील से कहा था, “राज्य को कुछ और गंभीर चीजें करनी चाहिए. वह एक कॉलेज प्रिंसिपल हैं. आप उन्हें गिरफ्तार क्यों कर रहे हैं? पुस्तकालय में एक किताब मिली है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसमें कुछ सांप्रदायिक संकेत हैं. किताब 2014 में खरीदी गई थी, क्या आप इस मामले में गंभीर हैं?"
Zee Salaam