केरल में मानव बलि, गुजरात में बच्ची की हत्या... क्यों पढ़े-लिखे लोग भी फंस रहे अंधविश्वास में?

गुजरात के गिर-सोमनाथ जिले में अक्टूबर के पहले सप्ताह में पिता और चाचा ने अंधविश्वास के चलते 14 साल की बच्ची की हत्या कर दी. उन्हें शक था कि बच्ची पर किसी बुरी आत्मा का प्रभाव है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Oct 16, 2022, 07:18 PM IST
  • गुमराह करने वालों से घिरे हैं लोग
  • आंख बंद कर हो रहा अनुसरण
केरल में मानव बलि, गुजरात में बच्ची की हत्या... क्यों पढ़े-लिखे लोग भी फंस रहे अंधविश्वास में?

नई दिल्लीः गुजरात के गिर-सोमनाथ जिले में अक्टूबर के पहले सप्ताह में पिता और चाचा ने अंधविश्वास के चलते 14 साल की बच्ची की हत्या कर दी. उन्हें शक था कि बच्ची पर किसी बुरी आत्मा का प्रभाव है.

केरल में कथित मानव बलि
केरल में लापता दो महिलाओं की कथित रूप से हत्या कर उन्हें दफना दिया गया. पुलिस की शुरुआती जांच में सामने आया कि आर्थिक तंगी दूर करने के लिए दंपती ने कथित मानव बलि दी.

द्वारका में महिला की हत्या
इससे पहले अक्टूबर 2021 में द्वारका जिले में एक तांत्रिक (भुवा) की ओर से महिला को डायन कहने के बाद तीन बच्चों की मां की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी. नवंबर 2021 में छोटाउदपुर जिले के कावंत तालुका में एक महिला को उसके पति और ससुर ने डायन बताकर गला घोंट दिया था.

10 साल में एक हजार से ज्यादा की मौत
इन मामलों के अलावा भी तमाम अंध विश्वास के केस सामने आते हैं. वहीं, एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक बीते 10 साल में अंधविश्वास और जादू-टोना के चलते एक हजार से ज्यादा लोगों की जान गई. साल 2012 से 2021 के बीच देश में 1098 लोगों की मौत की वजह जादू-टोना था.

गुमराह करने वालों से घिरे हैं लोग
ऐसा क्यों हो रहा है, इस बारे में तर्क रोहित शाह कहते हैं, साक्षरता दर में वृद्धि के बाद भी ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में ऐसी घटनाएं हो रही हैं. हालांकि, अधिकांश लोग पढ़े-लिखे तो हैं, लेकिन विज्ञान को समझने से बहुत दूर हैं. वे भुवा जैसे लोगों से घिरे हुए हैं, यानी धार्मिक लोग, जो एक व्यक्ति को सही रास्ते पर ले जाने के बजाय, उन्हें झूठी जानकारी के साथ गुमराह करते हैं और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए शॉर्टकट वाला रास्ता दिखाते हैं, जो अंधविश्वास की ओर ले जाता है.

जागरूकता पैदा करने की जरूरत
रोहित एक अन्य व्यक्ति चेतन चौहान के साथ बहुत सारे जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करते हैं, ताकि लोग काला जादू, अंधविश्वास से प्रभावित न हों. लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए उन्होंने गुजराती में किताबें भी लिखी हैं. वह कहते हैं कि दुर्भाग्य से पढ़ने की आदत कम होने के कारण ऐसी पुस्तकों के पाठक कम हैं, इसलिए जागरूकता पैदा करना मुश्किल है.

तर्कवादी-कार्यकर्ता पीयूष जादूगर के अनुसार विज्ञान को बढ़ावा देने पर ही समाज ऐसे अंधविश्वासों से छुटकारा पा सकता है. संविधान के अनुच्छेद 51 (ए) (एच) के अनुसार, यह राज्य का कर्तव्य है कि वह वैज्ञानिक सोच, मानवतावाद और जांच और सुधार की भावना को बढ़ावा दे और विकसित करे, जो बहुत छोटे पैमाने पर किया जा रहा है.

आंख बंद कर हो रहा अनुसरण
जादूगर का कहना है कि उनके जैसे लोग आबादी का सिर्फ पांच प्रतिशत हैं, जो जागरूकता पैदा कर रहे हैं, 90 प्रतिशत आंख बंद करके दूसरों का अनुसरण करते हैं, वे शायद ही अपना दिमाग लगाते हैं. पांच फीसदी साक्षर हैं, लेकिन पढ़े-लिखे नहीं हैं, वे भी बाकी 90 फीसदी को फॉलो करना पसंद करते हैं.

दोनों तर्कवादियों का मानना है कि इसका समाधान लोगों को शिक्षित कर जागरूकता फैलाना है, जिसके लिए सोशल मीडिया सबसे अच्छा साधन है. सरकार को लघु वीडियो क्लिप, मीम्स तैयार कर सोशल मीडिया पर प्रसारित करना चाहिए.

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