21 साल का लड़का जो पाकिस्तान से लड़ने छड़ी लेकर गया और परमवीर बन गया

14 दिसंबर 1950 को पुणे में एक सैनिक के घर पैदा हुए अरुण खेत्रपाल उस वक्त महज 21 साल के थे और सेना के गुण और बारीकियां सीख रहे थे जब 1971 की भयंकर लड़ाई भारत और पाकिस्तान में छिड़ गई.

Written by - Shamsher Singh | Last Updated : Jan 4, 2022, 06:05 PM IST
  • जानिए कौन थे अरुण खेत्रपाल
  • भारत ने पाक के छुड़ाए थे पसीने
21 साल का लड़का जो पाकिस्तान से लड़ने छड़ी लेकर गया और परमवीर बन गया

नई दिल्लीः 21 साल का एक लड़का जिसने युद्द की सारी बारीकियां भी नहीं सीखी थी लेकिन अपने अफसरों से लड़कर उसने युद्ध में जाने की बात मनवाई. वो लड़का जिसके साहस को देखकर पाकिस्तानी अफसर भी सैल्यूट करने लगे थे. वो लड़का जिसने अपनी आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ी और फिर परमवीर बन गया. ये कहानी है अरुण खेत्रपाल की. ये कहानी दो मायनों में काफी अहम है. क्योंकि आज ही के दिन यानी कि 16 दिसंबर 1971 को भारत ने पाकिस्तान को धूल चटाकर बांग्लादेश को जीत दिलाई थी. लेकिन इसी दिन भारत ने अपने इस सपूत को भी खो दिया था. आइए जानते हैं अरुण खेत्रपाल की वीरता के किस्से...

जब छिड़ी लड़ाई तो उमड़ने लगा उत्साह
14 दिसंबर 1950 को पुणे में एक सैनिक के घर पैदा हुए अरुण खेत्रपाल उस वक्त महज 21 साल के थे और सेना के गुण और बारीकियां सीख रहे थे जब 1971 की भयंकर लड़ाई भारत और पाकिस्तान में छिड़ गई. सभी यंग ऑफिसर्स को बुला लिया गया. अरुण को लगा कि वो मौका अब आ गया है जब उसे देश के लिए लड़ने का मौका मिलेगा. लेकिन जब अधिकारियों की नजर इस 21 साल के लड़के पर पड़ी तो उन्होंने अरुण को युद्ध पर जाने से मना कर दिया.

अधिकारियों ने कहा कि इस लड़के ने अपनी पढ़ाई नहीं पूरी की, युद्ध की बारीक समझ अभी नहीं है. हम इसे लड़ने नहीं भेज सकते. लेकिन अरुण किसी और माटी के बने थे. उन्होंने अधिकारियों से कहा कि मुझे लड़ने जाना है वरना न जाने कब वो मौका आएगा जब मैं युद्ध पर जाउंगा. आप जिस युद्दनीति की बात कर रहे हैं मैं उसे कुछ ही दिनों में सीख लूंगा. अरुण का ये जज्बा देखकर अफसरों ने हामी पर भर दी थी.

अरुण ने जम्‍मू कश्‍मीर के बसंतर में मोर्चा संभाला था. बसंतर की लड़ाई 71 की जंग के दौरान भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान पश्चिमी सेक्टर में लड़ी गई महत्वपूर्ण लड़ाइयों में से एक थी. लेकिन इसमें एक अड़चन थी की अधिकारी ने कहा था कि अरुण जो भी फैसला लें वो अपने अधिकारी से पूछकर ही लें. लेकिन अरुण जब युद्द में पहुंचे तो उनमें अजब ही उत्साह आ गया. वो दुश्मनों को रौंदते हुए आगे बढ़ रहे थे.

कई टैंकों को किया तबाह
सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण ने 21 साल की उम्र में दुश्मन के 10 टैंक्‍स तबाह कर दिए थे. उन्‍होंने जिस जज्‍बे का प्रदर्शन किया उसने न सिर्फ पाकिस्तानी सेना को आगे बढ़ने से रोका बल्कि उसके जवानों का मनोबल इतना गिर गया कि आगे बढ़ने से पहले दूसरी बटालियन की मदद मांगी.

जब रेडियो को बंद कर दिया
अरुण पाकिस्तानियों पर इतनी तेजी से हमला कर रहे थे कि पाकिस्तानी खेमे में खलबली मच गई थी. जो टैंक दूसरी जगह लगे थे उन्हें भी लड़ाई के लिए बुला लिया गया. पाकिस्तानियों की ये हरकत देखकर भारतीय अफसरों ने अरुण को रेडियो पर सिग्नल भेजा. अरुण वापस आ जाओ. लेकिन अरुण कहा रुकने वाले थे. उनकी आवाज गूंजी और बोले, जब तक मैं फायर कर पाउंगा मैं पीछे नहीं आउंगा. फिर क्या था एक के बाद एक टैंकों को अरुण तबाह करते रहे.

वो आखिरी टैंक और अरुण का आखिरी फैसला
हालात ये हो गए कि अरुण के टैंक में आग लग गई थी लेकिन सामने खड़े पाकिस्तानी खेमे में भी आखिरी टैंक बचा था. अधिकारी की फिर आवाज गूंजी और उन्होंने कहा अरुण वापस आ जाओ. लेकिन इस बार अरुण कुछ बोले नहीं उन्होंने रेडियो को बंद कर दिया. ये दृश्य देखकर अरुण की टैंक में मौजूद सहयोगियों की आंखें बाहर निकल आई.

अरुण ने एक आखिरी गोला दागा और उधर से पाकिस्तानी टैंक ने भी गोला दागा. दोनों टैंक धमाके से थर्रा गए. लेकिन अरुण इस बार नहीं बच पाए. गोला सीधे उनकी छाती को पार कर गया था. जिसने भी ये युद्ध देखा वो अरुण की बहादुरी का कायल हो गया.

जब पिता से पाकिस्तानी अधिकारी ने मांगी माफी
इस घटना के तीस साल बाद अचानक अरुण के पिता के जहन में आया कि वो अपनी जन्म भूमि सरगोधा को देखने पाकिस्तान जाएं. उस समय उनकी उम्र 81 साल थी.जब वो लाहौर पहुंचे तो एक पाकिस्तानी ब्रिगेडियर ने उनका स्वागत किया और उनसे कहा कि वो उनके घर चलें और उनके साथ रहें. खेत्रपाल की रवानगी से एक दिन पहले खाना खाने के बाद ब्रिगेडियर नासेर उनके पास आ कर बोले, सर मेरे दिल में एक बात है जो मैं आपसे साझा करना चाहता हूं. आपके बेटे को आपके देश का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र मिला है. लड़ाई के मैदान पर अरुण की हिम्मत अनुकरणीय थी."

गोल्फ स्टिक लेकर गए थे लड़ने
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जब अरुण लड़ाई पर जा रहे थे तब जिस वक्त वो अपना सामान बांध रहे थे तो उसमें एक नीला सूट और गोल्फ़ स्टिक भी थी. जब किसी ने पूछा कि ये सब क्यों ले कर जा रहे हो? अरुण का जवाब था, मैं लाहौर में गोल्फ़ खेलूंगा. और जीत के बाद डिनर पार्टी तो होगी ही.उसके लिए ये सूट ले जा रहा हूं.

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