Supreme Court judge Ex S Adbul Nazeer appointed as Andhra Pradesh Governor: राष्ट्रपति मुर्मू ने इतवार को चार भाजपा नेताओं सहित अयोध्या पर पुरातात्विक रिपोर्ट को सही ठहराने वाली संविधान पीठ के सदस्य रहे सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एस अदबुल नजीर सहित लोगों को राज्यपाल नियुक्त किया गया है.
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नई दिल्लीः भाजपा के चार नेता और अयोध्या पर पुरातात्विक रिपोर्ट को सही ठहराने वाली संविधान पीठ के सदस्य रहे सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एस अदबुल नजीर सहित छह नए चेहरों को इतवार को राज्यपाल नियुक्त किया गया है.
राष्ट्रपति भवन की एक विज्ञप्ति के मुताबिक, महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी और लद्दाख के उपराज्यपाल आर के माथुर के इस्तीफे स्वीकार कर लिए गए हैं. भाजपा नेताओं लक्ष्मण प्रसाद आचार्य, सीपी राधाकृष्णन, शिव प्रताप शुक्ला और गुलाब चंद कटारिया, जो राजस्थान में विपक्ष के नेता भी हैं, को क्रमशः सिक्किम, झारखंड, हिमाचल प्रदेश और असम में राज्यपाल के रूप में नामित किया गया है.
कोश्यारी की जगह झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने ली है, जबकि माथुर की जगह अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल ब्रिगेडियर बी डी मिश्रा (सेवानिवृत्त) को दी गई है.
सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश नज़ीर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल और लेफ्टिनेंट जनरल के टी परनाइक (सेवानिवृत्त) को अरुणाचल प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया. जस्टिस नज़ीर 4 जनवरी को सेवानिवृत्त हुए हैं. जस्टिस नज़ीर ऐतिहासिक अयोध्या राम जन्मभूमि निर्णय का हिस्सा थे.
जस्टिस नज़ीर का जन्म 5 जनवरी, 1958 को हुआ था और उन्होंने 18 फरवरी, 1983 को एक वकील के रूप में नामांकन कराया था. उन्होंने कर्नाटक उच्च न्यायालय में वकालत किया और 12 मई, 2003 को उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए. शीर्ष अदालत से विदाई के दौरान CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने जस्टिस नज़ीर की सादगी का जिक्र करते हुए कहा था कि जज के पास 2019 तक पासपोर्ट भी नहीं था और कुछ हफ्ते पहले ही देश से बाहर पहली बार मॉस्को गए थे. हाल तक उनकी एकमात्र आईडी ड्राइविंग लाइसेंस और जज आईडी थी. उनका पासपोर्ट 2019 में बनाया गया था और उन्होंने कहा कि उस पासपोर्ट पर पहली मुहर तब लगी थी जब उन्होंने कुछ हफ्ते पहले मास्को की यात्रा की थी.
नजीर से पहले भी कई जजों को राज्यपाल नियुक्त किया गया है. हालांकि, यहां खास बात है कि नरीज अयोध्या मामले में बेंच के सदस्य रह चुके हैं. ऐसे में उनपर ये सवाल उठाया जा सकता है कि सरकार का फेवर करने के लिए उन्हें ये पद दिया गया है. इससे पहले चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को भी आयोध्या फैसले के बाद उनके रिटायरमेंट के बाद सरकार ने राज्यसभा में मनोनित किया था, जिससे सरकार और चीफ जस्टिस दोनों पर सवाल खड़े किए गए थे.
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