बिहार में सुशासन के 17 साल बाद भी गरीबी ने नहीं छोड़ा पीछा; भूमिहार भी हो गए गरीब !
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बिहार में सुशासन के 17 साल बाद भी गरीबी ने नहीं छोड़ा पीछा; भूमिहार भी हो गए गरीब !

Bihar Caste Survey Report: बिहार में किए गए जाति सर्वे के आंकड़े सामने आ गए हैं. नए आंकड़ों के मुताबिक, एक तिहाई परिवार प्रति माह छह हजार रुपये या उससे कम पर अभी भी गुजारा कर रहे हैं. 

 बिहार में सुशासन के 17 साल बाद भी गरीबी ने नहीं छोड़ा पीछा; भूमिहार भी हो गए गरीब !

Bihar Caste Survey Report: बिहार में हाल में हुए सर्वे के मुताबिक, बिहार में एक तिहाई परिवार गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रहे हैं, और वे प्रतिमाह 6000 रुपये या उससे भी कम पैसे कमा रहे हैं. जातीय सर्वेक्षण पर मंगलवार को विधानसभा में पेश की गई विस्तृत रिपोर्ट से यह बात सामने आई है.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ऊंची जातियों में बहुत गरीबी है लेकिन पिछड़े वर्ग, दलितों और आदिवासियों का फीसदी उनसे भी ज्यादा है. संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी द्वारा सदन में पेश की गई इस रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में करीब 2.97 करोड़ परिवार हैं, जिनमें 94 लाख से ज्यादा (34.13 प्रतिशत) परिवार गरीब हैं. इस रिपोर्ट में एक अन्य अहम बात सामने आई है कि 50 लाख से ज्यादा बिहारी आजीविका या बेहतर शिक्षा अवसरों की तलाश में राज्य से बाहर रह रहे हैं.

बिहार से बाहर दूसरे राज्यों में आजीविका कमा रहे लोग (बिहारी) करीब 46 लाख हैं, जबकि 2.17 लाख लोग (बिहारी) विदेशों में राजगार के लिए रह रहे हैं. अन्य राज्यों में पढ़ाई कर रहे बिहारियों की तादाद करीब 5.52 लाख है, जबकि 27,000 लोग विदेशों में पढ़ रहे हैं.

ऊंची जातियां राज्य की कुल आबादी का सिर्फ 10 फीसदी
गौरतलब है कि जातीय सर्वेक्षण के प्रारंभिक नतीजे दो अक्टूबर को जारी किये गये थे. नीतीश कुमार सरकार ने जातीय सर्वे कराने से केंद्र के इनकार करने के बाद इस सर्वे का आदेश दिया था. इस सर्वेके प्राथमिक नतीजों के मुताबिक, बिहार में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) राज्य की कुल जनसंख्या का 60 फीसदी है, जबकि ऊंची जातियां करीब 10 फीसदी हैं.

ऊंची जातियों में सबसे गरीब भूमिहार 
इस रिपोर्ट के मुताबिक, ऊंची जातियों में गरीबी दर 25 फीसदी से ज्यादा है. हिंदुओं में ऊंची जातियों में संपन्न जाति तादाद की दृष्टि से मामूली कायस्थ हैं. काफी हद तक शहरी जीवन जीने वाले इस समुदाय में सिर्फ 13.83 परिवार ही गरीब हैं. सवर्ण जातियों में गरीबी दर भूमिहारों (27.58 प्रतिशत) में आश्चर्यजनक ढंग से सबसे ज्यादा है. इससे पहले माना जाता था कि बिहार में भूमिहार ही सबसे ज्यादा जमीन वाली जाति है. 1990 के दशक में मंडल की लहर आने तक इसी जाति का राज्य की राजनीति पर दबदबा था. मंडल लहर ने नई सत्ता संरचना को स्थापित किया था.

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