नई दिल्ली: Women Reseavation Act: संसद के दोनों सदनों में महिला आरक्षण बिल पास हो गया है. केंद्र की मोदी सरकार इसे साल 2029 से पहले लागू करने की दिशा में कदम बढ़ा रही है. हालांकि, इसी बीच कुछ ऐसी महिला नेता भी हैं जिन्होंने अपने दम पर अपना राजनीतिक मैदान तैयार किया. राजस्थान की पहली महिला विधानसभा अध्यक्ष रहीं सुमित्रा सिंह (Sumitra Singh) का नाम इनमें शुमार है. सुमित्रा सिंह 9 बार विधायक रहने वाली पहली महिला हैं, उनका यह रिकॉर्ड अब तक कोई महिला नेता नहीं तोड़ पाई है. भले सुमित्रा सिंह ने बिना आरक्षण के राजनीति में अपनी भूमिका बनाई हो, लेकिन वे महिला आरक्षण की पैरवी करती हैं.
बोलीं- महिलाओं की भागीदारी जरूरी
सुमित्रा सिंह ने कहा कि सरकार ने नारीशक्ति वंदन अधिनियम लाकर सराहनीय काम किया है. महिलाओं को लोकसभा व विधानसभा में पहले ही आरक्षण मिल जाना चाहिए था. पुरुषवादी समाज में महिलाओं अपनी राजनीतिक पहचान बनानी होगी.
दौड़ते घोड़े पर हो जाती थीं सवार
1930 में झुंझुनूं जिले के मंडावा कस्बे के किसारी गांव में जन्मी सुमित्रा सिंह के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे. उस जमाने में लड़कियों को नहीं पढ़ाया नहीं जाता था. लेकिन सुमित्रा के पिता में उन्हें ना सिर्फ शुरुआती शिक्षा पूरी करने दी, बल्कि बाद में वे प्रदेश के सुप्रसिद्ध वनस्थली विद्यापीठ में भी पढ़ने गईं. सुमित्रा सिंह को घुड़सवारी का शौक था. कहा जाता है कि वे दौड़ते हुए घोड़े पर भी सवार हो जाया करती थीं.
राजनीति में कैसे हुई एंट्री
सुमित्रा सिंह ने शिक्षा पूरी झुंझुनूं के ही एक स्थानीय सरकारी कॉलेज में पढ़ाना शुरू कर दिया था. इसके बाद इंटर कॉलेज में लेक्चरर की वेकैंसी खाली हुई. सुमित्रा सिंह और उनके पति तब के दिग्गज नेता कुंभाराम के पास पहुंचे और उस खाली सीट के लिए सुमित्रा की पैरवी करने की बात कही. इस पर कुंभाराम ने सुमित्रा के पति नाहर सिंह से कहा, 'ये लाख टके की छोरी है और आप इससे 250 रुपये की नौकरी करवाना चाहते हैं. ये नौकरी नहीं, राजनीति करेगी.' इसके बाद सुमित्रा को कांग्रेस से विधानसभा का टिकट मिला और 1957 में वे पहली बार 26 साल की उम्र में विधायक बनीं.
कुछ ने विरोध भी किया
सुमित्रा सिंह ने एक इंटरव्यू में बताया कि जब मैं वोट मांगने जाती थी तो लोग राजस्थानी भाषा मे कहते, 'बोट ई छोरी नै ही देस्या'. इसका मतलब है कि वोट इस लड़की को देंगे. हालांकि, सुमित्रा सिंह कहती हैं कि उस वक्त भी कुछ लोग ऐसे थे जिन्हें एक महिला को आगे बढ़ते देख खूब तकलीफ हुई.
पार्टी की नहीं रही दरकार
सुमित्रा सिंह ने कांग्रेस, लोकदल और जनता दल की टिकट से चुनाव जीते. साल 1998 में वे निर्दलीय भी जीतीं. फिर वे भाजपा में गईं और साल 2003 में पहली बार झुंझुनूं (Jhunjhunu) विधानसभा क्षेत्र से भाजपा का खाता खोला और राजस्थान की पहली महिला विधानसभा अध्यक्ष बनीं. दिग्गज कांग्रेसी नेता शीशराम ओला के बेटे और प्रदेश सरकार में मंत्री बृजेंद्र ओला (Brijendra Ola) भी सुमित्रा के सामने दो बार चुनाव हारे. अब सुमित्रा सिंह की अगली पीढ़ी राजनीति में है. उनके बेटे राजीव चौधरी (गुड्डू) इस बार झुंझुनूं से चुनावी समर में उतरना चाह रहे हैं, भाजपा से टिकट मांग रहे हैं.
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