इस 15 अगस्त को हम आजादी की 75 वीं वर्षगांठ पर आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने सभी पुरातन स्थलों पर घूमने के लिए टिकट ना लगाने का ऐलान किया है. 5 अगस्त से 15 अगस्त तक किसी भी पुरातत्व स्थलों पर टिकट नहीं लगाया जाएगा. इसी क्रम में आइये आज हम देश की 5 ऐसी ऐतिहासिक जगहों के बारे में जानते हैं जहां से आजादी की कहानियां जुड़ी हुई हैं.
इस जेल को काला पानी के नाम से भी जाना जाता है. यह जेल अंडमान निकोबार द्वीप समूह में स्थित है. आजादी की लड़ाई के वक्त देश के कई महान क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को सजा और यातनाएं देने के लिए इस जेल में कैद करके रखा जाता था. भारत जब आजादी के लिए संघर्ष कर रहा था तब बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों जैसे बटुकेश्वर दत्त, योगेश्वर शुक्ला और विनायक दामोदर सावरकर को इस जेल में रखा गया था.
जलियांवाला बाग पंजाब के सबसे बड़े शहर अमृतसर में स्थित है. यह जगह ब्रिटिश साशन काल के सबसे क्रूरतम घटना को बयान करती है. 13 अप्रैल 1919 बैसाखी के दिन जलियांवाला बाग में अंग्रेजों की दमनकारी नीति, रोलेट एक्ट और सत्यपाल व सैफुद्दीन की गिरफ्तारी के खिलाफ एक सभा का आयोजन किया गया था. जनरल डायर के हुक्म पर ब्रिटिश सैनिकों ने हजारों मासूम भारतीयों को गोलियों से भून दिया था.
काकोरी की घटना का बारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में एक खास महत्व है. 9 अगस्त 1925 को लखनऊ के काकोरी स्टेशन के पास रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खां और राजेंद्र लाहिड़ी आदि क्रांतिकारियों ने सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन को काकोरी स्थित बाजनगर के पास लूट लिया था. लूट की कुल रकम 4,601 रुपए, 15 आने और छह पाई थी, जोकि आज भी एफआईआर की कॉपी काकोरी थाने में मौजूद है.
कंपनी बाग वह जगह है जहां 1931 में क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद अंग्रेज सिपाहियों से अकेले लड़े और जब उनके पास सिर्फ एक गोली बची तो उन्होंने खुद को गोली मार ली. इस पार्क को 1870 में प्रिंस अलफ्रेड की प्रयागराज यात्रा के निशानी के तौर पर यह बनाया गया था. जिसके कारण यह पहले अल्फ्रेड पार्क के रूप में जाना जाता था. बाद में अंग्रेजों द्वारा इसे कंपनी बाग कहा जाने लगा और अंत में देश के वीर सपूत चंद्रशेखर आजाद की कुर्बानियों के सम्मान में यह चंद्रशेखर आजाद पार्क कहलाया.
मुंबई का अगस्त क्रांति मैदान भारत की स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में एक अहम स्थान रखता है. यह वही जगह है जहां से महात्मा गांधीजी ने 9 अगस्त 1942 को अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो का आंदोलन का बिगुल फूंका था. मौजूदा वक्त में इस जगह को गावेली मैदान कहा जाता है.