जगद्गुरु रामभद्राचार्य को ज्ञानपीठ, हैरान करती है इस संत की विद्वता, 80 ग्रंथों के लेखक, 22 भाषाओं के जानकार

Jagadguru Shri Rambhadracharya: संस्कृत विद्वान श्री रामभद्राचार्य को ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए चुना गया है. श्री रामभद्राचार्य जी को उनके आसाधरण काम के लिए जाने जाते हैं. 

Written by - Shilpa | Last Updated : Feb 18, 2024, 06:25 PM IST
  • रामभद्राचार्य को ज्ञानपीठ पुरस्कार
  • रामभद्राचार्य 22 भाषाओं के जानकार
जगद्गुरु रामभद्राचार्य को ज्ञानपीठ, हैरान करती है इस संत की विद्वता, 80 ग्रंथों के लेखक, 22 भाषाओं के जानकार

नई दिल्ली: संस्कृत विद्वान श्री रामभद्राचार्य को ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए चुना गया है. रामभद्राचार्य एक प्रसिद्ध हिंदू आध्यात्मिक नेता, शिक्षक और ग्रंथों के लेखक हैं. रामभद्राचार्य को ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए चुने जाने पर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है. सोशल मीडिया पर लोग दो ग्रुप में बंट गए एक ग्रुप रामभद्राचार्य के ज्ञान और उनके द्वारा लिखे ग्रंथों पर बात कर रहे हैं वही दूसरा ग्रुप उनके पुरस्कार मिलने से खिलाफ है. लोगों का कहना है कि उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार क्यों मिला? आखिर उन्होंने ऐसा क्या किया? आइए जानते हैं आखिरी रामभद्राचार्या को ज्ञानपीठ पुरस्कार क्यों मिलना चाहिए. 

22 भाषा का ज्ञान 
श्री रामभद्राचार्य जी को उनके असाधारण काम के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने अपना पूरा जीवन मानव कल्याण में लगाया.  श्री रामभद्राचार्य जी को 22 भाषा का ज्ञान है. वह 22 भाषा बोल सकते हैं. वह 80 ग्रंथों की रचना कर चुके हैं. रामभद्राचार्य केवल 2 माह के थे तब उनके आंखों की रोशनी चली गई थी. नेत्रहीन होते हुए उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से कई भविष्यवाणियां की जिसमें कई सच हुई है.  

80 से ज्यादा ग्रंथ लिख चुके हैं 
स्वामी रामभद्राचार्य को यह सम्मान ऐसे ही नहीं मिला है. वह अब तक 80 से ज्यादा ग्रंथ लिख चुके हैं. उनके इस विशाल संग्रह में कविताएं, नाटक, शोध, टीकाएं, प्रवचन, निबंध और संगीतबद्ध प्रस्तुतियां शामिल हैं. उनकी रचनाओं के कई वीडियो और ऑडियो जारी हो चुके हैं. वह संस्कृत, हिंदी, अवधि और मैथिली कई भाषाओं में लिखते हैं.  

साहित्य अकादमी से हो चुके हैं सम्मानित 
श्रीभार्गवराघवीयम् उनकी बेहद पॉपुलर रचना है जिसके लिए उन्हें संस्कृत सहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है.  स्वामी रामभद्राचार्य जब 5 साल के थे तो उन्हें श्रीमद्धागवत कंठस्थ थी. स्वामी पढ़-लिख नहीं सकते हैं और न हाी ब्रेल लिपी का प्रयोग करते हैं वह केवल सुनकर ही सीखते हैं और बोलकर अपनी रचनाएं लिखवाते हैं. 

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