मुस्लिम मैरिज एक्ट को रद्द करना असम सरकार के इस्लामोफोबिक रवैये का सबूत: जमात-ए-इस्लामी हिंद
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मुस्लिम मैरिज एक्ट को रद्द करना असम सरकार के इस्लामोफोबिक रवैये का सबूत: जमात-ए-इस्लामी हिंद

Assam Muslim Marriage Act: जमात-ए-इस्लामी हिंद, असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम, 1935 को रद्द करने के असम सरकार के फैसले से बेहद फिक्रमंद है.उन्होंने कहा कि, हमें लगता है कि यह फैसला न सिर्फ संविधान की भावना के खिलाफ है, बल्कि यह असम सरकार के इस्लामोफोबिक रवैये का साफ सबूत है. 

मुस्लिम मैरिज एक्ट को रद्द करना असम सरकार के इस्लामोफोबिक रवैये का सबूत: जमात-ए-इस्लामी हिंद

Jamaat e Islami Hind News: जमात-ए-इस्लामी हिंद, असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम, 1935 को रद्द करने के असम सरकार के फैसले से बेहद फिक्रमंद है. मौजूदा वक्त में, राज्य में मुस्लिम विवाह और तलाक के लिए 1935 अधिनियम के माध्यम से पंजीकरण प्रक्रिया सरकार द्वारा अधिकृत काजी (मुस्लिम न्यायविद) द्वारा है. असम में मुसलमानों को अब अपनी शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 के तहत रजिस्ट्रेशन करना होगा. उन्होंने कहा कि, हमें लगता है कि यह फैसला न सिर्फ संविधान की भावना के खिलाफ है, बल्कि यह असम सरकार के इस्लामोफोबिक रवैये का साफ सबूत है. 

साथ ही यह वोट बैंक की सियासत और लोकसभा इलेक्शन से पहले मुस्लिम विरोधी उपायों के माध्यम से लोगों का ध्रुवीकरण करने की एक मिसाल है. माहेरीन का कहना है कि, इस फैसले से मुस्लिम विवाहों के विनियमन और दस्तावेजीकरण की कमी हो जाएगी. जमात-ए-इस्लामी हिंद ने उत्तराखंड सरकार द्वारा समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने की मुखालेफत में आवाज उठाई है. सभी धर्म के अलग-अलग व्यक्तिगत कानूनों के स्थान पर, यूसीसी व्यक्तिगत कानूनों का एक सेट पेश करेगी जो मजहब की परवाह किए बिना सभी नागरिकों पर लागू होगा. उत्तराखंड यूसीसी के कुछ प्रमुख प्रस्तावों में एक से ज्यादा शादी, तीन तलाक पर रोक, सभी धर्मों में लड़कियों की शादी के लिए समान उम्र, पुरुषों और महिलाओं के लिए समान विरासत अधिकार और लिव-इन रिलेशनशिप का अनिवार्य पंजीकरण शामिल है.

जमात-ए-इस्लामी हिंद का मानना है कि, हालांकि यूसीसी का जिक्र संविधान के आर्टिकल 44 में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के हिस्से के तौर पर किया गया है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे संविधान के निर्माताओं ने यूसीसी को लागू करने के लिए इसे (लोगों की इच्छा पर आधारित) सरकार के विवेक पर छोड़ दिया था. किसी भी सरकार को उचित परामर्श के बिना किसी भी धार्मिक समुदाय पर एकतरफा कोई भी निर्णय लागू करने का हक नहीं है, खासकर अगर इसमें उनके धार्मिक कानून शामिल हों.

जमात-ए-इस्लामी हिंद ने कहा कि, हमारा मानना है कि असम और उत्तराखंड के घटनाक्रम भारत में बढ़ती प्रवृत्ति का हिस्सा हैं, जहां नफरत भरे भाषणों और मुस्लिम समुदाय को चोट पहुंचाने वाले फैसलों को सत्तारूढ़ दल के मुख्यमंत्रियों और राजनेताओं द्वारा राजनीतिक प्रभुत्व हासिल करने के लिए एक हथकंडे के तौर पर देखा जाता है. देश के सभी अमन पसंद लोगों को इसका विरोध करना चाहिए. जमात-ए-इस्लामी हिंद ने मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन (एमएईएफ) को बंद करने के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय (एमओएमए) के आदेश पर कड़ी नाराजगी जाहिर की है. वहीं, दूसरी तरफ बरसों पुरानी मस्जिदों को निशाना बनाने पर भी अफसोस जाहिर किया गया.

 Report: Syed Mubashshir 

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