नई दिल्लीः Paris Olympics 2024: मुक्केबाजी में विजेता का फैसला एक दूसरे पर घूंसों की बरसात से होता है लेकिन इसकी स्कोरिंग प्रणाली आज तक किसी को समझ में नहीं आई और ताजा उदाहरण पेरिस ओलंपिक में भारत के निशांत देव का क्वार्टर फाइनल मुकाबला है. निशांत 71 किलो वर्ग के क्वार्टर फाइनल में दो दौर में बढ़त बनाने के बाद मैक्सिको के मार्को वेरडे अलवारेज से 1. 4 से हार गए. इसे देख सभी हैरान रह गए.
विवादों में जजों का फैसला
हर ओलंपिक में यह बहस होती है कि आखिर जज किस आधार पर फैसला सुनाते हैं. निशांत का मामला कोई पहला मामला नहीं है. लॉस एंजिलिस में 2028 ओलंपिक में मुक्केबाजी का होना तय नहीं है और इस तरह की विवादित स्कोरिंग से मामला और खराब हो रहा है. टोक्यो ओलंपिक 2020 में एम सी मेरीकोम प्री क्वार्टर फाइनल मुकाबला हारने के बाद रिंग से मायूसी में बाहर निकली थी क्योंकि उन्हें जीत का यकीन था.
'रिव्यू या विरोध का ऑप्शन नहीं'
तब उन्होंने कहा था कि सबसे खराब बात यह है कि कोई रिव्यू या विरोध नहीं कर सकते. मुझे यकीन है कि दुनिया ने इसे देखा होगा. इन्होंने हद कर दी है. निशांत के हारने के बाद कल पूर्व ओलंपिक कांस्य पदक विजेता विजेंदर सिंह ने एक्स पर लिखा,‘मुझे नहीं पता कि स्कोरिंग प्रणाली क्या है लेकिन यह काफी करीबी मुकाबला था. उसने अच्छा खेला. कोई ना भाई.’
जजों ने खो दी है अपनी विश्वसनीयता
बता दें कि अमैच्योर मुक्केबाजी की स्कोरिंग प्रणाली बीते बरसों में इस तरह से बदलती आई है कि धीरे-धीरे जजों ने अपनी विश्वसनीयता खो दी है. सियोल ओलंपिक 1988, रोम ओलंपिक 1960 में कई अधिकारियों को एक बाउट में विवादित फैसले के बाद अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने बाहर कर दिया था. इसके बावजूद सियोल ओलंपिक में खुलेआम लूट देखी गई थी, जब अमेरिका के रॉय जोंस जूनियर ने कोरिया के पार्क सि हुन पर 71 किलो वर्ग में स्वर्ण पदक के मुकाबले में 86 घूंसे बरसाए और सिर्फ 36 घूंसे खाए.
बाद में वर्ल्ड चैंपियन बने रॉय जोंस
इसके बावजूद कोरियाई मुक्केबाज को विजेता घोषित किया गया. जोंस बाद में विश्व चैम्पियन भी बने लेकिन उस हार को भुला नहीं सके. 1992 बार्सिलोना ओलंपिक में कम्प्यूटर स्कोरिंग अमैच्योर मुक्केबाजी की विश्व नियामक इकाई ने लगातार हो रही आलोचना के बाद 1992 बार्सिलोना ओलंपिक में स्कोरिंग प्रणाली में बदलाव किया. इसे अधिक पारदर्शी बनाने के लिए पांच जजों को लाल और नीले बटन वाले कीपैड दिये गए. उन्हें सिर्फ बटन दबाना था. इसमें स्कोर लाइव दिखाए जाते थे, ताकि दर्शकों को समझ में आता रहे.
बाद में शिकायत आने लगी कि इस प्रणाली से मुक्केबाज अधिक रक्षात्मक खेलने लगे हैं और उनका फोकस सीधे घूंसे बरसाने पर रहता है. इसके बाद 2011 में तय किया गया कि पांच में से तीन स्कोर का औसत अंतिम फैसला लेने के लिए प्रयोग किया जायेगा. स्कोर को लाइव दिखाना भी बंद कर दिया गया. अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ ने 2013 में पेशेवर शैली में 10 अंक की स्कोरिंग प्रणाली अपनाई जिसमें मुक्केबाज का आकलन आक्रमण के साथ रक्षात्मक खेल पर भी किया जाने लगा.
पांच साल बाद जांच में हुआ खुलासा
साल 2016 में हुए रियो ओलंपिक में बेंटमवेट विश्व चैंपियन माइकल कोनलान ने क्वार्टर फाइनल में पूरे समय दबदबा बनाए रखा लेकिन उन्हें विजेता घोषित नहीं किया गया. वह गुस्से में बरसते हुए रिंग से बाहर निकले. एआईबीए ने उन पर निलंबन भी लगा दिया था. पांच साल बाद एआईबीए के जांच आयोग ने खुलासा किया कि रियो ओलंपिक 2016 में पक्षपातपूर्ण फैसले हुए थे. कुल 36 जजों को निलंबित कर दिया गया लेकिन उनके नाम नहीं बताये गए.
कोनलान ने उस समय ट्वीट किया था,‘तो इसका मतलब है कि मुझे अब ओलंपिक पदक मिलेगा.’ अभी तक उनके इस सवाल का किसी के पास जवाब नहीं है.
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