नई दिल्ली: किर्गीस्तान की रहने वाली 35 साल की महिला के पेट में लगातार दर्द रहने के बाद जब सारे चेकअप हुए, तो पता चला कि महिला को लिवर में ट्यूमर हुआ था. महिला का लिवर 75% तक खराब हो चुका था. महिला दिल्ली के फोर्टिस एस्कॉर्टस अस्पताल पहुंची, वहां हुए सीटी स्कैन में पता चला कि महिला का लिवर फेल हो चुका था.
8 घंटे चली महिला की सर्जरी
आस पास के ऑर्गन पर भी असर पड़ने लगा था. अब जो लिवर सही सलामत बचा था, उसी को वापस लगाना सबसे अच्छा विकल्प था. महिला की सर्जरी 8 घंटे चली. उसके लिवर के खराब हिस्से को निकाला गया. 25% लिवर जो सही था, उसे वापस लगा दिया गया. महिला को पूरी तरह रिकवर होने में 8 दिन का समय लगा.
Fortis Escorts hospital के लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. विवेक विज के मुताबिक इस सर्जरी में रिकवरी बेहतर होने का सबसे बड़ा कारण ये रहा कि लिवर महिला का अपना खुद का था. किसी दूसरे व्यक्ति का लिवर लगाने में इम्यून सिस्टम को दबा कर रखने के लिए दवाएं दी जाती हैं, क्योंकि बाहरी अंग को पहचानते ही इंसान का इम्यून सिस्टम एक्टिव हो जाता है और वो बाहरी अंग को बेकार करने लगता है. लेकिन ट्रांसप्लांट के मरीजों में ऐसा रोकने के लिए प्रतिरक्षादमनकारी (immunosuppressant) दवाएं दी जाती हैं. जिससे मरीज की इम्युनिटी कमजोर हो जाती है, लेकिन इस महिला को इन दवाओं की जरूरत नहीं पड़ी. इसलिए ये 8 दिन में ही रिकवर हो पाई.
ऑटो लिवर ट्रांसप्लांट से जुड़ी खास बात
इस महिला के लिवर में जो इंफेक्शन हुआ था वो फिर से होने का खतरा बना रहता है. ऑटो लिवर ट्रांसप्लांट हर मरीज में नहीं हो सकता. पहले लिवर को पूरा निकालना पड़ता है और सेहतमंद लिवर को काटकर वापस लगाया जा सकता है. ऐसा तभी हो सकता है जब कम से कम 30% लिवर स्वस्थ हो.
लिवर शरीर का ऐसा इकलौता हिस्सा है जो फिर से बड़ा हो जाता है और अपने पूरे आकार में वापस आ जाता है. इसके अलावा बाकी सभी ट्रांसप्लांट में पूरे ऑर्गन की जरूरत होती है. ये सर्जरी मार्च में की गई. अब सर्जरी के बाद महिला पूरी तरह से ठीक है. साधारण लिवर ट्रांसप्लांट में जहां डोनर से लिवर लिया जाता है, उस मामले में प्राइवेट अस्पताल में तकरीबन 20 लाख का खर्च आ जाता है. जबकि इस सर्जरी में 10 लाख का खर्च आया.
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