सपा की हार और भाजपा की जीत के मायने समझिए, उपचुनाव में क्यों पंचर हुई साइकिल?

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में हुई बीजेपी की जीत और समाजवादी पार्टी की हार के क्या मायने हैं. आपको एक-एक पहलू समझाते हैं.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jun 26, 2022, 11:14 PM IST
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सपा की हार और भाजपा की जीत के मायने समझिए, उपचुनाव में क्यों पंचर हुई साइकिल?

नई दिल्ली: रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव के जनादेश के क्या मायने हैं? क्या मोदी और योगी का जलवा अब भी बरकरार है? क्योंकि जो चुनाव नतीजे अब तक सामने आए, वो तो यही इशारा कर रहे हैं. मतलब योगी और मोदी का करिश्मा एक बार फिर से यूपी में चलने को तैयार है.

समाजवादी गढ़ में बीजेपी की सेंधमारी

ये नतीजा इसलिए ज्यादा अहमियत रखता है, क्योंकि समाजवादी गढ़ में बीजेपी ने सेंधमारी कर ली. उन सीटों को जीत लियास जिन सीटों पर किसी दूसरी पार्टी का सेंध लगाना आसान नहीं था. तो क्या उपचुनाव का संदेश 2024 में फिर से बीजेपी को जनादेश देगा? क्योंकि बीजेपी समाजवादी गढ़ में अखिलेश यादव के जौहर को चुनौती देने में कामयाब रही है, तो क्या यूपी में एक बार फिर से विपक्ष मोदी और योगी के सामने ढेर हो जाएगा?

दरअसल, इस हार ने बता दिया कि समाजवादी पार्टी अपने ही किले में अपने वर्चस्व को नहीं बचा पाई. इस हार ने एसपी को अपने गढ़ में बड़ा झटका दिया है. इससे सवाल उठ रहा है कि आजम अखिलेश की पकड़ कमजोर हुई है. इस हार में आजम और अखिलेश में दूरी का बीजेपी को फायदा मिला है.

इसके साथ ही विपक्षी दलों के लिए 2024 की राह मुश्किल होती दिखाई दे रही है, क्योंकि आजमगढ़ और रामपुर दोनों सीटें समाजवादी पार्टी हार गई और अखिलेश यादव के नेतृत्व पर भी प्रश्नचिन्ह लग गए. परिवारवादी पॉलिटिक्स को भी बड़ा झटका लगा है. जिस MY फैक्टर के दम पर समाजवादी पार्टी खुद को मजबूत मानती थी, वो भी दरकता हुआ दिखाई दिया.

बीजेपी की जीत के मायने क्या?

2024 की तैयारी में भाजपा को फायदा मिलेगा. बीजेपी पर लोगों का भरोसा बढ़ा है. योगी सरकार की योजनाएं लोगों तक पहुंच रही हैं. जाति के बजाय लोगों ने सुशासन पर मुहर लगाई. यादव वोट बैंक में भी बीजेपी ने सेंधमारी की है. विकास योजनाओं से लोगों का नजरिया बदला है. बूथ मैनेजमेंट मजबूत करने का फायदा मिला. लोगों को साथ जोड़ने की कवायद रंग लाई. सीएम योगी के काम पर भी लोगों ने मुहर लगाई.

बीजेपी के बारे में कहा जाता है कि ये पार्टी साल के 365 दिन और दिन के 24 घंटे इलेक्शन मोड में रहती है. बीजेपी की तैयारी के बारे में अंदाजा इस बात ले लगा सकते हैं कि बूथ लेवल की तैयारी में भी पार्टी के बड़े नेता शामिल होते हैं और कार्यकर्ताओं को जीत का मंत्र देते हैं. खासतौर से सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ का लगातार प्रदेश के लिए काम करना भी बीजेपी की जीत में मददगार साबित हुआ. सीएम योगी की जनसभाओं से आजमगढ़ और रामपुर में बीजेपी की जीत का रास्ता साफ हुआ.

बीजेपी की जीत के मायने को आप समझ गए होंगे, लेकिन अब आपको ये भी बताते हैं कि इस लोकसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के हार के मायने क्या हैं.

सपा की हार के मायने क्या?

आजमगढ़ और रामपुर में हार सपा के लिए बड़ा झटका लगा है. 2024 की तैयारी में सपा के लिए चुनौती बढ़ गईं. सपा का M-Y समीकरण सूबे में कमजोर पड़ रहा है. यादव वोटबैंक का भी सपा को पूरा फायदा नहीं. मुस्लिम वोटबैंक भी सपा से खिसकता दिख रहा है. ओबीसी वोटबैंक का भरोसा भी सपा पर कम हुआ. अखिलेश यादव की अगुआई को लेकर भी सवाल है. सपा की सियासत का आधार खिसकता दिख रहा है.

इन बातों से एक बात शीशे की तरह साफ हो चुकी है कि बीजेपी को यूपी में चुनौती देना फिलहाल किसी भी पार्टी के बस की बात नहीं दिख रही है. आजमगढ़ लोकसभा सीट सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के छोड़ने की वजह से खाली हुई थी, जबकि रामपुर सीट पर आजम खान सांसद थे.

जहां अखिलेश यादव पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं, तो वहीं आजम खान के रसूख से भी हरकोई वाकिफ है. बावजूद इसके लोकसभा चुनाव की इन दोनों सीटों पर समाजवादी पार्टी की हार इस बात का पुख्ता सबूत है कि फिलहाल तो यूपी का जनादेश बीजेपी के ही साथ है. ऐसे में 2024 के लिए जहां सपा की राह मुश्किल दिख रही है, तो वहीं बीजेपी की राह और आसान हो गई है.

मुस्लिम वोटबैंक में सेंधमारी क्यों?

समाजवादी पार्टी के अंदर सियासी बिखराव दिखा. आजम खान के भाई ने अखिलेश का विरोध किया. आजम के मीडिया सलाहकार ने भी विरोध किया था. मौलाना शहाबुद्दीन ने दूसरे विकल्पों की बात कही थी. सलमान जावेद ने आवाज ना उठाने के आरोप लगाए थे. शफीकुर्रहमान बर्क ने भी अखिलेश पर सवाल उठाए थे.

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