नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार को अतीक अहमद और उसके भाई की पुलिस हिरासत में मेडिकल जांच के दौरान हुई हत्या के मामले में उठाए गए कदमों और जांच को रिकॉर्ड में लाने का निर्देश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सुरक्षा में चूक के संबंध में राज्य सरकार से सवालों की झड़ी लगा दी. आपको सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट के तीन सबसे अहम सवालों से रूबरू करवाते हैं.
पहला सवाल). हत्यारे समाचार फोटोग्राफरों के वेश में आए थे, उन्हें कैसे पता चला?
दूसरा सवाल). अतीक अहमद और उसके भाई को अस्पताल तक वैन में क्यों नहीं ले जाया गया?
तीसरा सवाल). अतीक और अशरफ अहमद की मीडिया के सामने परेड क्यों कराई गई?
अतीक और उसके भाई की लाइव शूटिंग पर अदालत ने कही ये बात
यूपी सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि हत्यारे समाचार फोटोग्राफरों के वेश में आए थे. जस्टिस एस रवींद्र भट और दीपांकर दत्ता की पीठ ने पूछा कि उन्हें कैसे पता चला? टीवी पर अतीक और उसके भाई की लाइव शूटिंग का जिक्र करते हुए बेंच ने सवाल किया कि उन्हें अस्पताल तक वैन में क्यों नहीं ले जाया गया, उनकी मीडिया के सामने परेड क्यों कराई गई?
यूपी सरकार के वकील ने कहा कि अदालत के आदेश के अनुसार, उन्हें हर दो दिन में चिकित्सा परीक्षण के लिए ले जाना होता है, इसलिए प्रेस को पता था. सरकार ने मामले की जांच के लिए एक आयोग नियुक्त किया है और अदालत से मामले में नोटिस जारी नहीं करने का आग्रह किया है. खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता दावा कर रहा है कि एक पैटर्न है. यूपी सरकार के वकील ने कहा कि अतीक और परिवार लंबे समय से आपराधिक गतिविधियों में शामिल थे.
अतीक अहमद के बेटे असद के पुलिस एनकाउंटर पर भी मांगी रिपोर्ट
बेंच ने झांसी में अतीक अहमद के बेटे असद के पुलिस एनकाउंटर पर यूपी सरकार से भी रिपोर्ट मांगी. असद को 13 अप्रैल को यूपी पुलिस की एक विशेष टास्क फोर्स ने एक मुठभेड़ में मार गिराया था. शीर्ष अदालत ने मामले की आगे की सुनवाई तीन सप्ताह के बाद निर्धारित की है.
शीर्ष अदालत गैंगस्टर से राजनेता बने अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्याओं की जांच की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी. याचिका में हत्याओं की जांच के लिए शीर्ष अदालत के एक पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी. अधिवक्ता विशाल तिवारी ने एक स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया और 2017 के बाद से उत्तर प्रदेश में हुई 183 मुठभेड़ों की जांच की भी मांग की.
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में क्या-क्या कहा गया है?
अहमद और उनके भाई को तीन हमलावरों ने पत्रकारों के रूप में गोली मार दी थी, जब पुलिस कर्मियों द्वारा उन्हें उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में एक मेडिकल कॉलेज में जांच के लिए ले जाया जा रहा था. याचिका में सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति का गठन करके कानून के शासन की रक्षा के लिए दिशा-निर्देश मांगा गया था और साथ ही 2017 के बाद से हुई 183 मुठभेड़ों की जांच करने की भी मांग की गई थी, जैसा कि उत्तर प्रदेश के विशेष पुलिस महानिदेशक (कानून एवं व्यवस्था) ने कहा था.
याचिकाकर्ता ने पुलिस हिरासत में अहमद और उसके भाई की हत्या की जांच की भी मांग की और जोर देकर कहा कि पुलिस द्वारा इस तरह की हरकतें लोकतंत्र और कानून के शासन के लिए एक गंभीर खतरा हैं और पुलिस राज्य की ओर ले जाती हैं. याचिका में कहा गया है कि अतिरिक्त न्यायिक हत्याओं या फर्जी पुलिस मुठभेड़ों का कानून के तहत कोई स्थान नहीं है और एक लोकतांत्रिक समाज में पुलिस को अंतिम न्याय देने का एक तरीका बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, क्योंकि सजा की शक्ति केवल न्यायपालिका में निहित है.
(इनपुट- आईएएनएस)
इसे भी पढ़ें- अशोक गहलोत को किसने बताया 'राजनीति का रावण'? 'राम राज्य' लाने का किया आह्वान
Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.