उत्तराखंड में होली का अनोखा अंदाज देखने को मिलता है और यहां इस पर्व को प्यार का प्रतीक माना जाता है. उत्तराखंड की महिलाएं होली का त्योहार आने से पहले ही होली के रंगों में नजर आती हैं. पहाड़ी जनपदों में विशेष प्रकार की खड़ी होली मनाई जाती है. आगे जानें क्यों खास है पहाड़ी होली?....
हिंदू पंचाग के अनुसार हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होली मनाई जाती है और इस साल 25, मार्च को होली पड़ रही है. बात करें पहाड़ों की तो यहां फाल्गुन का महीना शुरू होते ही होली का रंग दिखने लगता है.
विशेषरूप से उत्तराखंड के कुमाऊं की होली का करीब 400 साल से ज्यादा पुराना इतिहास है. वक्त के साथ होली की रीति-रिवाज और परम्पराओं में बदलाव तो आया है लेकिन पहाड़ों में आज भी खड़ी होली की परम्परा कायम है.
पहाड़ों में होली का त्योहार शिवरात्रि के बाद से ही शुरू हो जाता है, जो आपस में भाईचारा और सौहार्द का प्रतीक है. इसे प्रेम रस और वीर रस में गाया जाता है.
चंपावत में चंद वंश के शासनकाल से खड़ी होली गायन की परंपरा शुरू हुई थी. जो काली कुमाऊं, गुमदेश व सुई से शुरू होकर धीरे-धीरे पूरे कुमाऊं में फैल गई.
खड़ी होली को गढ़वाल के भी कुछ हिस्सों में मनाया जाता है. चंद शासनकाल से चली आ रही यह परम्परा आज भी पहाड़ों में जिंदा है.
माना जाता है कि खड़ी होली की शुरूआत चंपावत के काली कुमाऊं से शुरुआत हुई. तब यह चंद वंश राजाओं की राजधानी हुआ करती थी.
फाल्गुन एकादशी के बाद से खड़ी होली में ढोल और मंजीरे के साथ गोल घेरे में अलग अंदाज में खड़ी होली गायी जाती है.
खड़ी होली को बैठकर भी गा सकते हैं. लेकिन इसका आकर्षण खड़े होकर बीच में ढोल और मंजीरे के साथ एक गोल घेरे में गाते हुए है.
खड़ी होली की धमक पूरे पहाड़ी समाज को अपने आगोश में ले लेती है.
पहाड़ी खड़ी होली के गीत श्रृंगारिक होते हैं. उनमें प्रवासी पिया की याद, विछोह और पिया मिलन की आस के स्वर समाए होते है.
देवर-भाभी की हंसी- मजाक भी इस खड़ी होली में शामिल है. होल्यारों की टोलियां एक गांव से दूसरे गांव जाती हैं.
गोलाकार समूहों में, एक-दूसरे के कंधों पर कुहनियां टिकाएं, गोल-गोल घूमते हुए पद संचालन की खास लय-ताल निभाते हैं और पहाड़ी खड़ी होली गाई जाती है.
एकादशी की शाम को होलीका का निर्माण कर होल्यारों की टोली गांव भ्रमण पर निकल जाती है. गांव में हर घर से इन होल्यारों को कुछ ना कुछ दिया जाता है. जैसे- अनाज, मिठाई या पैसे.
होली दहन के दिन सभी होल्यार दान में मिली इन सभी वस्तुओं को आपस में बांट लेते हैं. इस दिन सभी होल्यार एक जगह पर एक साथ भोजन करते हैं.