चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में सुप्रीम कोर्ट का दख़ल; केंद्र सरकार से मांगी फाइल
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चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में सुप्रीम कोर्ट का दख़ल; केंद्र सरकार से मांगी फाइल

Election Commissioner Arun Goel: सुप्रीम कोर्ट ने मरकज़ी हुकूमत से चीफ़ इलेक्शन कमिश्नर अरुण गोयल की नियुक्ति से जुड़ी फाइल पेश करने को कहा है. अरूण गोयल को 19 नवंबर को CEC के तौर पर नियुक्त किया गया है. पढ़िए पूरी ख़बर.

चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में सुप्रीम कोर्ट का दख़ल; केंद्र सरकार से मांगी फाइल

Election Commissioner Arun Goel: 19 नवंबर को अरुण गोयल ने इलेक्शन कमिश्नर के तौर पर ओहदा संभाल लिया, लेकिन अब अरुण गोयल की नियुक्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट का दख़ल हो गया है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्र्ल गवर्नमेंट से रिकॉर्ड तलब करते हुए कहा कि वह जानना चाहता है कि कहीं कुछ ग़लत तो नहीं किया गया है. गोयल को 19 नवंबर को इलेक्शन कमिश्नर नियुक्त किया गया था. सु्प्रीम कोर्ट ने फाइल पेश करने के अपने ऑर्डर पर केंद्र के ऐतराज़ात को ख़ारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि वह जानना चाहता है कि अप्वाइंटमेंट प्रोसेस में क्या हर चीज़ सही थी, जैसा कि केंद्र सरकार ने दावा किया है.

अरुण गोयल की नियुक्ति की फाइल पेश करें: SC 
सु्प्रीम कोर्ट में मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए दाख़िल अर्ज़ी पर 23 नवंबर को भी सुनवाई हुई. इस दौरान जस्टिस केएम जोसेफ की सदारत वाली आईनी बेंच ने केंद्र सरकार से जानना चाहा है कि हाल ही में गोयल को वीआरएस दिलाया गया और फिर उनकी तक़र्रूरी की गई है, कहीं इस मामले में कोई गड़बड़ तो नहीं है. बेंच ने मामला विचाराधीन होने के बीच नियुक्ति की गई है. सुप्रीम कोर्ट ने मरकज़ी हुकूमत से कहा है कि वह 24 नवंबर को इलेक्शन कमिश्नर अरुण गोयल की नियुक्ति की फाइल कोर्ट में पेश करें, हालांकि सेंट्रल गवर्मेंट की तरफ़ से पेश अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण के ज़रिए EC अरुण गोयल की नियुक्ति पर सवाल उठाने और फाइल मंगाने की मुख़ालेफ़त की.

इस मामले में कोई ख़ामी नहीं: केंद्र सरकार
मामले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से चीफ़ इलेक्शन कमिश्नर (CEC) और इलेक्शन कमीशन (EC) की तक़र्रूरी और अमल के बारे में कई सवाल पूछे. मरकज़ी हुकूमत ने कोर्ट के सवालों का जवाब देते हुए कहा तक़र्रूरी के अमल में सही तरीक़ा अपनाया जाता है. नामों का पैनल तैयार होता है. कोर्ट को इसमें दख़ल देने की ज़रूरत नहीं है. कोर्ट को उस समय पड़ताल करना चाहिए जब कोई कमी हो, जबकि इस मामले में कोई ख़ामी नहीं है.

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