MP News: वक्फ बोर्ड को बड़ा झटका, करबला मैदान की जमीन पर MCD का कब्जा
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MP News: वक्फ बोर्ड को बड़ा झटका, करबला मैदान की जमीन पर MCD का कब्जा

Indore Waqf News: मध्य प्रदेश के इंदौर में वक्फ बोर्ड को बड़ा झटका लगा है. कोर्ट ने  इंदौर में करबला मैदान की 6.70 एकड़ जमीन पर बड़ा फैसला सुनाया है. पूरी खबर पढ़ने के लिए नीचे स्क्रॉल करें.

MP News: वक्फ बोर्ड को बड़ा झटका, करबला मैदान की जमीन पर MCD का कब्जा

Indore Waqf News: मध्य प्रदेश वक्फ बोर्ड को बड़ा झटका लगा है. इंदौर में करबला मैदान की 6.70 एकड़ जमीन पर वक्फ ने दावा किया था. जिसे जिला अदालत ने वक्फ का दावा खारिज कर दिया है और नगर निगम को इस बेशकीमती भूमि का मालिक घोषित कर दिया है. महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने आज यानी 17 सितंबर को कोर्ट की फैसले की जानकारी दी. 

उन्होंने कहा कि इस विवादित जमीन को लेकर 1979 से चल रही कानूनी लड़ाई में नगर निगम को ऐतिहासिक जीत हासिल हुई है. भार्गव ने बताया कि करबला मैदान पर अवैध कब्जा रोकने को लेकर नगर निगम का दायर मुकदमा एक दीवानी कोर्ट ने 2019 में खारिज कर दिया था.

महापौर ने क्या कहा?
महापौर ने बताया कि नगर निगम ने इस फैसले को जिला अदालत में चुनौती दी और मध्यप्रदेश वक्फ बोर्ड, करबला मैदान समिति और मुस्लिम पक्ष के दूसरे लोगों को प्रतिवादी बनाया गया. जिला न्यायाधीश नरसिंह बघेल ने नगर निगम की अपील स्वीकार करते हुए 13 सितंबर को पारित फैसले में कहा,‘‘प्रतिवादी गण यह प्रमाणित करने में असफल रहे हैं कि वादग्रस्त संपत्ति एक वक्फ संपत्ति है.’’

कोर्ट ने सुनाया फैसला
कोर्ट ने होलकर राजवंश के शासनकाल में प्रचलित इंदौर नगर पालिक अधिनियम 1909 और मध्य भारत नगर पालिका अधिनियम 1917 से लेकर होलकर रियासत के भारत संघ में विलय के बाद बने नगर पालिक अधिनियम 1956 के प्रावधानों की रोशनी में नगर निगम को करबला मैदान की 6.70 एकड़ जमीन का मालिक घोषित किया. जिला अदालत में नगर निगम की तरफ से कहा गया कि इन कानूनों में एक जैसा प्रावधान है कि सरकारी और निजी संपत्तियों को छोड़कर शहर की सभी खुली भूमियां नगर निगम की संपत्तियों में निहित हो जाएंगी.

वक्फ ने क्या किया दावा
प्रतिवादियों ने अदालत में कहा कि पूर्ववर्ती होलकर शासकों ने करबला मैदान की जमीन मोहर्रम पर ताजिये ठंडे करने के लिए आरक्षित कर दी थी, जहां मस्जिद भी बनी हुई है. मुस्लिम समुदाय का दावा था कि इस जमीन पर उसका कब्जा करीब 200 साल से लगातार बना हुआ है. हालांकि, अदालत अपने फैसले में तथ्यों पर गौर करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंची कि पिछले 150 साल से इस जमीन के एक हिस्से का उपयोग ताजिए ठंडे करने के धार्मिक कार्य के लिए होता आ रहा है.

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