ये कोई बंगला नहीं, भारत की पहली मस्जिद है, मस्जिद-ए-नबवी से है महज़ 7 साल छोटी
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ये कोई बंगला नहीं, भारत की पहली मस्जिद है, मस्जिद-ए-नबवी से है महज़ 7 साल छोटी

Cheraman Jama Masjid: भारत की पहली जामा मस्जिद कौन सी है? शायद इस सवाल का जवाब सभी को नहीं पता होगा, तो पढ़िए ये खबर.

ये कोई बंगला नहीं, भारत की पहली मस्जिद है, मस्जिद-ए-नबवी से है महज़ 7 साल छोटी

First Mosque Of India: दुनियाभर में एक से बढ़कर एक मस्जिदें हैं, कुछ अपने पुरानेपन तो कुछ शान की वजह से सुर्खियों में बनी रहती हैं लेकिन आज हम आपको जिस मस्जिद के बारे में बताने जा रहे हैं वो कई मायनों में अहम मानी जाती है. केरल के त्रिशूर जिले में मौजूद चेरामन मस्जिद को जब पहली नजर में देखते हैं तो ऐसा लगता है, जैसे ये कोई शानदार बंगला हो. लेकिन जब हम इस मस्जिद के बारे में पढ़ते हैं तो इसकी सच्चाई लोगों को हैरान कर देती है. 

मस्जिद-ए-नबवी की 7 बरस छोटी:
कहा जाता है कि केरल में मौजूद यह मस्जिद उम्र के मामले में मदीना की मस्जिद-ए-नबवी से महज़ 7 बरस छोटी है. मस्जिद-ए-नबवी 622 ईसवी में बनी थी तो केरल की चेरामन मस्जिद 629 में. इसलिए, इसे भारत की पहली मस्जिद और उपमहाद्वीप की सबसे पुरानी मस्जिद माना जाता है. यह मस्जिद उस समय की केरल वास्तुकला पर बनाई गई थी. इस मस्जिद को काबुल से संबंध रखने वाले फारसी गुलाम हजरत मालिक बिन दीनार (रह.) ने चेरामन पेरुमल के कहने पर बनवाई थी. 

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कौन थे चेरामन पेरुमल?
मस्जिद बनवाने का आदेश देने वाले चेरामन पेरुमल राजा थे. वो एक बार मक्का के सफर गए थे. वहां पहुंचकर उन्होंने इस्लाम कुबूल कर लिया था और अपना नाम ताजुद्दीन रखा था. साथ ही जेद्दा के राजा की बहन से शादी कर ली थी. वहां से लौटने के बाद ताजुद्दीन ने यह मस्जिद बनवाई थी. इस मस्जिद को लेकर कहा जाता है कि यह भारत की पहली जामा मस्जिद थी और हिंदुस्तान में पहली बार जुमा की नमाज़ भी इसी मस्जिद में पढ़ी गई थी. 

"मस्जिद से पहले यहां था मंदिर"
इस मस्जिद का निर्माण केरल की प्राचीन वास्तुकला पर किया गया था. कहा यह भी जाता है कि 11वीं सदी में इस मस्जिद का पुनर्निर्माण किया गया था. मस्जिद के निर्माण के इतिहास में कई मोड़ दिए गए थे, क्योंकि यह एक बौद्ध मंदिर था, इसलिए इसे इस्लाम के अनुकूल बनाना पड़ा. पूर्वी तरफ, मस्जिद में अभी भी कुछ अवशेष हैं बौद्ध मंदिर, जैसे पारंपरिक तालाब और दीपक जो हजारों वर्षों से लगातार जल रहा है, जिसमें सभी धर्मों के तीर्थयात्री और तीर्थयात्री तेल डालते हैं.

इस मस्जिद कई अहमियत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 2016 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सऊदी अरब का दौरा किया तो उन्होंने सऊदी किंग सलमान को इस मस्जिद का एक सोने का मॉडल भेंट किया था.

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