जानें क्या है महाशिवरात्रि पर्व की कहानी, इसी दिन विशालकाय रूप में भक्तों को मिला था महादेव का दर्शन!
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जानें क्या है महाशिवरात्रि पर्व की कहानी, इसी दिन विशालकाय रूप में भक्तों को मिला था महादेव का दर्शन!

Mahashivratri 2023: वैसे तो हमारे देश में हर भगवान की विधि विधान के साथ पूजा की जाती है. वहीं महादेव के भी करोड़ों भक्त हैं.

जानें क्या है महाशिवरात्रि पर्व की कहानी, इसी दिन विशालकाय रूप में भक्तों को मिला था महादेव का दर्शन!

Mahashivratri 2023: वैसे तो हमारे देश में हर भगवान की विधि विधान के साथ पूजा की जाती है. वहीं महादेव के भी करोड़ों भक्त हैं. बात करें हिमाचल की तो यहां, भगवान भोलेनाथ की सबसे ज्यादा पूजा की जाती है.  हिमाचल एक ऐसा राज्य है जहां प्रति किलोमीटर एक मंदिर जरूर दिखाई देता है, भगवान शिव के साथ लोगों की बहुत सी श्रद्धाएं जुड़ी हुईं हैं. ऐसे में शिवरात्रि के खास पावन अवसर पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पूजा अर्चना की जाती है.

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शिवरात्रि का मतलब भी शिव की रात्रि ही होता हैं. शिवरात्रि को लेकर पूरे देश भर में अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित है.  इस दिन भगवान शिव की आराधना की जाती है और देश भर में अनेक जागरण किये जाते हैं. भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए लोग पूजा, व्रत करते हैं.

ऐसे में हिमाचल प्रदेश में खासतौर पर शिवरात्रि के दिन को बेहद ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है. हिमाचल प्रदेश में जितने भी शिव मंदिर हैं उन सभी सभी मंदिरों में सजावट की जाती है, विधि अनुसार पूजन किया जाता है. वहीं, राज्य में शिव रात्रि के 10 दिन बाद तक मंदिरों में भंडारा चलता है. 

हिमाचल में इस दिन जिला चंबा में कौदे के आटे का बना हुआ हलवे से व्रत को सम्पन्न किया जाता है, कुछ स्थानों पर पकैन, बबरु,आदि से व्रत को सम्पन्न करते हैं, अधिकतर स्थानों पर अगले दिन इस व्रत को समाप्त किया जाता है. 

क्यों शिवरात्रि मनाई जाती है
अलग-अलग ग्रंथों में महाशिवरात्रि की अलग-अलग मान्यता मानी गई है.  कहा जाता है कि शुरुआत में भगवान शिव का केवल निराकार रूप था. भारतीय ग्रंथों के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर आधी रात को भगवान शिव निराकार से साकार रूप में आए थे. 

इस मान्यता के अनुसार भगवान शिव इस दिन अपने विशालकाय स्वरूप अग्निलिंग में प्रकट हुए थे.  कुछ हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इसी दिन से ही सृष्टि का निर्माण हुआ था.  ऐसी मान्यता हैं की इसी दिन भगवान शिव करोड़ों सूर्यो के समान तेजस्व वाले लिंगरूप में प्रकट हुए थे. 

मान्यता के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को सूर्य और चंद्र अधिक नजदीक रहते हैं. इस दिन को शीतल चन्द्रमा और रौद्र शिवरूपी सूर्य का मिलन माना जाता हैं. इसलिए इस चतुदर्शी को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता हैं. शिवरात्रि को लेकर कई कथाएं प्रचलित है ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान शिव इस दिन विवाह के बंधन में बंधे थे.

जी मीडिया की टीम ने इस खास मौके पर शिमला के प्राचीन मंदिरों से एक शिव गुफा मंदिर के बारे में जानने की कोशिश की. आप भी जानिए इस मंदिर की कहानी. 

यह मंदिर काफी साल पुराना है.  चट्टानों के बीचों-बीच यह मंदिर बसा हुआ है. इस मंदिर के ऊपर से नीचे तक चट्टानें-पहाड़ ही दिखाई देते हैं. स्थानीय लोगों का मानना है यह मंदिर चमत्कारी मंदिर है. इस मंदिर में भगवान शिव समेत सह परिवार के दर्शन होते हैं. शिव गुफा मंदिर एक ऐसा मंदिर है जो सिर्फ चट्टानों के बीचों बीच बसा हुआ है, लोगों की इस मंदिर से कई आस्थाएं जुड़ी हुईं हैं. 

मंदिर के पंडित बताते हैं कि जो भक्त सच्चे दिल से आते हैं. उन्हें भगवान शिव प्रसन्न होकर दर्शन देते हैं. मंदिर की खासियत है कि जहां यह मंदिर है वहां की पिंडी से पानी निकलता है. यह मंदिर शिमला के समीप है, जहां शिवजी की 8 पिंडियां विराजमान है. महादेव के जंगम बताते है कि शिव रात्रि के दिन भोलेनाथ का विवाह हुआ था, जिसके बाद शिवरात्रि मनाई जाती है. 

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