बतख मियां ने चंपारण में महात्मा गांधी को जहर देकर मारने की साजिश को किया था नाकाम
Advertisement

बतख मियां ने चंपारण में महात्मा गांधी को जहर देकर मारने की साजिश को किया था नाकाम

Muslim Freedom fighter Batakh Miyan Ansari: भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में ऐसे कई मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्हें मुल्क को आजाद होने के बाद भुला दिया गया. उन्हीं में से एक थे बतख मियां, जिन्होंने बिहार के चंपारण में महात्मा गांधी की जान बचाई थी. 

 बतख मियां, illustration credit: Mohammad Ghouse Hydrabad

Muslim Freedom fighter Batakh Miyan Ansari:  हिन्दुस्तान की जंग- ए -आज़ादी की तारीख में बहुत सारे ऐसे मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्हें आज़ादी के बाद भुला दिया गया. उनकी कुबार्नियों को नजरअंदाज किया गया. ऐसे ही स्वतंत्रता सेनानियों में एक नाम शामिल है बिहार के चंपारण के रहने वाले बतख मियां का. शायद बतख मियां न होते तो आज हमारे सामने महात्मा गांधी का इतिहास नहीं होता है. बतख मियां ने महात्मा गांधी को जहर देकर मारने की अंग्रेज अफसरों की साजिश को नाकाम कर दिया था. 

महात्मा गांधी की हत्या करने की ब्रिटिश नील बागान मालिकों की साजिश को नाकाम करने वाले बतख मिया अंसारी का जन्म 1867 में बिहार प्रदेश के मोतिहारी जिले में हुआ था. उनके पिता मोहम्मद अली अंसारी थे. 
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने बिहार में ब्रिटिश नील बागान मालिकों द्वारा किसानों पर किए जा रहे अत्याचारों की शिकायत की जांच के लिए महात्मा गांधी को बिहार के चंपारण जिले में भेजा था. कई इतिहासकार मानते हैं कि दक्षिण अफ्रिका से भारत आने के बाद महात्मा गांधी का यह पहला ऐसा दौरा था, जिसमें वह अंग्रेजों से सताए हुए लोगों की व्यथा सुनने और उसे देखने गए थे.  

चूंकि ब्रिटिश बागान मालिकों को डर था कि जांच में उनके अत्याचारों का खुलासा हो जाएगा, इसलिए उन्होंने गांधीजी को जहर खिलाकर उन्हें मारने की साजिश रची थी. उन्होंने यह भी सोचा कि अगर खाना कोई भारतीय परोसेगा तो उनकी पोल नहीं खुलेगी. इसलिए इस काम के लिए बतख मिया अंसारी को चुना गया, जो उस वक्त ब्रिटिश सरकार में एक अदना-सा मुलाजिम थे.

ब्रिटिश बगान मालिकों ने बतख मिया पर महात्मा गांधी को जहर मिला हुआ खाना परोसने के लिए दबाव डाला और कहा कि अगर वह ऐसा करते हैं तो उन्हें विलासितापूर्ण जीवन जीने के लिए सभी सुविधाएं दी जाएगी और अगर उन्होंने ऐसा करने से इंकार किया तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. लेकिन, अंसारी उनके प्रस्ताव के लालच में नहीं आए और न ही उनकी चेतावनियों की परवाह की. उन्होंने सीधे तौर पर महात्मा गांधी को अंग्रेजों की इस साजिश के बारे में सूचना दे दी. महात्मा गांधी उस दावत में खाने नहीं पहुंचे.

कुछ इतिहासकारों ने लिखा है कि बतख मियां अंग्रेज अफसर के यहां रसोईये का काम करते थे. अंग्रेज अफसर ने गांधी जी को खाने पर बुलाया था. रात के खाने के बाद अंग्रेज अफसर ने जहर मिला दूध लेकर बतख मियां को महात्मा गांधी के पास भेजा था. जब बतख मियां महात्मा गांधी के पास वह जहर मिला दूध लेकर पहुंचे तो उस दूध को गांधी जी को देने की उनकी हिम्मत नहीं हुई और वह दूध महात्मा गांधी को न देकर उनके कमरे में कुछ दूरी पर रख दिया. इसके बाद वह फूटफूट कर रोने लगे. गांधी जी ये माजरा देखकर सबकुछ समझ गए और वह दूध उन्होंने पीने के बजाए फेक दिया. 

इस घटना के बाद बतख मिया को अंग्रेज ने नौकरी से निकाल दिया गया और ब्रिटिश बागान मालिकों द्वारा उनके साथ क्रूर व्यवहार किया गया. यह घटना 1917 में घटी थी, जिसके चश्मदीद गवाह डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी थे. जब राजेंद्र प्रसाद 1950 में स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में मोतिहारी आए, तो उन्होंने गरीबी से जूझ रहे बतख मिया अंसारी को वहां देखकर पहचान लिया. राजेंद्र प्रसाद ने तुरंत 50 एकड़ जमीन उनके खेती के लिए मंजूर कर दी, लेकिन अधिकारियों की उदासीनता की वजह से काफी लंबे अरसे तक यह आदेश लागू नहीं हो सका.

 जब 1957 में बतख मिया अंसारी का निधन हो गया और डॉ. राजेंद्र प्रसाद को उनकी मौत की खबर मिली तो उन्होंने 3 दिसंबर, 1958 को उनके परिवार के सदस्यों को राष्ट्रपति भवन में आमंत्रित किया और जमीन उन्हें सौंपने के लिए तत्काल कार्रवाई की.

इस वाक्ये के बाद ही भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में प्रमुख स्थान पाने योग्य बतख मिया अंसारी का बलिदान सुर्खियों में आया. स्वतंत्रता सेनानी सैयद इब्राहिम फिकरी (दिल्ली) ने अपनी उर्दू में लिखी पुस्तक ’हिंदुस्तानी जंग-ए-आजादी में मुसलमानों का हिसा’ में बतख मिया का जिक्र किया है. हाल ही में कन्नड़ इतिहासकार नसीर अहमद ने भी अपनी किताब में बतख मिया का ज़िक्र किया है. 

महात्मा गांधी के खिलाफ साजिश को नाकाम करने वाले अंसारी को जिंदगी भर गरीबी और कंगाली में जीना पड़ा. उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन और मुल्क के लिए एक महान काम किया, लेकिन उन्हें अपनी जिंदगी में मान्यता नहीं मिल सकी. भारत के पहले राष्ट्रपति द्वारा किया गया वादा अभी भी पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है. भारत की पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने भी इस दिशा में प्रयास किए थे, लेकिन लंबे अरसे से लंबित फाइल आगे बढ़ती नहीं दिख रही है. सरकार अभी तक बतख मिया अंसारी के परिवार को मदद नहीं कर पाई है.

Zee Salaam

Trending news