Ada Jafri Poetry: अदा जाफरी ने अपने बाद आने वाली शायरात जैसे किश्वर नाहीद, परवीन शाकिर और फ़हमीदा रियाज़ के लिए ऐसा रास्ता बनाया जिस पर चल कर इन लोगों ने उर्दू अदब अहम मकाम तक पहुंचाया.
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Ada Jafri Poetry: अदा जाफरी पाकिस्तान की जानी मानी उर्दू की शायरात हैं. वह पाकिस्तान की पहली ऐसी शायरात हैं जो जिनकी शायरी छपी. उन्हें 'उर्दू की पहली शायरात' के नाम से भी जाना जाता है. समकालीन उर्दू साहित्य में उन्हें एक अहम शख्स माना जाता है. अदा जाफ़री का असली नाम अज़ीज़ जहां था. शादी के बाद उन्होंने अपना नाम अदा जाफ़री रखा. वो साल 1924 में बदायूं में पैदा हुईं. अदा जाफरी को उनके बेहतरीन काम के लिए पाकिस्तान सराकर, पाकिस्तान गिल्ड राइटर्स और सोसाईटी ऑफ नार्थ अमेरिका एण्ड यूरोप में कई अवार्ड मिले. अदा जाफरी का साल 2014 में इंतेकाल हुआ. वह 90 साल तक जिंदा रहीं.
गुल पर क्या कुछ बीत गई है
अलबेला झोंका क्या जाने
हाथ काँटों से कर लिए ज़ख़्मी
फूल बालों में इक सजाने को
जिस की बातों के फ़साने लिक्खे
उस ने तो कुछ न कहा था शायद
हज़ार कोस निगाहों से दिल की मंज़िल तक
कोई क़रीब से देखे तो हम को पहचाने
होंटों पे कभी उन के मिरा नाम ही आए
आए तो सही बर-सर-ए-इल्ज़ाम ही आए
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अगर सच इतना ज़ालिम है तो हम से झूट ही बोलो
हमें आता है पतझड़ के दिनों गुल-बार हो जाना
बड़े ताबाँ बड़े रौशन सितारे टूट जाते हैं
सहर की राह तकना ता सहर आसाँ नहीं होता
जिस की जानिब 'अदा' नज़र न उठी
हाल उस का भी मेरे हाल सा था
कुछ इतनी रौशनी में थे चेहरों के आइने
दिल उस को ढूँढता था जिसे जानता न था
जो दिल में थी निगाह सी निगाह में किरन सी थी
वो दास्ताँ उलझ गई वज़ाहतों के दरमियाँ
कोई ताइर इधर नहीं आता
कैसी तक़्सीर इस मकाँ से हुई
कटता कहाँ तवील था रातों का सिलसिला
सूरज मिरी निगाह की सच्चाइयों में था
काँटा सा जो चुभा था वो लौ दे गया है क्या
घुलता हुआ लहू में ये ख़ुर्शीद सा है क्या
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