पाकिस्तान में पैदा हुआ ये होनहार एक्टर टकला हो भगवा पहनकर बन गया था स्वामी विनोद!
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पाकिस्तान में पैदा हुआ ये होनहार एक्टर टकला हो भगवा पहनकर बन गया था स्वामी विनोद!

Vinod Khanna: बॉलीवुड इंडस्ट्री में अभिनेता विनोद खन्ना का स्टारडम कभी दर्शकों के सिर चढ़कर बोलता था.. लेकिन एक ऐसा वक्त आया जब उन्होंने इंडस्ट्री को अलविदा कहकर अध्यात्म की राह पकड़ ली...

अभिनेता विनोद खन्ना

 विनोद खन्ना एक अभिनेता होने के साथ ही फिल्म प्रोड्यूसर और राजनेता भी थे.. उन्होंने लंबे अरसे तक फिल्म उद्योग के साथ भारतीय राजनीति में अपनी भूमिका निभाई थी. उनका जन्म 6 अक्टूबर, 1946 को पेशावर, ब्रिटिश भारत (अब पाकिस्तान में) में हुआ था. उनका जन्म एक कपड़ा कारोबारी कमला और किशनचंद खन्ना के घर में हुआ था. वे कुल चार भाई-बहन थे. 1947 में मुल्क के बंटवारे के बाद उनका परिवार मुंबई आ गया था. विनोद खन्ना की स्कूली शिक्षा दिल्ली पब्लिक स्कूल, मथुरा रोड से हुई थी. बाद में उन्होंने मुंबई के सिडेनहैम कॉलेज से आला तालीम हासिल की. 

विनोद खन्ना को सुनील दत्त ने पहली बार अपनी 1968 की फिल्म 'मन का मीत’ (अदुर्थी सुब्बा राव द्वारा निर्देशित) में खलनायक के रूप में ब्रेक दिया था, जिसमें सोम दत्त नायक की भूमिका निभा रहे थे. यह फिल्म तमिल फिल्म 'कुमारी पेन’ की एक रीमेक थी. अपने करियर की शुरुआत में, विनोद खन्ना ने 1970 में 'पूरब और पश्चिम’, 'सच्चा झूठा’, 'आन मिलो सजना’ 'मस्ताना’ और 1971 में 'मेरा गांव मेरा देश’, 'मेरे अपने’ और 'ऐलान’ जैसी फिल्मों में सहायक या खलनायक का किरदार निभाया था.  फिल्म 'मेरा गांव मेरा देश’ (1971) में खलनायक की उनकी भूमिका ने उन्हें पहचान दिलाई और उन्हें हिंदी सिनेमा में एक शानदार अभिनेता के रूप में स्थापित किया.

1970 के दशक के बाद, विनोद खन्ना कई सफल फ़िल्मों में नज़र आए, और अक्सर ऐसी भूमिकाएँ निभाईं जो उनकी बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाती थीं. विनोद खन्ना ने खलनायक की भूमिका से लेकर सफलतापूर्वक लोकप्रिय नायक की भी भूमिका निभाई. उन्हें नायक के रूप में अपना पहला ब्रेक भारती विष्णुवर्धन के साथ 'हम तुम और कौन’ (1971) में मिला और इसके बाद गुलज़ार की 'मेरे अपने’ में काम किया. 1973 में गुलज़ार की फिल्म 'अचानक’ में मौत की सजा का सामना कर रहे एक सैन्य अधिकारी के रूप में उनके प्रदर्शन ने उन्हें आलोचकों की प्रशंसा दिलाई. 1974 में उन्होंने 'इम्तिहान’ में एक कॉलेज प्रोफेसर की भूमिका निभाई. इस फिल्म ने 'रोटी, कपड़ा और मकान’ और 'मजबूर’ के साथ भारी प्रतिस्पर्धा के बावजूद बॉक्स-ऑफिस पर उनका स्टारडम सातवें आसमान पर पहुंच गया. 

