NH-707: हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए आचार-सहिंता लगी हुई है, लेकिन इस बीच निर्माण कार्य के लिए देवदार के हजारों हरे-भरे पेड़ों को काटा जा रहा है, जिसका विरोध करते हुए सैकड़ों स्थानीय सड़कों पर उतर आए हैं.
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देवेंद्र वर्मा/सिरमौर: हिमाचल प्रदेश में 12 नवंबर को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान हुआ है और 8 दिसंबर को परिणाम आना है. ऐसे में प्रदेश के अंदर अभी भी चुनावी आचार संहिता लगी हुई है, लेकिन इस बीच देवदार के हजारों हरे-भरे पेड़ों को काटने का आरोप लग रहा है. जिला सिरमौर के लोगों ने एनएच 707 का निर्माण कार्य कर रही निजी कंपनी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
दरअसल, वर्ल्ड बैंक द्वारा वित्तपोषित और भारत सरकार के केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा नेशनल ग्रीन कॉरिडोर एनएच 707 पर निर्माण कार्य किया जा रहा है, जिसे 1356 करोड़ रुपये की लागत से बनाया जा रहा है, लेकिन इस बीच सैकड़ों स्थानीय ग्रामीणों ने सड़क पर उतरकर कंपनी के खिलाफ विरोध जताया है.
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क्यों किया जा रहा विरोध
हिमाचल प्रदेश के पांवटा साहिब से फेडिज तक बन रहा राष्ट्रीय राजमार्ग 707 वैसे तो अक्सर घटिया गुणवत्ता के निर्माण के चलते सुर्खियों में रहता है, लेकिन अब ग्रामीणों ने निर्माण कार्य कर रही कंपनी पर गड़बड़ी से कार्य करने के साथ वन विभाग की जमीन पर लगे हजारों हरे-भरे देवदार के पेड़ों को मनमाने ढंग से काटने का भी आरोप लगाया है. ग्रामीणों का कहना है कि निजी कंपनी द्वारा अब तक 3 से 4 हजार देवदार के हरे-भरे पेड़ों पर पीला पंजा चलाया जा चुका है, लेकिन वन विभाग और प्रशासन सब कुछ देखने के बाद भी मौन बैठे हैं.
उच्चाधिकारियों को सौंपी गई रिपोर्ट
स्थानीय लोगों का कहना है कि राष्ट्रीय राजमार्ग 707 को केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के द्वारा नेशनल ग्रीन कॉरिडोर परियोजना के तहत बनाया जा रहा है, जिसमें पहाड़ों और प्रकृति को कम से कम नुकसान पहुंचा कर सड़क निर्माण के कार्य को पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन वर्तमान में चल रहे निर्माण कार्य को देखकर ऐसा लगता है कि विकास के नाम पर पहाड़ और प्रकृति को विनाश की ओर धकेला जा रहा है. वन विभाग के स्थानीय बीट गार्ड का कहना है कि उन्होंने अपनी ड्यूटी पूरी निष्ठा से की है और आगामी कार्यवाही के लिए नियमानुसार पूरी रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को भेज दी है.
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वहीं, ग्रामीणों का साफ तौर पर कहना है कि इस पूरे मामले में वन अधिकारी और कर्मचारी बचते हुए नजर आ रहे हैं. अगर जांच में उनके आरोप गलत पाए गए तो वे सभी सजा भुगतने को तैयार हैं.
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