सुप्रीम कोर्ट का सवाल- क्या मुफ्त, बिजली, पानी और स्वास्थ्य सुविधाओं को माना जाए मुफ्तखोरी?

चीफ जस्टिस एन वी रमन्ना ने कहा कि सवाल ये है कि किस सुविधा को मुफ्तखोरी कहा जाए और किसे जनता का वाजिब हक माना जाए. कोर्ट ने कहा कि क्या मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाओं, मुफ्त पानी और बिजली को मुफ्तखोरी कहा जाए या ये वाजिब वायदे हैं.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Aug 17, 2022, 04:21 PM IST
  • सुप्रीम कोर्ट का सवाल- किसे माना जाए मुफ्तखोरी
  • फ्री बिजली, पानी, और स्वास्थ्य मुफ्तखोरी या अधिकार?
सुप्रीम कोर्ट का सवाल- क्या मुफ्त, बिजली, पानी और स्वास्थ्य सुविधाओं को माना जाए मुफ्तखोरी?

नई दिल्ली: चुनाव में मुफ्त सुविधाओं का वायदा करने वाले राजनीतिक दलों पर नियंत्रण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एन वी रमन्ना ने कहा कि सवाल ये है कि किस सुविधा को मुफ्तखोरी कहा जाए और किसे जनता का वाजिब हक माना जाए. कोर्ट ने कहा कि क्या मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाओं, मुफ्त पानी और बिजली को मुफ्तखोरी कहा जाए या ये वाजिब वायदे हैं. दूसरी ओर क्या मुफ्त बिजली के सामान, दूसरी चीजों को बांटना जनकल्याण है? इस पर व्यापक विचार विमर्श की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सभी से सुझाव देने को भी कहा है. 

कोर्ट में दायर याचिका हुई थी याचिका

सुप्रीम कोर्ट में अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर याचिका में मांग की गई थी कि चुनाव में मुफ्त सुविधाओं का घोषणा करने वाले राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द की जाए. कोर्ट के पिछले निर्देश के मुताबिक, केंद्र सरकार, चुनाव आयोग, आम आदमी पार्टी, डीएमके और कपिल सिब्बल अपने सुझाव कोर्ट में रख चुके हैं. 

चीफ जस्टिस की टिप्पणी 

आज सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एन वी रमन्ना ने कहा कि हमारे पास आए तमाम सुझावों में से एक सुझाव ये भी है कि राजनीतिक दलों को अपने मतदाताओं से वायदा करने से नहीं रोका जाना चाहिए. अब कोर्ट का सवाल ये है कि किसे मुफ्तखोरी कहा जाए. क्या मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं, मुफ्त बिजली, पानी को मुफ्तखोरी कहा जा सकता है. मनरेगा जैसी योजनाएं भी हैं, जो वंचित तबके को सम्मानपूर्वक जीवन जीने में मददगार बनती हैं."

'पार्टियों को वायदे करने से नहीं रोक सकते'

चीफ जस्टिस ने कहा कि हम राजनीतिक दलों को चुनावी वायदे करने से नहीं रोक सकते हैं. मुझे नहीं लगता कि चुनाव के दौरान मुफ्त सुविधाओं के वायदे किसी पार्टी के सत्ता में आने की गांरटी नहीं हैं. कई बार ऐसे वायदे करने के बाद भी पार्टियां हार जाती हैं."

केंद्र सरकार का पक्ष

केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जनता की भलाई, सिर्फ मुफ्तखोरी की योजनाओं के जरिए नहीं हो सकती है. इससे पहले हुई सुनवाई में तुषार मेहता कह चुके हैं कि अगर मुफ्त योजनाओं के जरिये ही लोगों की भलाई के लिए सोचा गया तो ये आर्थिक विनाश की वजह बनेगा. उन्होंने कहा था कि जब तक सरकार इसे रोकने के लिए कानून लाती है, तब तक कोर्ट दखल देकर दिशानिर्देश तय कर सकता है.

आम आदमी पार्टी, डीएमके, कांग्रेस नेता का पक्ष

इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट में आम आदमी पार्टी ने भी याचिका दाखिल की है. आम आदमी पार्टी का कहना है कि मुफ्त पानी, मुफ्त बिजली, मुफ्त ट्रांसपोर्ट जैसी सुविधाएं मुफ्तखोरी नहीं कही जा सकती हैं, बल्कि ये एक समतामूलक समाज को बनाने के लिए एक सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है. 

वहीं डीएमके की ओर से कहा गया है कि आर्थिक और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए जनकल्याणकारी योजनाएं देश की जरूरत हैं. डीएमके ने याचिका में जनकल्याणकारी योजनाओं को मुफ्तखोरी करार दिए जाने पर सवाल उठाया है. वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश महिला कांग्रेस नेता जया ठाकुर ने भी याचिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि इस तरह की स्कीम लाना और सब्सिडी देना समाज के वंचित तबके के विकास के लिए एक सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है.

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