इस अवधि के दौरान उनकी कुछ उल्लेखनीय फिल्मों में 'आन मिलो सजना’ (1970), 'अमर अकबर एंथोनी; (1977), 'मुकद्दर का सिकंदर’, (1978), 'मैं तुलसी तेरे आंगन की’, (1978), शामिल हैं. 'कुर्बानी’ (1980), और 'चांदनी’ (1989) में उनकी करिश्माई स्क्रीन उपस्थिति, गहरी आवाज और जबरदस्त आकर्षण ने उन्हें भारतीय दर्शकों के बीच दिल की धड़कन बना दिया. 
विनोद खन्ना ने 47 मल्टी हीरो फिल्मों में काम किया. 'शंकर शंभ’ू में उन्होंने फ़िरोज़ खान के साथ सह-अभिनय किया और 'चोर सिपाही’ और 'एक और एक ग्यारह’ में उन्होंने शशि कपूर के साथ सह-अभिनय किया. 'हेरा फेरी’, 'खून पसीना’, 'अमर अकबर एंथोनी’, 'ज़मीर’, 'परवरिश’ और 'मुकद्दर का सिकंदर’ में विनोद खन्ना अमिताभ बच्चन के साथ दिखाई दिए. 'हाथ की सफाई’ और 'आखिरी डाकू’ में उन्होंने रणधीर कपूर के साथ सह-अभिनय किया. वह 'डाकू और जवान’ और 'नेहले पे दहला’ में सुनील दत्त के साथ नजर आए. उन्होंने जीतेंद्र के साथ 'एक हसीना दो दीवाने’, 'एक बेचारा’, 'परिचय’, 'इंसान’, 'अनोखी अदा’ और 'जन्म कुंडली’ में काम किया. उन्होंने धर्मेंद्र के साथ 'रखवाला’, 'मेरा गांव मेरा देश’, 'पत्थर और पायल’, 'द बर्निंग ट्रेन’, 'बटवारा’ और 'फरिश्ते’ जैसी फिल्में कीं.
उन्होंने शत्रुघ्न सिन्हा के साथ 'पांच दुश्मन’, 'बॉम्बे’, '405 माइल्स’, 'दोस्त और दुश्मन’, 'प्यार का रिश्ता’, 'दौलत के दुश्मन’ और 'दो यार’ जैसी फिल्मों में काम किया, जिसकी शुरुआत गुलज़ार के निर्देशन में बनी पहली फिल्म मेरे अपने से हुई थी. 

फिल्म छोड़ अध्यात्म की राह 
अपने करिअर के दौर में जब उनकी प्रसिद्धि के चरम पर थी,  विनोद खन्ना ने 1980 के दशक की शुरुआत में अपने फलते-फूलते फिल्मी करियर को अलविदा कह दिया. उन्होंने फिल्म उद्योग छोड़ दिया और पुणे में ओशो के आश्रम चले गए, जहां उन्होंने आध्यात्मिक का रास्ता अपना लिया. इस अवधि के दौरान, उन्होंने अपना सिर मुंडवा लिया और भगवा वस्त्र धारण कर अपना नाम स्वामी विनोद भारती रख लिया.

दोबारा फिल्मी दुनिया में की वापसी 
कुछ वर्षों की आध्यात्मिक खोज के बाद, विनोद खन्ना 1980 के दशक के आखिर में फिल्म उद्योग में लौट आये. डिंपल कपाड़िया के साथ उनकी वापसी फिल्म, 'इंसाफ' (1987) में हुई. उन्होंने फिल्मों में अभिनय करना जारी रखा और 'लेकिन' (1991) और “जुर्माना“ (1996) जैसी फिल्मों में अपनी भूमिकाओं के लिए आलोचकों की तारीफें बटोरी. उन्होंने फिर से फिरोज खान के साथ 'दयावान’ (1988) में माधुरी दीक्षित के साथ काम किया, जो मणिरत्नम की 'नायकन’ की रीमेक थी. 1989 में, उन्होंने श्री देवी और ऋषि कपूर के साथ रोमांटिक ब्लॉकबस्टर 'चांदनी’ में सह-अभिनय किया. उस वक्त उन्हें ज्यादातर एक्शन फिल्मों में भूमिकाएँ मिल रही थीं, लेकिन इस रोमांटिक भूमिका के बाद उन्होंने दर्शकों और फिल्म समीक्षकों को आश्चर्यचकित कर दिया था. उनकी मुजफ्फर अली निर्देशित डिंपल कपाड़िया अभिनीत 'ज़ूनी’ रिलीज़ नहीं हुई.

सांसद से लेकर केंद्रीय मंत्री तक बने विनोद खन्ना 
अपने फ़िल्मी करियर के अलावा, विनोद खन्ना राजनीति में भी सक्रिय रूप से शामिल थे. वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए और 1997 में पंजाब के गुरदासपुर से संसद सदस्य के रूप में चुने गए. उन्होंने दो बार सांसद के रूप में कार्य किया और पार्टी में विभिन्न पदों पर रहे. उन्हें एक बार केंद्रीय मंत्री भी बनाया गया. 

निजी जीवन 
विनोद खन्ना की दो बार शादी हुई थी. उनकी पहली शादी गीतांजलि से हुई, जिनसे उनके दो बेटे हुए, राहुल खन्ना और अक्षय खन्ना. दोनों अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए अभिनेता बने. गीतांजलि से तलाक के बाद, उन्होंने 1990 में कविता से दोबारा शादी की, जिनसे उनकी बेटी साक्षी खन्ना और श्रद्धा खन्ना हैं. दुखद बात यह है कि 27 अप्रैल, 2017 को मूत्राशय कैंसर के कारण 70 वर्ष की उम्र में विनोद खन्ना का निधन हो गया.

:- मोहम्मद शमीम खान 

   लेखक पत्रकार, रेडियो जॉकी और बॉलीवुड फिल्मों के शोधार्थी हैं.  

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